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Monday, 2 April 2018

'जनशब्द* द्वारा कालिन्दी त्रिवेदी रचित 'काल पखेरू' का लोकार्पण एवं कवि गोष्ठी टेक्नो हेराल्ड पटना में 1.4.2017 को सम्पन्न

कजरी ने जान लिया मुक्ति समर का अर्थ 



पटना जंक्शन के समीप महाराजा कामेश्वर सिंह कम्प्लेक्स में स्थित टेक्नो हेराल्ड में 'जंशब्द' द्वारा एक साहित्यिक गोष्ठी 1.4.2018 को आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध वरिष्ठ कवि प्रभात सरसिज ने की. मुख्य अतिथि थे जाने माने राजनीतिज्ञ शिवानन्द तिवारी और संचालन किया वासवी झा ने.

पहले सत्र में  कालिन्दी त्रिवेदी लिखित 'काल पख्रेरू' का लोकार्पण हुआ. लोकार्पण करनेवालों में प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ शिवानन्द तिवारी वरिष्ठ साहित्यकार प्रभात सरसिज, शहंशाह आलम, शिवनारायण, रानी श्रीवास्तव, निशि मोहन और विनोद चौधरी शामिल थे. लोकार्पण करने के पश्चात वक्ताओं ने पुस्तक और कवयित्री की शैली पर अपने विचार व्यक्त किये. इस अवसर पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ और कवि निलांशु रंजन भी उपस्थित थे.

डॉ. श्वेता शेखर ने पुस्तक की रचयिता को अपनी पूर्व शिक्षिका बताया और कहा कि उनके बताए गए निर्देशों पर चलते के कारण  उन्हें अनेक पुरस्कार मिले.

राजकिशोर राजन ने कवयित्री की भाषा, वाक्य विन्यास और मुहावरों को बिलकुल सहज बताया और कहा कि चमत्कृत करने की कोशिश से बचते हुए सहज सम्प्रेषण को अपनाया गया है जो प्रशंसनीय है. 

शिवानन्द तिवारी ने 1974 के आन्दोलन की याद दिलाते हुए कहा कि महिलाओं के प्रथम जत्थे में कालिंदी त्रिवेदी भी शामिल थीं.

डॉ. शिवनारायण ने कहा कि कवयित्री की कविताओं में करुणा, न्याय और प्रतिरोध जैसे आधुनिक मूल तत्वों को यदा-कदा स्थान दिया गया है.

रानी श्रीवास्तव ने कवयित्री को परम्पराओं का निर्वहन करते हुए समसामयिक चुनौतियों का सामना करनेवाली बताया. आज की समस्याएँ जैसे आतंकवाद, युवा पीढ़ी की समस्याओं के साथ-साथ कवयित्री ने प्रकृति से जुड़ाव का भी परिचय दिया है. पुस्तक में व्यग्य भी है और आक्षेप भी.

लोकर्पित पुस्तक 'काल पखेरू' की रचनाकार कालिन्दी त्रिवेदी ने कहा कि जब सारे कामों को करने के बाद मुझे समय मिला तो मैंने लिखा. आज सेवानिवृति के बाद जीवन के अंतिम प्रहर में मैं  यह कविता-संग्रह लेकर आई हूँ. उन्होंने शहर बंद होने के संदर्भ में एक कविता सुनाई.

डॉ. निशि मोहन ने कहा की नारी पर भी कविता है पुस्तक में. हर नारी को अपनी शक्ति पहचाननी होगी.

दूसरे सत्र में उपस्थित कवि-कवयित्रियों द्वारा स्वरचित कविताओं का पाठ हुआ.

आरती कुमारी ने वर्तमान संकटों से श्रोताओं को राहत  देते हुए अपने सुरीले कंठ से  गायन करते हुए प्रियतम की याद की रौशनी में सब को भिंगो दिया-
तुम याद आए हर दम हमें रौशनी की तरह 
ये और बात है कि मिलते हो अजनबी की तरह.

श्वेता शेखर ने माँ से बच्चे की पहचान करने की महत्ता को उजागर किया कुछ इस तरीके से-
एक जरूरी प्रश्न की तरह / होता है पिता का नाम
बगैर जिसके 
ज़िंदगी के इम्तिहान में मिलता है अधूरा प्राप्तांक
ज़िन्दगी के प्रश्नपत्र पर 
माँ होती है एक वैकल्पिक प्रश्न.

गणेश जी बागी ने माहौल में छायी मस्ती से लोगों को रू-ब-रू कराया-
गाँव गली / दौड़्ती गाड़ियाँ / चुनावी चपातियाँ / मुर्गे-ठर्रे
लफुवे-भइये / झंडा टाँगे / मस्ती में गा रहे / अच्छे दिन आ गए.

आरा से आये जनार्दन मिश्र ने प्रियतम की याद में जलते रहने की बात की-
बहुत सी अनकही बातें हैं
दिल में बहुत सी खुरदरी यादें हैं
तुम इधर जलो मैं उधर जलूँ.

खोई हुई जीवन की लय को तलाशते हुए वीणा श्री ने ये पढ़ा-
चल उसी डगर पर फिर निकलें जिनसे होकर हम आये
जहाँ तेज धूप निकली थी पर कुछ दरख्त थे हमसाये

विजय प्रकाश ने आज के जनतंत्र को उत्पादों के रैपर जैसा लुभावना बताया-
जनतन्त्र धूर्त कम्पनियों के / उत्पादों के रैपर जैसा
ऊपर से बहुत लुभाता है
जनगण लेकिन क्रेताओं सा / एक बार परखने के भम में
हर बार ठगा रह जाता है

संजय कुमार संज ने एक गम्भीर कविता  पढ़ी पर उसके पहले इन दो पंक्तियों से लोकार्पित पुस्तक का अभिनंदन किया-
तू माहताब है / तू लाजवाब है
हम पहली बार जो पढ़ रहे हैं / तू वही किताब है

हेमन्त दास 'हिम' ने अपने प्रिये से मिलने का आह्वाहन कुछ इस तरह से किया-
प्रिये / मैं तुम से मिलना चाहता हूँ 
कॉलेज में या मैदान में / पूरी मर्यादा के साथ....
बस इतना है कि वहाँ समाज के अतिरिक्त / कोई और पहरा न हो.

ज्योति स्पर्श ने एक पगडंडी से अपनी शुरुआत बताई -
दूर/ उस पगडंडी से /शुरू होती है हमारी दुनिया साहेब
अड़ जाती है जाकर /  आपकी जहाँ सड़क साहेब

पंकज प्रियम ने अपने झगड़ने के बारे में अपने आराध्य से पूछने को कहा-
क्या तुमने कभी पूछा है / अपने उस आराध्य को / कि झगड़ते भी हो
मैं नहीं समझता हूँ / कि तुम्हें उसने कोई / उत्तर भी दिया है.

राजकिशोर राजन ने एदुआर्दो गालियानो को याद करते हुए पढ़ा-
दोपहर भी इतनी सुकून भरी हो सकती है / जिस दिन मुझे पता चला 
जब एक उम्रदराज कथाकार सुना रहा था / अपने अग्रज कथाकार की कहानी
ये कहते कि कौन सुनाएगा कहानी इस तरह दोपहर कोई / जब मैं नहीं रहूँगा

कार्यक्रम की संचालिका वासवी झा ने स्त्री के विविध रूपों को प्रस्तुत किय-
अटूट समर्पण / असीम स्नेह / अगाध श्रद्धा
असीम संभावना उसमें रहती
तुम्हारे पास वह परिणीता, वामांगी, अर्धानिनी
जीती रहती सभी शब्दार्थों को

शहंशाह आलम ने राष्ट्र से सिर्फ भात की माँग की-
मैं पूरा देश नहीं सिर्फ भात माँगता हूँ
इस आनेवाले बजट सत्र में राष्ट्राध्यक्ष से

डॉ. निशि मोहन ने एक बिहार के गौरव पर एक लम्बी कविता पढ़ी जिसका अंश है-
यह मिथिला की धरा है वही धरा / जहाँ विद्यापति के गीत गूँजा करती थी]

डॉ. शिवनारायण ने एक सर्वहारा वर्ग की कजरी का बयान किया-
कजरी ने तो मुक्ति समर का मर्म अब पा लिया है....
देश में कजरी फैल रही है 
कि देश की सभी कजरियाँ / अब पुस्तक पढ़ेंगी

रानी श्रीवास्तव ने \आज के जमाने में सच का किस्सा सुनाया-
सच जब / हार कर / चुप्पी की चादर तान / सो गया था
तब चौराहे पर खड़े / झूठ के वफादार सिपाहियों ने / उसे ताबूत में बंद कर दिया.

अंत में प्रभात सरसिज ने कवि की जीवनसंगिनी पर एक भावुक कविता सुनाई-
इन दिनों यह औरत / मेरे सामने बैठ कर 
सत्ता से भिड़ जाने के शाब्दिक दाँव सिखा रही है.

इसके पश्चात राजकिशोर राजन ने अध्यक्ष की अनुमति से कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की..
.......
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम' / वीणा श्री / संजय कुमार संज
छायाचित्र - गणेश जी बागी



 































  



























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