ख़ुद पर तू इतराना सीख / ख़्वाबों को सहलाना सीख
कल तक दशकों से कार्यरत प्राथमिक विद्यालय का शिक्षक
आज बिहार वित्त सेवा का सदस्य बन कर एक मिसाल कायम करने जा रहा है. इन्होंने दिखा दिया है कि अगर आप अपने
चुने हुए पथ पर पूरे मन से चलते रहेंगे तो मंजिल मिलेगी ही चाहे देर से ही सही. राष्ट्रीय
स्तर पर अपनी गज़ल की किताब “दिल्ली चीखती है” से धमाकेदार पहचान बनानेवाले समीर परिमल ने एक और अपूर्व कारनामा कर दिखाया है.
26 वर्षों की अत्यधिक लम्बी अवधि में प्रयास करने के बाद बिहार लोक सेवा आयोग की
परीक्षा में अंतिम रूप से सफलता प्राप्त
कर शानदार विजय पाई है.
वैसे समीर परिमल पहले ही शायरी में इतनी अधिक
लोकप्रियता अर्जित कर चुके हैं कि बिहार वित्त सेवा मात्र एक मनोवैज्ञानिक उपलब्धि
सी लग रही है. बस यह लग रहा है कि जिस कार्य में वर्ष 1992 में प्रथम प्रयास में इंटरव्यू तक
पहुँच कर शुरुआत की वह पूर्ण हुआ. एक अधूरापन तो मिटा. वेतन तो पहले ही उस स्तर पर
पहुँच चुका है किन्तु अब रुतबे में कुछ इज़ाफा होगा जो असफलता से पनपी हीनता की कुछ
ग्रंथियों को साफ कर और अधिक तेज के साथ रचनाकर्म करने को प्रवृत करेगा.
प्रश्न-1: आप अपनी कहानी खुद बताएँ.
उत्तर: 1991
में बीएससी (भौतिकी प्रतिष्ठा) में उत्तीर्ण होने के बाद मैंने 1992 ई. में 38वीं
बीपीएससी की परीक्षा पहली बार दी थी और इंटरव्यू तक पहुँचा था. भारतीय इतिहास, मानवशास्त्र, अंतर्राष्ट्रीय विधि
विषय लिये थे. पहली बार बीपीएससी में प्रारम्भिक परीक्षा (पीटी) का प्रचलन आरम्भ
हुआ था. तब से कई बार रुक-रुक कर परीक्षाएँ देता रहा और 53वीं से 55वीं वाली
परीक्षा में इतिहास और हिन्दी विषय लेकर इंटरव्यू के बाद मात्र 4 अंकों से पिछड़
गया. अब जबकि 56वीं से 59वीं में मैं
अंतिम रूप से चयनित हो चुका हूँ इसके बाद अगली बार से मात्र एक विषय लेने का युग आ
रहा है. यानी कि बीपीएससी के विभिन्न परिवर्तनकारी युगों का गवाह रहते हुए तीन
दशकों में मैं परीक्षार्थी बना रहा. इस बीच मैंने राजकीय कन्या विद्यालय में शिक्षक की नौकरी भी ज्वाइन कर ली
और मेरा विवाह भी हो गया तीन बच्चे भी हो गए.
हालाँकि दो बहनों का विवाह हो गया था लेकिन एक बड़े
भाई और एक बहन डाउन सिंड्रोम नामक मानसिक रूप से पूरी तरह से विकलांग कर देनेवाली
खतरनाक बिमारी से पीड़ित थे. भाई की 2010 ई. में मृत्यु हो गई लेकिन बहन की देख-भाल
अभी भी हो रही है और वह मेरे साथ ही रहती है. एक भाई और एक बहन की मानसिक
विकलांगता से जीवन संघर्षपूर्ण तो रहा लेकिन मैंने अपनेआप को शायरी में लगाया और
उसमें काफी लोकप्रियता प्राप्त की. मेरी एक पुस्तक “दिल्ली चीखती है” आने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर मेरी पहचान और भी ज्यादा कायम हो गई और देशभर
में मेरे हजारों प्रशंसक हैं. पहली बार इंटरव्यू में जाकर असफल हो जाने के बाद भी
कई बार इंटरव्यू तक पहुँचा और असफल होता रहा सो मन में एक टीस बनी रही कि क्या मैं
अंतिम सफलता पाने के योग्य ही नहीं हूँ. 26 वर्षों के बाद इस बार मेरा वह मिथक भी
टूट गया और अपने माता-पिता के आशीर्वाद से मैं अब बिहार वित्त सेवा का सदस्य बनने
जा रहा हूँ.
प्रश्न-2: आपके परिवार का आपकी तैयारी में कैसा रवैया
रहा?
उत्तर: मैं ग्राम- भरतपुरा, प्रखण्ड-अनुमंडल- हथुआ, जिला- गोपालगंज का
रहनेवाला हूँ. मेरे पिताजी स्व. मधुसूदन प्रसाद सरकारी विद्यालय के प्रधानाध्यापक
थे. वे सदा से मेरी प्रेरणा के स्रोत रहे और 1993 ई. में विद्यालय के
प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत होने के बाद भी मेरे गृह जिला गोपालगंज के गाँव से
दूर पटना में भेजकर मेरा खर्च वहन करते रहे ताकि मैं बीपीएससी की तैयारी कर पाऊँ. पिताजी का देहावसान 2012 में हो गया. मेरी
माँ श्रीमती तारादेवी है जो एक घरेलु महिला हैं. हमलोग तीन बहन और दो भाई थे माता
श्रीमती तारा देवी और पत्नी रुपांजलि का मेरी सफलता में बहुत सहयोग रहा है. ज़िंदगी
के कठिन संघर्ष में इन दोनों ने लगातार मेरे हौसला बनाये रखा. मेरी सफलता में
मुझसे ज्यादा खुशी मेरी धर्मपत्नी को है.
प्रश्न-3: आपने बी.एस.सी. (भौतिकी प्रतिष्ठा) की और
भी अनेक डिग्रियाँ प्राप्त कीं. फिर बीपीएससी में विषय क्यों बदला?
उत्तर: मेरा जीवन इतना संघर्षपूर्ण रहा कि मैंने
महसूस किया कि भौतिकी जैसे संवेदनहीन विषय को लेकर मैं सफल नहीं हो सकता. शायरी
की ओर उन्मुख हो ही चुका था और मेरी पैठ भी उसमें बनती जा रही थी इसलिए हिन्दी
साहित्य एक स्वाभाविक चुनाव था. इतिहास का संस्कृति से गहरा रिश्ता रहा है और
साहित्य पर भी उसका गहरा असर रहा है. इसलिए मैंने इतिहास विषय भी लिया.
हाँ अन्य डिग्रियों में मैंने एलएलबी, पत्राचार से पीजीडीबीए (सिम्बायोसिस, पूणे) के अलावे सेवाकालीन
एकवर्षीयशिक्षक प्रशिक्षण भी प्राप्त किया.
प्रश्न-4:
क्या बिहार वित्त सेवा ज्वाइन करने के बाद भी साहित्यकर्म जारी रहेगा?
उत्तर: बिलकुल. साहित्यकर्म मेरी रग-रग में है और इसे
करते समय मुझे ऐसा लगता नहीं कि मैं कुछ कर
रहा हूँ. यह बस हो जाता है. कुछ भी सोचकर नहीं लिखता. जो कार्य बिना प्रयास के हो रहा है वह तो जारी रहेगा
ही.
प्रश्न-5: आप बिहार वित्त सेवा में आने के पहले शायर
के रूप में जाने जाते रहे हैं. क्या आपने रचनाकर्म के दौरान कोई राजनीतिक, सामाजिक या प्रशासनिक बाधा महसूस की? क्या आपको लगा कि आप जो कहना चाह रहे हैं बिना रोक-टोक के कह पा रहे हैं?
उत्तर: मैं किसी राजनीतिक दल या समूह का कैडर नहीं
हूँ हाँ मेरा झुकाव किसी विचारधारा की ओर हो सकता है लेकिन मैं अपने-आप को उस
विचारधारा के प्रवक्ता या कार्यकर्ता के तौर पर नहीं देखता. मेरी बातें किसी
प्रकार के विचारवाद से रहित होतीं हैं अत: मुझे कोई बाधा कभी
महसूस नहीं हुई अपनी बातों को रखने में. हाँ, यह कोशिश जरूर रहती
है कि साहित्य या शायरी को बाजारवाद से बचाए रखूँ. किसी के लिए कोई फरमाइशी शायरी मैं
नहीं कर सकता. जब मेरे अंदर से आवाज आती है तभी मैं लिखता हूँ और वही लिखता हूँ जैसी
आवाज आती है. वैसे भी साहित्य की भूमिका एक रचनात्मक विपक्ष की होती है जो सत्ता की बेवजह आलोचना नहीं करता बल्कि उसकी कमियों को बताता है ताकि जनता के हित में सुधार किये जा सकें..
प्रश्न-6: क्या हिन्दी
में रचनाकर्म ने आपको बीपीएससी में सफलता पाने में कोई भूमिका निभाई?
उत्तर: काफी ज्यादा. जैसा कि मैंने आपके पहले प्रश्न के उत्तर में
कहा है कि प्रारम्भिक दौर में हिन्दी साहित्य मेरा वैकल्पिक विषय नहीं था. किन्तु 2008-09
में 48वीं से 52वीं वाली परीक्षा में मैंने मानवशास्त्र को बदल कर हिन्दी साहित्य को
वैकल्पिक विषय के रूप में ले लिया. पर मेरा दुर्भाग्य था कि ठीक उसी वर्ष मानवशास्त्र
बहुत अधिक सफल विषय रहा था और हिन्दी साहित्य लेनेवाले बहुत बुरी स्थिति में रहे थे.
मेरा भी चयन नहीं हो पाया. पर मैं अपने विषय पर अडिग रहा. इससे लाभ यह था कि शायरी
और हिन्दी साहित्य का अध्ययन दोनो साथ करने से दोनो कार्यों में एक दूसरे का लाभ मिलता
रहा. दूसरा लाभ यह हुआ कि हिन्दी विषय पढ़ने से मेरा मनोरंजन भी होता जाता था और मैं
अपने-आप को और ज्यादा तरो-ताजा महसूस करता था. इससे अध्ययन हेतु मेरी ऊर्जा बनी रहती
थी.
प्रश्न-7: आपने कौन-कौन सी पुस्तकें पढ़ीं?
उत्तर: 2010 ई. में मैं जब शिक्षक के तौर पर गोपालगंज से स्थानांतरण पाकर पटना
आया तो इतिहास, हिंदी साहित्य और सामान्य अध्ययन विषय को बिलकुल
अद्यतन रूप में नये सिरे से पढ़ना शुरू किया.
भारतीय इतिहास में ए.एल.बाशम, रोमिला थापर, डी.एन.झा, झा एवं श्रीमालीकी पुस्तकें बहुत ध्यान से पढी.
विश्व इतिहास के लिए दीनानाथ वर्मा तथा जैन एवं माथुर को पढ़ा. साथ ही मणिकान्त सिंह
और रजनीश राज के नोट्स भी पढ़े.
हिन्दी साहित्य के लिए भाषा विज्ञान पर विशेष जोर देते हुए हिन्दी भाषा का इतिहास
कई बार पढ़ा. इस सम्बंध में हेमन्त कुकरेती की पुस्तक पढ़ी. साथ ही बलराम तिवारी और विकास दिव्यकिर्ती के नोट्स भी पढ़े.
प्रश्न-8: आप
पहले शायर के रूप में जाने जाते थे और अब नौकरशाह बनने जा रहे हैं. आपको सबसे बड़े
नौकरशाह और सबसे लोकप्रिय शायर में से किसी एक को चुनने कहा जाय तो आप किसको
चुनेंगे?
उत्तर: निस्संदेह
शायर बनना पसंद करूँगा. नौकरशाही तो आखिर नौकरी ही है जिसमें बने-बनाये नियमों और आदेशों
का कुशलतापूर्वक पालन करना पड़ता है जबकि शायरी करते समय तो आप शहंशाह होते हैं. किसी
चीज को बिलकुल उसी अंदाज में लिखते हैं जैसा कि आप चाहते हैं. शायरी में किसी के आदेशों
का पालन नहीं करना पड़ता.
प्रश्न-9: आज मोबाइल और सोशल साइट्स के जमाने में जबकि
लोगों के पास साहित्य को लिखने-पढ़ने हेतु न तो समय है न ही रूचि ऐसे युग में साहित्य
की रचना क्यों आवश्यक है?
उत्तर: आज के दौर में परिवार, समाज और राष्ट्र के स्तर पर विवादों की मुख्य जड़ संवेदनहीनता है. साहित्य मनुष्य
को संवेदंनशील बनाता है अत: आज के दौर में इसकी आवश्यकता सर्वाधिक है. हाँ, पाठकों में रूचि बनाये रखने के विषय पर भी सोचना पड़ेगा.
प्रश्न-10: आजकल साहित्य में एक बहुत बड़ा युद्ध चल रहा
है- गज़ल या गीत लिखनेवाले छन्दमुक्त को पाठकों से दूर और आत्ममुग्ध विधा बताते हैं
जबकि छन्दमुक्त रचनाकार मात्र स्वयं को समकालीन मानते हैं और गीत या गज़ल लिखनेवाले
को मध्ययुगीन दोयम दर्जे के रचनाकार बताते हैं. आपका इस विषय पर क्या कहना है?
उत्तर: छन्दमुक्त कविता में शिल्प का महत्व कम होता है लेकिन
शिल्प की उपस्थिति वहाँ भी होती है इसलिए वह कविता कहलाती है वरना एक गद्य बनकर रह
जाती. भाव प्रबल होने के कारण आलोचकों ने छन्दमुक्त कविता को अधिक महत्व दिया है. आज
के समय की जटिलता इस विधा में सम्पूर्णता के साथ अभिव्यक्त हो पाती है. लेकिन हमें
समझना होगा कि छन्दबद्ध रचना में शिल्प के प्रबल होने के साथ-साथ कथ्य का भी उतना ही
महत्व होता है. छन्दमुक्त में भी एक आन्तरिक लय होती है. बिना लय के कविता का निर्माण
नहीं हो सकता. छन्दबद्ध में यह लय बाह्य स्तर पर भी दृष्य होता है.
प्रश्न-11: आप नए रचनाकारों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: चकाचौंध से स्वयं को बचाते हुए बिना किसी ग्लैमर
के आकर्षण के रचनाकर्म में संलग्न रहें. साथ ही स्थापित लेखकों/ कवियों की रचनाएँ अवश्य
पढ़ें. वाणी में संयम आवश्यक है. अपने से वरीय की पूजा न करें क्योंकि इससे स्वयं स्वतंत्र
सोच विकसित करने में बाधा पहुँचेगी लेकिन बड़ों का आदर करें और उनके प्रति विनम्रता
अवश्य दिखाएँ ताकि उनसे बहुत कुछ सीख सकें.
प्रश्न-12: रचनाकर्म में आपकी अगली योजना क्या है?
उत्तर: आगे एक उपन्यास लिखने की इच्छा है. जी चाहता है कि एक महीने के लिए कहीं चला जाऊँ और एकान्त में प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हुए उपन्यास की रचना करूँ. उपन्यास में मैं अपने जीवन-संघर्ष को अलग रूप में प्रतिचित्रित करना चाहता हूँ.
प्रश्न-13: आप अपनी एक गज़ल पाठकों को सुनाइये.
उत्तर: लीजिए
ख़ुद पर तू इतराना सीख
ख़्वाबों को सहलाना सीख
तूफ़ां से घबराना क्या
तूफ़ां से टकराना सीख
अपनों ने ठुकराया तो
गैरों को अपनाना सीख
उलझी जीवन की डोरी
रिश्तों को सुलझाना सीख
माना नंगी बस्ती है
लेकिन तू शरमाना सीख
नाज़ुक दिल है, टूटेगा
अश्कों से बहलाना सीख
(-“दिल्ली चीखती है”
से)
.......
साक्षात्कार देनेवाले- समीर परिमल
साक्षात्कारकर्ता- हेमन्त दास 'हिम'
ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
.......
साक्षात्कार देनेवाले- समीर परिमल
साक्षात्कारकर्ता- हेमन्त दास 'हिम'
ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
समीर परिमल बीपीएससी में सफलता के बाद अपने परिवार के साथ माँ के हाथों मिठाई खाते हुए |
राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा एक शायर के रूप में सामानित होते.हुए |
पथ निर्मान मंत्री के हाथों सम्मान ग्रहण करते हुए |
अपनी तैयारी के दौरान साथी रहे रेलवे के डीआरएम दिलीप कुमार और प्रसिद्ध लोकगायिका नीतू नवगीत के साथ |
कवि-मित्रों के साथ |
अपनी धर्मपत्नी रूपांजलि के साथ |