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Friday, 31 August 2018

शायर समीर परिमल - युगों तक चले प्रयासों के बाद बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में चयनित

ख़ुद पर तू इतराना सीख / ख़्वाबों को सहलाना सीख



कल तक दशकों से कार्यरत प्राथमिक विद्यालय का शिक्षक आज बिहार वित्त सेवा का सदस्य बन कर एक मिसाल कायम करने जा रहा है. इन्होंने दिखा दिया है कि अगर आप अपने चुने हुए पथ पर पूरे मन से चलते रहेंगे तो मंजिल मिलेगी ही चाहे देर से ही सही. राष्ट्रीय स्तर पर अपनी गज़ल की किताब दिल्ली चीखती हैसे धमाकेदार पहचान बनानेवाले समीर परिमल ने एक और अपूर्व कारनामा कर दिखाया है. 26 वर्षों की अत्यधिक लम्बी अवधि में प्रयास करने के बाद बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा  में अंतिम रूप से सफलता प्राप्त कर शानदार विजय पाई है.

वैसे समीर परिमल पहले ही शायरी में इतनी अधिक लोकप्रियता अर्जित कर चुके हैं कि बिहार वित्त सेवा मात्र एक मनोवैज्ञानिक उपलब्धि सी लग रही है. बस यह लग रहा है कि जिस कार्य में वर्ष 1992 में प्रथम प्रयास में इंटरव्यू तक पहुँच कर शुरुआत की वह पूर्ण हुआ. एक अधूरापन तो मिटा. वेतन तो पहले ही उस स्तर पर पहुँच चुका है किन्तु अब रुतबे में कुछ इज़ाफा होगा जो असफलता से पनपी हीनता की कुछ ग्रंथियों को साफ कर और अधिक तेज के साथ रचनाकर्म करने को प्रवृत करेगा. 

प्रश्न-1: आप अपनी कहानी खुद बताएँ.
उत्तर:  1991 में बीएससी (भौतिकी प्रतिष्ठा) में उत्तीर्ण होने के बाद मैंने 1992 ई. में 38वीं बीपीएससी की परीक्षा पहली बार दी थी और इंटरव्यू तक पहुँचा था.  भारतीय इतिहास, मानवशास्त्र, अंतर्राष्ट्रीय विधि विषय लिये थे. पहली बार बीपीएससी में प्रारम्भिक परीक्षा (पीटी) का प्रचलन आरम्भ हुआ था. तब से कई बार रुक-रुक कर परीक्षाएँ देता रहा और 53वीं से 55वीं वाली परीक्षा में इतिहास और हिन्दी विषय लेकर इंटरव्यू के बाद मात्र 4 अंकों से पिछड़ गया. अब जबकि 56वीं से  59वीं में मैं अंतिम रूप से चयनित हो चुका हूँ इसके बाद अगली बार से मात्र एक विषय लेने का युग आ रहा है. यानी कि बीपीएससी के विभिन्न परिवर्तनकारी युगों का गवाह रहते हुए तीन दशकों में मैं परीक्षार्थी बना रहा. इस बीच मैंने राजकीय कन्या  विद्यालय में शिक्षक की नौकरी भी ज्वाइन कर ली और मेरा विवाह भी  हो गया  तीन बच्चे भी हो गए.

हालाँकि दो बहनों का विवाह हो गया था लेकिन एक बड़े भाई और एक बहन डाउन सिंड्रोम नामक मानसिक रूप से पूरी तरह से विकलांग कर देनेवाली खतरनाक बिमारी से पीड़ित थे. भाई की 2010 ई. में मृत्यु हो गई लेकिन बहन की देख-भाल अभी भी हो रही है और वह मेरे साथ ही रहती है. एक भाई और एक बहन की मानसिक विकलांगता से जीवन संघर्षपूर्ण तो रहा लेकिन मैंने अपनेआप को शायरी में लगाया और उसमें काफी लोकप्रियता प्राप्त की. मेरी एक पुस्तक दिल्ली चीखती हैआने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर मेरी पहचान और भी ज्यादा कायम हो गई और देशभर में मेरे हजारों प्रशंसक हैं. पहली बार इंटरव्यू में जाकर असफल हो जाने के बाद भी कई बार इंटरव्यू तक पहुँचा और असफल होता रहा सो मन में एक टीस बनी रही कि क्या मैं अंतिम सफलता पाने के योग्य ही नहीं हूँ. 26 वर्षों के बाद इस बार मेरा वह मिथक भी टूट गया और अपने माता-पिता के आशीर्वाद से मैं अब बिहार वित्त सेवा का सदस्य बनने जा रहा हूँ.

प्रश्न-2: आपके परिवार का आपकी तैयारी में कैसा रवैया रहा?
उत्तर: मैं ग्राम- भरतपुरा, प्रखण्ड-अनुमंडल- हथुआ, जिला- गोपालगंज का रहनेवाला हूँ. मेरे पिताजी स्व. मधुसूदन प्रसाद सरकारी विद्यालय के प्रधानाध्यापक थे. वे सदा से मेरी प्रेरणा के स्रोत रहे और 1993 ई. में विद्यालय के प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत होने के बाद भी मेरे गृह जिला गोपालगंज के गाँव से दूर पटना में भेजकर मेरा खर्च वहन करते रहे ताकि मैं बीपीएससी की तैयारी कर  पाऊँ. पिताजी का देहावसान 2012 में हो गया. मेरी माँ श्रीमती तारादेवी है जो एक घरेलु महिला हैं. हमलोग तीन बहन और दो भाई थे माता श्रीमती तारा देवी और पत्नी रुपांजलि का मेरी सफलता में बहुत सहयोग रहा है. ज़िंदगी के कठिन संघर्ष में इन दोनों ने लगातार मेरे हौसला बनाये रखा. मेरी सफलता में मुझसे ज्यादा खुशी मेरी धर्मपत्नी को है.

प्रश्न-3: आपने बी.एस.सी. (भौतिकी प्रतिष्ठा) की और भी अनेक डिग्रियाँ प्राप्त कीं. फिर बीपीएससी में विषय क्यों बदला?
उत्तर: मेरा जीवन इतना संघर्षपूर्ण रहा कि मैंने महसूस किया कि भौतिकी जैसे संवेदनहीन विषय को लेकर मैं सफल नहीं हो सकता. शायरी की ओर उन्मुख हो ही चुका था और मेरी पैठ भी उसमें बनती जा रही थी इसलिए हिन्दी साहित्य एक स्वाभाविक चुनाव था. इतिहास का संस्कृति से गहरा रिश्ता रहा है और साहित्य पर भी उसका गहरा असर रहा है. इसलिए मैंने इतिहास विषय भी लिया.
हाँ अन्य डिग्रियों में मैंने एलएलबी, पत्राचार से पीजीडीबीए (सिम्बायोसिस, पूणे) के अलावे सेवाकालीन एकवर्षीयशिक्षक प्रशिक्षण भी प्राप्त किया.

प्रश्न-4: क्या बिहार वित्त सेवा ज्वाइन करने के बाद भी साहित्यकर्म जारी रहेगा?
उत्तर: बिलकुल. साहित्यकर्म मेरी रग-रग में है और इसे करते समय मुझे ऐसा लगता नहीं कि मैं कुछ कर  रहा हूँ. यह बस हो जाता है. कुछ भी सोचकर नहीं लिखता. जो  कार्य बिना प्रयास के हो रहा है वह तो जारी रहेगा ही.

प्रश्न-5: आप बिहार वित्त सेवा में आने के पहले शायर के रूप में जाने जाते रहे हैं. क्या आपने रचनाकर्म के दौरान कोई राजनीतिक, सामाजिक या प्रशासनिक बाधा महसूस की? क्या आपको लगा कि आप जो कहना चाह रहे हैं बिना रोक-टोक के कह पा रहे हैं?
उत्तर: मैं किसी राजनीतिक दल या समूह का कैडर नहीं हूँ हाँ मेरा झुकाव किसी विचारधारा की ओर हो सकता है लेकिन मैं अपने-आप को उस विचारधारा के प्रवक्ता या कार्यकर्ता के तौर पर नहीं देखता. मेरी बातें किसी प्रकार के विचारवाद से रहित होतीं हैं अत: मुझे कोई बाधा कभी महसूस नहीं हुई अपनी बातों को रखने में. हाँ, यह कोशिश जरूर रहती है कि साहित्य या शायरी को बाजारवाद से बचाए रखूँ. किसी के लिए कोई फरमाइशी शायरी मैं नहीं कर सकता. जब मेरे अंदर से आवाज आती है तभी मैं लिखता हूँ और वही लिखता हूँ जैसी आवाज आती है. वैसे भी साहित्य की भूमिका एक रचनात्मक विपक्ष की होती है जो सत्ता की बेवजह आलोचना नहीं करता बल्कि उसकी कमियों को बताता है ताकि जनता के हित में सुधार किये जा सकें..

प्रश्न-6: क्या हिन्दी में रचनाकर्म ने आपको बीपीएससी में सफलता पाने में कोई भूमिका निभाई?
उत्तर: काफी ज्यादा. जैसा कि मैंने आपके पहले प्रश्न के उत्तर में कहा है कि प्रारम्भिक दौर में हिन्दी साहित्य मेरा वैकल्पिक विषय नहीं था. किन्तु 2008-09 में 48वीं से 52वीं वाली परीक्षा में मैंने मानवशास्त्र को बदल कर हिन्दी साहित्य को वैकल्पिक विषय के रूप में ले लिया. पर मेरा दुर्भाग्य था कि ठीक उसी वर्ष मानवशास्त्र बहुत अधिक सफल विषय रहा था और हिन्दी साहित्य लेनेवाले बहुत बुरी स्थिति में रहे थे. मेरा भी चयन नहीं हो पाया. पर मैं अपने विषय पर अडिग रहा. इससे लाभ यह था कि शायरी और हिन्दी साहित्य का अध्ययन दोनो साथ करने से दोनो कार्यों में एक दूसरे का लाभ मिलता रहा. दूसरा लाभ यह हुआ कि हिन्दी विषय पढ़ने से मेरा मनोरंजन भी होता जाता था और मैं अपने-आप को और ज्यादा तरो-ताजा महसूस करता था. इससे अध्ययन हेतु मेरी ऊर्जा बनी रहती थी.

प्रश्न-7: आपने कौन-कौन सी पुस्तकें पढ़ीं?
उत्तर: 2010 ई. में मैं जब शिक्षक के तौर पर गोपालगंज से स्थानांतरण पाकर पटना आया तो इतिहास, हिंदी साहित्य और सामान्य अध्ययन विषय को बिलकुल अद्यतन रूप में नये सिरे से पढ़ना शुरू किया.

भारतीय इतिहास में ए.एल.बाशम, रोमिला थापर, डी.एन.झा, झा एवं श्रीमालीकी पुस्तकें बहुत ध्यान से पढी. विश्व इतिहास के लिए दीनानाथ वर्मा तथा जैन एवं माथुर को पढ़ा. साथ ही मणिकान्त सिंह और रजनीश राज के नोट्स भी पढ़े.

हिन्दी साहित्य के लिए भाषा विज्ञान पर विशेष जोर देते हुए हिन्दी भाषा का इतिहास कई बार पढ़ा. इस सम्बंध में हेमन्त कुकरेती की पुस्तक पढ़ी. साथ ही बलराम तिवारी और विकास दिव्यकिर्ती के नोट्स भी पढ़े. 

प्रश्न-8: आप पहले शायर के रूप में जाने जाते थे और अब नौकरशाह बनने जा रहे हैं. आपको सबसे बड़े नौकरशाह और सबसे लोकप्रिय शायर में से किसी एक को चुनने कहा जाय तो आप किसको चुनेंगे?
उत्तर: निस्संदेह शायर बनना पसंद करूँगा. नौकरशाही तो आखिर नौकरी ही है जिसमें बने-बनाये नियमों और आदेशों का कुशलतापूर्वक पालन करना पड़ता है जबकि शायरी करते समय तो आप शहंशाह होते हैं. किसी चीज को बिलकुल उसी अंदाज में लिखते हैं जैसा कि आप चाहते हैं. शायरी में किसी के आदेशों का पालन नहीं करना पड़ता.

प्रश्न-9: आज मोबाइल और सोशल साइट्स के जमाने में जबकि लोगों के पास साहित्य को लिखने-पढ़ने हेतु न तो समय है न ही रूचि ऐसे युग में साहित्य की रचना क्यों आवश्यक है?
उत्तर: आज के दौर में परिवार, समाज और राष्ट्र के स्तर पर विवादों की मुख्य जड़ संवेदनहीनता है. साहित्य मनुष्य को संवेदंनशील बनाता है अत: आज के दौर में इसकी आवश्यकता सर्वाधिक है. हाँ, पाठकों में रूचि बनाये रखने के विषय पर भी सोचना पड़ेगा.

प्रश्न-10: आजकल साहित्य में एक बहुत बड़ा युद्ध चल रहा है- गज़ल या गीत लिखनेवाले छन्दमुक्त को पाठकों से दूर और आत्ममुग्ध विधा बताते हैं जबकि छन्दमुक्त रचनाकार मात्र स्वयं को समकालीन मानते हैं और गीत या गज़ल लिखनेवाले को मध्ययुगीन दोयम दर्जे के रचनाकार बताते हैं. आपका इस विषय पर क्या कहना है?
उत्तर: छन्दमुक्त कविता में शिल्प का महत्व कम होता है लेकिन शिल्प की उपस्थिति वहाँ भी होती है इसलिए वह कविता कहलाती है वरना एक गद्य बनकर रह जाती. भाव प्रबल होने के कारण आलोचकों ने छन्दमुक्त कविता को अधिक महत्व दिया है. आज के समय की जटिलता इस विधा में सम्पूर्णता के साथ अभिव्यक्त हो पाती है. लेकिन हमें समझना होगा कि छन्दबद्ध रचना में शिल्प के प्रबल होने के साथ-साथ कथ्य का भी उतना ही महत्व होता है. छन्दमुक्त में भी एक आन्तरिक लय होती है. बिना लय के कविता का निर्माण नहीं हो सकता. छन्दबद्ध में यह लय बाह्य स्तर पर भी दृष्य होता है.

प्रश्न-11: आप नए रचनाकारों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

उत्तर: चकाचौंध से स्वयं को बचाते हुए बिना किसी ग्लैमर के आकर्षण के रचनाकर्म में संलग्न रहें. साथ ही स्थापित लेखकों/ कवियों की रचनाएँ अवश्य पढ़ें. वाणी में संयम आवश्यक है. अपने से वरीय की पूजा न करें क्योंकि इससे स्वयं स्वतंत्र सोच विकसित करने में बाधा पहुँचेगी लेकिन बड़ों का आदर करें और उनके प्रति विनम्रता अवश्य दिखाएँ ताकि उनसे बहुत कुछ सीख सकें. 

प्रश्न-12: रचनाकर्म में आपकी अगली योजना क्या है?

उत्तर: आगे एक उपन्यास लिखने की इच्छा है. जी चाहता है कि एक महीने के लिए कहीं चला जाऊँ और एकान्त में प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हुए उपन्यास की रचना करूँ. उपन्यास में मैं अपने जीवन-संघर्ष को अलग रूप में प्रतिचित्रित करना चाहता हूँ.

प्रश्न-13: आप अपनी एक गज़ल पाठकों को सुनाइये.

उत्तर: लीजिए 
ख़ुद पर तू इतराना सीख
ख़्वाबों को सहलाना सीख

तूफ़ां से घबराना क्या
तूफ़ां से टकराना सीख

अपनों ने ठुकराया तो
गैरों को अपनाना सीख

उलझी जीवन की डोरी
रिश्तों को सुलझाना सीख

माना नंगी बस्ती है
लेकिन तू शरमाना सीख

नाज़ुक दिल है, टूटेगा
अश्कों से बहलाना सीख
(-दिल्ली चीखती है” से)
.......
साक्षात्कार देनेवाले- समीर परिमल
साक्षात्कारकर्ता- हेमन्त दास 'हिम'
ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com


समीर परिमल बीपीएससी में सफलता के बाद अपने परिवार के साथ माँ के हाथों मिठाई खाते हुए

राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा एक शायर के रूप में सामानित होते.हुए

पथ निर्मान मंत्री के हाथों सम्मान ग्रहण करते हुए



अपनी तैयारी के दौरान साथी रहे रेलवे के डीआरएम दिलीप कुमार और प्रसिद्ध लोकगायिका नीतू नवगीत के साथ


अपने मित्र  हेमन्त 'हिम' के साथ
दूरदर्शन पर कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग के दौरान

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित अपनी बहन के साथ


कवि-मित्रों के साथ


अपनी धर्मपत्नी रूपांजलि के साथ 

Wednesday, 29 August 2018

सुनील कुमार की गज़ल अंग्रेजी पद्यानुवाद के साथ (Poem by Sunil Kumar with poetic English translation)

गज़ल- 1:  माँ 
Poem-1: Mother




 माँ का आँचल धरती अम्बर लगता है
गोद सलोना मखमल बिस्तर लगता है
The fold of mother is the earth and heaven
The lap is velvet bed so pretty  a terrain

प्रेम शजर उसने ही दिल में बोया है
दिल उसका परियों सा सुंदर लगता है
She herself has grown the tree of love
Her heart is as beautiful as a fairy, listen

माँ से ही घर की शोभा है उसके बिन
सूना सूना सब अगनई घर लगता है
She is the glory of the house, without her
The courtyard is lonely, pallid and plain

मन के भावों की उसको है परख बड़ी
दिल उसका इक नेह समंदर लगता है
She has a great knowledge of our feelings
Her heart is like an affectionate bubbly ocean

माँ चौखट पर अक्सर मेरी राह तके
सुखद सुहाना मन घर आकर लगता है
Mom often looks for me on the door frame
I reach a soothing serene home, again

मेरी माँ दिल जाँ में मेरे बसती है
पावन मंदिर मन के अंदर लगता है
My mother dwells in my heart and soul
A holy temple is within my home, certain.


गज़ल-2

आदमी हार थक जब बेचारा हुआ
वक्त का फिर नया सा इशारा हुआ

 रहमतों से बरसती दुआ जो मिली
फिर किसी ना किसी का सहारा हुआ

हौसले खुद जो हासिल करें जिंदगी
हासिले-आरज़ू फिर तुम्हारा हुआ

जिंदगी पुर सुकूँ बीत जाये यहाँ
आदमी आदमी का ही मारा हुआ

इश्क़ के नाम पर घाव ही घाव हैं
दिल्लगी में मुझे भी ख़सारा हुआ

आशनाई सनम की नहीं रास अब
चाहतों नफरतों से किनारा हुआ

चार दिन चांदनी में कटी जो सफ़र
जान ज़ालिम ज़माना अंगारा हुआ
शब्दार्थ:  ख़सारा : नुकसान, हानि, loss. आशनाई : प्रेम, love, दोस्ती, friendship.
.....


कवि- सुनील कुमार / Poet- Sunil Kumar
कवि का लिंक / Link of the poet- Click here
अंग्रेजी पद्यानुवाद -हेमन्त दास 'हिम' / Poetic Translation into English - Hemant Das 'Him'
कवि-परिचय: सुनील कुमार मुख्यत: प्रेम के विषय पर लिखनेवाले गज़लगो हैं जो पिछले कुछ वर्षों से साहित्यकर्म  में काफी सक्रिय हैं. ये पटना उच्च न्यायालय में कार्यरत एक अधिकारी हैं.
Intoduction of the poet: Sunil Kumar is a poet who concentrates mainly on feeling of love. He is an officer in Patna Hingh Court and has been very active in literary activities since last couple of  years.  











Monday, 27 August 2018

आगमन की प्रथम मासिक बैठक एवं कवि-गोष्ठी पटना में 25.8.2018 को सम्पन्न

उडना चाहता हूँ आसमानों में



खुला आकाश हो और मौसम सुहावना. ऐसे में जमावड़ा हो कवि और कवयित्रियों का तो बात ही कुछ और है! एक से बढ़कर एक भावों-विचारों के विविध रंगों को बिखेरते हुए कविताओं का पाठ हो तो श्रोतागण तो झूम उठेंगे ही.

साहित्य, कला एवं संस्कृति  के क्षेत्र में नयी प्रतिभाओ को मंच प्रदान करने के लक्ष्य को लेकर स्थापित आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह है जिसमें महिलाओं और पुरुषों दोनो की महत्वपूर्ण भागीदारी रहती है.

इसी क्रम में 25.8.2018 को पटना के गांधी मैदान में आगमन की पहली मासिक गोष्ठी सह काव्यपाठ का आयोजन किया गया जिसमें अनेक कवियों ने उपस्थिति दर्ज कराई तथा काव्यपाठ किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती कृष्णा सिंह ने, संचालन वीणाश्री हेंब्रम तथा धन्यवाद ज्ञापन कवि संजय 'संज' एवं प्रकाश यादव निर्भीक ने संयुक्त रूप से किया।  

कवि मधुरेश नारायण ने सावन पर मनमोहक गीत गाया 
हरी चुनरिया ओढ़ के धरती सावन में इतरायी
आतुर धरा नभ से मिलने को लेकर रही अंगड़ाई

कुमारी स्मृति ने सुनाया-
जो कालजयी कहलाते हैं, वो कभी हार नहीं मानते,
न कभी बिचलित होते हैं, अपने कर्म पथ से

कवियत्री वीणाश्री ने सुनाया कि 
स्त्री सिर्फ तब तक तुम्हारी होती है
जब तक वो तुमसे रूठती और लड़ लेती है..!

कवि संजय 'संज' ने एक मजबूत इरादों से लवरेज कविता सुनाया कि 
'उडना चाहता हूं आसमानों में
शुमार होना चाहता हूं कारनामों में
इंसानियत बची है कम अब इंसानों में

श्रीमती कृष्णा सिंह ने स्त्रियों को शिक्षित करने और उन्हें मजबूत बनने वाली रचना सुनाई कि एक दिन मैंने पूछा अपनी माता से कि हे माता! तुमने मुझे इस जालिम जमाने की जमीन पर जन्म क्यों दिया। श्रीमती कृष्णा सिंह ने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि आगमन का पटना में आगमन बहुत उत्साहित करने वाला है जिससे ना सिर्फ स्थापित कवियों और रचनाकारों को एक अंतरराष्ट्रीय पहचान रखने वाली संस्था का मंच मिलेगा अपितु नवोदित रचनाकारों को भी सीखने और प्रदर्शन करने का शुभ अवसर मिलेगा। उन्होंने आगमन का बहुत जोश से स्वागत कर अपनी शुभकामनाएं दीं।

नेहा नुपुर ने सच्चाई स्वीकार करने और स्वयं में बदलाव लाने से प्रेरित रचना सुनाया कि 
कुछ जो आप बदल न सकें स्वीकार कीजिए
कुछ जो आप स्वीकार न कर सकें बदल दीजिये

ज्योति मिश्रा ने सावन के मस्त मलंगों के लिए सुनाया कि 
मस्त मलंग फकीर हैं हम तो 
ना कछु अपना है न पराया 
जो कुछ मिलता खा पी लेते
चुपड़ी पर नहिं जी ललचाया 

प्रकाश यादव निर्भीक ने समाज से सवाल कर कविता सुनाया कि 
क्यों पैदा हुई मैं उस जगह 
जहाँ महफूज नहीं मेरी आबरू

हास्य कवि विश्वनाथ वर्मा ने को मायके से चांदी के बेलन लाने का ज़िक्र कर दहेज प्रथा पर व्यंग्य कसा।

प्रसिद्ध चित्रकार सिद्धेश्वर ने भी दहेज प्रथा पर अपने विचार को शेरों में ढाला।

नसीम अख्तर ने शेर सुनाये - 
अपने ही घर की तबाही से हुए मशहूर हम 
क्या गिला करते किसी से ख़ुद ही बने दस्तूर हम
खिंच गई ऐसी लकीरें हर दरो दीवार पर
रफ्ता-रफ्ता हो गए एक दूसरे से दूर हम

सुनील कुमार ने बारिश और मौसम के अनुसार ग़ज़ल पढ़ा-
कजरारे नैन उसके माथे पे बिंदियाँ हैं
फिर आज वो गिराती नज़रों से बिजलियाँ है

युवा कवि विपुल ने सुनाया- 
सूरज तो पूरा निकला था
किरणें आड़ी तिरछी क्यों
चाँद तो पूरण वाला था
ये अमा सिसक कर महकी क्यों?

युवा रचनाकार कृष्णकांत ने तरन्नुम में एक बहुत उम्दा रचना गाकर सुनाया और तालियां बटोरी। कई अन्य कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।

पहली मासिक गोष्ठी और बारिश होने के बावजूद कवियों के जमावड़े तथा उम्दा रचनाओं के प्रदर्शन से अभिभूत हो कर संजय संज एवं प्रकाश यादव 'निर्भीक' ने आये हुए कवि-कवयित्रियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापन किया और कहा कि आगमन के बैनर तले अब पटना के कार्यक्रम में बहुत गुणी और अच्छे कवियों, कवियत्रीयों और रचनाओं को सुनने का अवसर मिलेगा।

कहना न होगा कि रिमझिम बारिश के फुहारों के बीच सतरंगी कविताओं के समावेश ने सभी का मन मोह लिया।
...............
 आलेख - मधुरेश नारायण / संजय कुमार संज
छायाचित्र- वीणाश्री 
ईमेल- eiditorbiharidhamaka@yahoo.com
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