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Monday, 22 October 2018

मानवोदय द्वारा कवि गोष्ठी 21.10.2018 को पटना में सम्पन्न

इनको मुश्किल है रोटी-दाल जुटाना / वो कहते हैं बादाम नहीं मिलता है
पूरी ग़ज़ल पढ़िए नीचे



सिर्फ राजधानी के मुख्य भाग में कार्यक्रम करने से सम्पूर्ण क्षेत्र का साहित्यिक सांस्कृतिक विकास नहीं हो सकता. इस हेतु आवश्यक है कि शहर के बाहरी इलाकों में और सुदूर क्षेत्रों में भी कार्यक्रम होते रहें. मानवोदय, पटना सीटी की एक पुरानी साहित्यिक संस्था है जो इन दिनों विशेष रूप से सक्रिय है. 

दिनांक 21.10.2018 को पटना सिटी की सुचर्चित साहित्यिक संस्था " मानवोदय" के तत्वावधान में शरद पूर्णिमा के स्वागतार्थ अग्रिम कौमुदी काव्य संध्या का आयोजन वरिष्ठ साहित्यकार,कवि और संपादक रामकिशोर सिंह " विरागी " के आतिथ्य में काजीपुर, पटना स्थित किशोर भवन की छत पर किया गया.

सर्वप्रथम श्री रामकिशोर सिंह " विरागी " जी ने आगत अतिथियों का स्वागत किया और उपस्थित कवियों का परिचय कराया.


काव्य संध्या की अध्यक्षता कवि घनश्याम तथा संचालन दैनिक "आज " के उपसंपादक श्री प्रभात कुमार धवन ने किया. इस अवसर पर मधुरेश नारायण, विश्वनाथ प्रसाद वर्मा, प्रभात कुमार धवन,शंकर शरण आर्य, डा. सुनील कुमार उपाध्याय, गौरी शंकर राजहंस, मनोज कुमार उपाध्याय, नसीम अख़्तर, सुनील कुमार, सुबोध सिन्हा, डा.विनय कुमार विष्णुपुरी, अंकेश कुमार, मदन कुमार सिंह, श्रीमती सिन्धु कुमारी, लता प्रासर के अलावा कवि घनश्याम भी काव्य पाठ किया.



लगभग तीन घंटे तक चली इस सरस काव्य संध्या में श्रोतागण विभिन्न विषयों की श्रेष्ठ रचनाओं का रसास्वादन करते रहे.


अंत में श्री गिरीश चन्द्र द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के पश्चात काव्य संध्या का समापन हुआ.

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आलेख- घनश्याम 
छायाचित्र-  मानवोदय
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आइडी - editorbiharidhamaka@yahoo.com
नोट- इस कार्यक्रम के प्रतिभागीगण अपनी पढ़ी गई दो-चार पंक्तियाँ ब्लॉग के कमेंट में भेज सकते हैं ताकि उन्हें जोड़ा जा सके.
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ग़ज़ल
कवि घनश्याम द्वारा पढ़ी गई
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जिसको कोई भी काम नहीं मिलता है
उसको क्योंकर आराम नहीं मिलता है

तुमने तो अबतक नागफनी ही बोया
फिर क्यों कहते हो आम नहीं मिलता है

कितनी भी कोशिश करें मगर ये तय है
दक्षिण से हरगिज़ वाह नहीं मिलता है

रावण तो मिल जाते हैं कई अयाचित
ढूंढे-से भी तो राम नहीं मिलता है

इनको मुश्किल है रोटी-दाल जुटाना
वो कहते हैं बादाम नहीं मिलता है

कोई भी चीज नहीं मन को भाती है
साजन का जब पैगाम नहीं मिलता है

नयनों को, अधरों को, मन को तर कर दे
हरदम ऐसा "घनश्याम" नहीं मिलता है.

























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