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Sunday, 24 February 2019

'आखर' के अंतर्गत 20.2.2019 को पटना में जयकांत सिंह 'जय' से ब्रज भूषण मिश्र की बातचीत का कार्यक्रम संपन्न

भोजपुरी बोली नहीं बल्कि एक भाषा है किन्तु मौलिक भोजपुरी की पढाई का आभाव 





लिपि भाषा का लिबास होता है। यह बात  भोजपुरी  के प्रसिद्ध साहित्यकार जयकांत सिंह 'जय'  ने प्रभा  खेतान  फाउंडेशन, मसि इंक द्वारा आयोजित एंव श्री सीमेंट द्वारा प्रायोजित आखर नामक कार्यक्रम में बातचीत के दौरान कही।

सबसे पहले पुलवामा हमले में शहीद 44 सीआरपीएफ जवानों को मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गयी  तत्पश्चात भोजपुरी के साहित्यकार ब्रज भूषण मिश्र जी और हिंदी साहित्य के कथाकार और नाटककार हृषिकेश सुलभ जी ने हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार नामवर सिंह जी पर अपने संस्मरण सुना कर उन्हें याद किया और एक मिनट का मौन रखा गया। 

भोजपुरी भाषा और साहित्य पर बात करते हुए साहित्यकार जयकांत सिंह 'जय' से ब्रज भूषण मिश्र जी ने भाषा साहित्य के प्रति उनकी रुचि कैसे जाग्रत हुई इस पर सवाल किया।  उन्होंने कहा कि बचपन में अन्तराक्षरी में गीत गाने के क्रम अनायास ही पैरोडी हो जाती थी जिससे लिखने की रुचि जागी। शुरुआती दिनों में तो हिंदी में ही लेखन जारी था बाद में उमेश मिश्र जी के प्रभाव में आकर भोजपुरी लेखन की ओर रुख किया। 

भोजपुरी भाषा के स्वरूप पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जिस भाषा का वैज्ञानिक विमर्श न हो, व्याकरण न हो तब तक उस भाषा का सम्मान नहीं होता है। पटना आकाशवाणी आने के बाद भाषा विज्ञान में रूचि पैदा हुई।
भोजपुरी भाषा और बोली के प्रश्न पर डॉ जयकांत ने कहा कि जॉर्ज ग्रेसियनन ने अपने पुस्तक में भोजपुरी को बोली नहीं भाषा करार दिया, उन्होंने अपने ग्रामर में भोजपुरी शब्दकोश एवं व्याकरण को स्थान दिया। भोजपुरी की ध्वनि प्रकृति एवं भाव मागधी एवं स्वरसैनि से कोई संबंध नही है। अक्षर का उच्चारण भोजपुरी में विशिष्ट है। भोजपुरी का व्याकरण अन्य क्षेत्रीय भाषा के व्याकरण से सरल है। व्याकरण उसके लिये बनाई जाती जिसकी वह अपनी मातृभाषा नहीं होती है।

भोजपुरी लिपि के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि लिपि भाषा का लिबास है। भारत में मुख्य रूप से दो ही लिपि थी ब्राह्मी और खरोष्ठी । देवनागरी बाद में आई। देवनागरी संस्कृत की लिपि है न कि हिंदी की। 1873 के बाद हिंदी ने अपना स्वरूप विस्तार किया तो देवनागरी को प्रचलित करना शुरू किया। शेरशाह सूरी के समय तक भोजपुरी का लेखन कैथी लिपि में होता था। 

भोजपुरी अध्ययन अध्यापन की स्थिति और संस्थानों का योगदान वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय और जय प्रकाश विश्वविद्यालय ने योजनाबद्ध तरीके से अध्यापन का कार्य नहीं शुरू किया। इसीलिए सीनेट और यूजीसी ने इसे मान्यता नहीं दिया। नालन्दा ओपन यूनिवर्सिटी में भी फैकेल्टी नहीं होने के कारण पढ़ाई बंद हो गयी। बीएचयू और लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई शुरू हुई है लेकिन भोजपुरी के बदले हिंदी में ही  पढ़ाई हो रही है वहां मौलिक भोजपुरी की पढ़ाई का अभाव है। 

भोजपुरी गद्य के उद्भव और विकास पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि भाषा का जन्म ही गद्य में ही होता है । 1664 से ही भोजपुरी में गद्य लिखना जारी है 1942 में राहुल सांस्कृत्यायन ने जेल से ही भोजपुरी भाषा में गद्य लिखें । आये दिन रोज भोजपुरी भाषा में किताबें तो आ रही है लेकिन व्यवस्थित ढंग से प्रकाशक और वितरक का घोर अभाव रहता है। अपनी कहानी के लेखन के प्रक्रिया में उन्होंने कहा कि कहानी सबके भीतर होती है । मैं अपने मन की ही अभिव्यक्ति को कहानी बना देता हूँ। 

इसके बाद उन्होंने अपनी लिखी रचनाओं का पाठ किया । श्रोताओं से प्रश्न के दौरान उन्होंने कहा कि भारत सरकार का भाषा संवर्धन के प्रति कोई नीतिगत योजना नहीं है। कार्यक्रम के अंत में भोजपुरी भाषा के मशहूर व्यंगकार और ग़ज़लकार राम दीप पाण्डे "अकेला" जी जो इसी महीने देह त्याग गए उनको यशवंत मिश्रा जी ने अपनी संवेदनाओं से उन्हें याद किया। 

इस कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन मसि इंक की संस्थापक और निदेशक आराधना प्रधान ने किया।इस कार्यक्रम में उपन्यासकार रत्नेश्वर सिंह, भगवती प्रसाद, हृषिकेश सुलभ, कौशल महोब्बतपुरी , डॉ. रंजन विकास , अन्विता प्रधान, शाहनवाज खान आदि लोग उपस्थित थे।
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आलेख - सत्यम कुमार 
छायाचित्र - आखर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com



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