लौटा हूँ जबसे अपना मैं ईमान बेचकर / जिंदा हूँ या मरा हूँ मुझे कुछ पता नहीं
बात हुई ईमान की, आदर्शों की और मानव को पशु जाति से अलग मानव बनानेवाले प्रेम और नेकनीयती की. मौका था जीवन भर संघर्ष कर उच्च आदर्शों और संस्कारों की प्रेरणा देनेवाले शिक्षक और तबलावादक स्व. मधुसूदन प्रसाद की पुण्यतिथि. स्व. प्रसाद की चौथी पुण्यतिथि पर उनके पुत्र और नई पीढ़ी में भारत के अत्यंत लोकप्रिय गज़लगो समीर परिमल के द्वारा साहित्यिक सांस्कृतिक और सामाजिक संस्था सामयिक परिवेश के तत्वावधान में एक श्रद्धांजलि सभा एवं कवि-गोष्ठी का आयोजन अभियन्ता नगर, दानापुर के महासरस्वती टावर में 6.5.2018 को किया गया. गोष्ठी का संचालन चर्चित युवा शायर डॉ. रामनाथ शोधार्थी ने किया. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में कवि-कवयित्रियों के साथ-साथ सामयिक परिवेश की अध्यक्षा ममता मेहरोत्रा और प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ राजीव रंजन प्रसाद के अलावे स्व. प्रसाद के परिजनों ने भाग लिया.
पहले सत्र में उपस्थित लोगों ने स्व. मधुसूदन प्रसाद के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की और अपने विचार व्यक्त किये. विचार प्रकट करनेवालों में राजीव रंजन प्रसाद, राजनीतिज्ञ और पार्टी प्रवक्ता, आनंद बिहारी प्रसाद, परिजन, ममता मेहरोत्रा, समाजसेविका एवं साहित्यकार समूह से कासिम खुरशीद, संजय कुमार कुंदन, परवेज आलम शामिल थे. वक्ताओं ने कहा कि यद्यपि उन्होंने स्व.प्रसाद को उनके जीवनकाल में नहीं देखा है लेकिन उन्हीं के उच्च आदर्शों के मूर्त रूप में समीर परिमल को देख रहे हैं और आज जो ये देश में शायरी की दुनिया में अपना बड़ा मुकाम बना चुके हैं वह सब उनके पिता के संगीतप्रेम और साहित्यप्रेम के संस्कारों का ही फल है.
दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी चली जिसका संचालन डॉ. रामनाथ शोधार्थी ने किया. सबसे पहले समीर परिमल ने अपने पिता पर कुछ पंक्तियाँ सुनाईं-
दूर आँखों से कर गए वालिद / कौन कहता है कि मर गए वालिद
मौत उनकी नहीं ये मेरी थी / आज मुझमें उतर गए वालिद
फिर उन्होंने अपनी गज़ल में अहसास के अंदर छुपकर खंजर चलानेवाले की बात की-
उसी कातिल का सीने में तेरे खंजर रहा होगा
कि जो छुप कर बहुत अहसास के अंदर रहा होगा
सूरज ठाकुर बिहारी को जब अपनों ने अपना नहीं समझा तो उन्होंने अपना रिमोट दिल को दे दिया-
मेरे अपनों ने मुझे अपना समझा ही नहीं
हम वही करते रहे जो दिल मेरा कहता रहा
नेहा नारायण सिंह यद्यपि प्रेम और सौहार्द पर अपनी कविता पढ़ना चाहती थीं लेकिन जमाने ने बार-बार स्त्रियों पर जघन्य अपराध करके उन्हें पुन: स्त्री विमर्श पर कविताएँ पढ़ने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने अपनी दो सशक्त रचाएँ सुनाईं जिनके शीर्षक थे- "वो रात कैसी थी" और "अंत की गुहार". कुछ पंक्तियाँ थीं-
क्रांतिवीर बन हम युद्ध लड़ते हैं
चण्डी काली का रूप अब हम धरते हैं
क्रांतिवीर बन हम युद्ध लड़ते हैं
चण्डी काली का रूप अब हम धरते हैं
कुन्दन आनन्द यद्यपि बिलकुल युवा अवस्था में हैं लेकिन इनकी शायरी में अक्सर सम्पूर्ण जीवन के निचोड़ से उत्पन्न हुआ वैराग्य भाव परिलक्षित होता है. कुछ पंक्तियाँ उन्होंने यूँ पढीं-
चंद पैसों के उजले कफन ओढ़ कर
हम चले जाएंगे ये जहाँ छोड़ कर
अहमद सिद्दीकी ने सड़क पर प्यार करने का ऐलान कर दिया-
सारी दुनिया मचल के दौड़ेगी / करके देखो तो प्यार सड़कों पर
किसकी आमद की है उम्मीद अहमद / छा गई है बहार सड़कों पर
वरिष्ठ और जाने-माने शायर कासिम खुरशीद ने एक जोरदार गज़ल सुनाई-
बारिशों के शोर में भी / ये जमीं तो नम नहीं है
जिनकी खातिर मर गए हम / उनके घर मातम नहीं है
गणेश जी बागी ने अपनी स्थिति को चलनी से पानी भरने जैसी बताई-
पानी भरने मैं निकला हूँ / ले हाथों में चलनी साहब
नही सुरक्षित घर में बेटी / धरम-करम बेमानी साहब
फिर उन्होंने बेटियों की विदाई पर भावपूर्ण कविता सुनाई- "चिरैया हूँ इस आँगन की".
प्रत्यूष चंद्र मिश्र कविताओं में देसीपन के लिए जाने जाते हैं. 'पुराने मित्र' और 'लौकी' शीर्षक कविताओं के द्वारा इन्होंने आज के महानगरीय मशीनी जीवन जीने हेतु अभिशप्त लोगों को सहज ग्राम्य जीवन की ताजा हवा से रू-ब-रू कराकर प्राणवायु प्रदान की.
अविनाश अम्न आजकल नाप-तौल कर जीने लगे हैं. उनकी सुनिये-
ज़िंन्दगी इस तरह से जीते हैं
जैसे दवा नाप तौल कर पीते हैं
उन्हीं की पंक्तियाँ थीं-
छुपाई अपनी जान थी जिस तोते में
खुद अपने हाथ से उसका गला मरोड़ दिया
विकास राज अपने दिल को प्रेमिका के सीने में खोजने लगे-
मेरा दिल खो गया देखो जरा तुम
तेरे सीने के अंदर तो नहीं है
अक्स समस्तीपुरी अपने सुंदर चेहरे पर आकर्षित होनेवाली हसीनाओं से परेशान हैं. कहते हैं-
मेरी शक्ल पर मत जा तू
अंदर अंदर टूटा हूँ
फिर उपेक्षा करनेवालों से कहते हैं कि-
कहानी मेरे ही किरदार पर टिकी हुई है / कहानी से मुझको तू निकाल नहीं
अस्मुरारी नन्दन मिश्र ने अपनी कविता के माध्यम से लोटे और बेटे की कहावत के अंदर के मर्म को उजागर कर दिया-
लोटा और बेटा / चमकता है बाहर ही कहावत है एक किंतु उसकी चमक / होती है उस हथेली की जो खुरदरा गयी / मांजते-मांजते
लोटा और बेटा / चमकता है बाहर ही कहावत है एक किंतु उसकी चमक / होती है उस हथेली की जो खुरदरा गयी / मांजते-मांजते
ज्योति स्पर्श ने सज़दे में सर कटने के डर की बात की-
मुझे सज़दे में सर कटने का डर है
मैं फिर भी सर झुकाना जानती हूँ
फिर उन्होंने खुद को सच के हवाले कर दिया-
जो नहीं सच के हवाले हो चुका हो / क्या करेगा वो तेरी तहरीर लेकर
डॉ रामनाथ शोधार्थी ने अपने ईमान को बेचने का दु:ख जताया-
लौटा हूँ जबसे अपना मैं ईमान बेचकर
जिंदा हूँ या मरा हूँ मुझे कुछ पता नहीं
फिर उन्होंने अपने सारे पूर्व कथनों को झूठ करार दे दिया-
अब तलक जो भी कहा झूठ कहा है मैने
सच वही है मैं जिसे बोल नहीं पाता हूँ
नरेन्द्र कुमार ने 'सो मारा गया' शीर्षक कविता में बताया कि जो समय के उचित-अनुचित प्रतिबंधों को स्वीकार नहीं करेगा सो मारा जाएगा-
प्रशासन ने दर्ज़ किया -गाड़ी के सामने आ गयासो मारा गया
यारों में चर्चा हुई / बड़ा क्रांतिकारी बनता था
सो मारा गया
हेमन्त दास 'हिम' ने कातिलों के विनम्र अनुरोध को स्वीकार करते हुए अपना सर उनकी ओर कर दिया-
'हिम' मान लेंगे अब कातिल की बात
जिधर हैं वे खड़े उधर सर कीजिए
फैसला-ए-वफा तो वो ही करें
कोशिश मगर पुर-असर कीजिए
कोशिश मगर पुर-असर कीजिए
परवेज अख्तर ने जख्म खाते हुए भी थोड़ा मुस्कुरा दिया-
हजार जख्म खा रहे हैं रात दिन
यूँ ही जरा मुस्कुरा रहे हैं हम
भटक रहे हैं दर-ब-दर सफर में खुद
किसी को रास्ता दिखा रहे हैं हम
काव्य-पाठ को परिणति प्रदान करते हुए देश के नामचीन शायरों में शुमार सजय कुमार कुंदन ने वज़्म में से न उठ पाने के दर्द को बयाँ किया-
हम तेरी बज़्म से उठ भी न सके
और हमसे ज़रा न बैठा गया
उम्र गुज़री मगर बड़े न हुएहमसे सूदो-ज़ियाँ न सोचा गया
अंत में पूरे कार्यक्रम के संयोजक समीर परिमल ने आये हुए सभी कविगण और कवयित्रियों का हृदय से आभार व्यक्त किया और इस तरह एक सौहार्दपूर्ण माहौल में समीर परिमल की पुत्री की गायन-प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम की समाप्ति की गई.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम' / नरेन्द्र कुमार / ज्योति स्पर्श
छायाचित्र- गणेश जी बागी
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