Pages

Sunday, 20 January 2019

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् के तत्वावधान में आयोजित हुई कवि गोष्ठी पटना में 18.1.2019 को सम्पन्न

फ़िज़ा रौशन हो गई जैसे ही उनका नाम लिया / दर्दे-उल्फ़त में मरहम-सा ज्यूँ काम किया


साहित्यिक संस्था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद एवं स्टेशन राजभाषा कार्यान्वयन समिति की ओर से राजेन्द्रनगर टर्मिनल स्टेशन के रामवृक्ष बेनीपुरी हिंदी पुस्तकालय कक्ष में "रंग-ए-महफिल" का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता मशहूर शायर सुहैल फारूकी एवं संचालन कवि सिद्धेश्वर ने किया। मुख्य अतिथि   भगवती प्रसाद द्विवेदी एवं विशिष्ट अतिथि थे उपेन्द्र प्र. राय।

रंग-ए-महफिल. को एक से बढ़कर एक गजलों से सजाया और स्मरणीय बनाने वाले नए - पुराने कवियों में प्रमुख थे-समीर परिमल, नीता सिंहा, शरद रंजनशशरद, कुंदन आनंद, सुनील कुमार, आराधना प्रसाद, मधुरेश नारायण, विश्वनाथ वर्मा और शमां कौसर शमा।

कुंदन ने हिंदुस्तान को कुछ इस तरह पहचाना-
जो मेरी पहचान कहेंगे,
मेरे तरकश बाण कहेंगे,
दर्द जहाँ है झोपड़ियों में,
उसको हिन्दुस्तान कहेंगे,

सुनील कुमार की गजल में गजब की रवानगी थी - 
फ़ुहारें चार बूंदे ही गिरे हैं
मगर मौसम में तब कितना नशा है
 फ़क़त नश्वर हरिक शय इस जहाँ में
 फ़ना को भी यहाँ होना फ़ना है.
           
कवि मधुरेश नारायण ने अपनी गजलों का सस्वर पाठ किया -
नजर से दूर ही सही पर मेरे दिल के बहुत पास हो
औरों के लिये कुछ भी सही मेरे लिये तुम खास हो
फ़िज़ा रौशन हो गई जैसे ही उनका नाम लिया
दर्दे-उल्फ़त में मरहम-सा ज्यूँ काम किया!

अध्यक्षता करते हुए चर्चित शायर सुहैल फारूकी ने अपने अंदाज में पेश किया -
अपनी खबर है मुझको ना उनकी खबर मुझे
पागल बना गई है किसी की नज़र मुझे
और कहां कहां लिए फिरता है तेरा पेयार मुझे
चला भी आ, के है मुद्दत से इंतज़ार मुझे.
.....

आलेख - मो. नसीम अख्तर
फोटो साभार -सिद्धेश्वर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbejodindia@yahoo.com






No comments:

Post a Comment

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.