गीत-1
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ये पब्लिक इस्कूल या कि सोने के अंडे हैं
क्यों गरीब पढ़ पायेंगे, सम्मुख ये डंडे हैं ।
मोटी-मोटी फीस और ऊपर से डोनेशन
छांट-छांट बच्चों को पढ़ा रहा है यह नेशन।
'शिक्षा का अधिकार सभी को' ऊंचे झंडे हैं !
ये पब्लिक इस्कूल या कि सोने के अंडे हैं ।
रोज-रोज के ड्रेस-चेंज ये खेल अजूबे हैं
साल-साल पर पुस्तक बदले, क्या मंसूबे हैं!
संचालक के लिए देश में हर दिन संडे हैं
ये पब्लिक इस्कूल या कि सोने के अंडे हैं ।
कैसा है यह न्याय, विषमताओं को प्रश्रय दे,
दीनों के बच्चे अनपढ़ हों ,रह -रह सुबकी लें।
और अमीरों के बच्चे विद्वान! वितंडे हैं!
ये पब्लिक इस्कूल या कि सोने के अंडे हैं !
शिक्षा की यह नीति देश को कित ले जायेगा,
सिर्फ अमीरों का बच्चा ही इत रह पायेगा ।
ये समानता लाने वाले ही हथकंडे हैं !
ये पब्लिक इस्कूल या कि सोने के अंडे हैं !
.....
गीत-2
तुम्हारे नेह का न्योता अभी तक याद है मुझको !
निमंत्रण प्रेयसी तेरा कभी क्या भूल पाऊँगा
जनम भर याद रक्खूंगा,सदा सुधि में बुलाऊंगा।
नहीं जो पा सका तुझको, कहाँ अवसाद है मुझको !
स्वयं को देख सकती हो, अरे ये गीत मुखरित हैं
ललित लय छंद तो सारे प्रिये तुमको समर्पित हैं।
इसी के मार्फत तुमसे हुआ संवाद है मुझको !
मिलन कब सतत रहता है, विरह शाश्वत रहा सब दिन
खुशी के पल क्षणिक होते,न कटते विरह-दिन गिन-गिन।
तुम्हारी याद ने ही तो किया आबाद है मुझको!
....
कवि- हरिनारायण सिंह 'हरि'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
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