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Tuesday, 5 December 2017

शिवदयाल रचित उपन्यास चर्चा, चाण्डालिका नाटक और लन्दन में हिन्दी - 4.12.2017 को पटना पुस्तक मेला में सम्पन्न

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आंदोलन को ही नहीं निजी जीवन की जटिलताओं को भी उघारता हुआ उपन्यास 



कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार एवं सीआर डी पटना द्वारा  आयोजित पटना पुस्तक मेला में शिवदयाल के उपन्यास "एक और दुनिया होती" पर परिचर्चा आयोजित हुई जिसे अभिनेता-सह-संस्कृतकर्मी  जयप्रकाश ने संचालित किया.  परिचर्चा में सभी प्रतिभागी बिहार से पहचान बनानेवाले अत्यंत प्रतिष्ठित साहित्यकारों में से हैं . शैलेश्वर सती प्रसाद ने कहा कि इस उपन्यास में अनेक समसामयिक संदर्भों को समाहित किया गया है जैसे- परमाणु युद्ध की आशंका,  पर्यावरण की सुरक्षा का सवाल और सामाजिक आधारभूत संरचना का विघटन.

निखिलेश्वर प्रसाद वर्मा ने उपन्यास में प्रयुक्त भाषा की भूरि भूरि प्रशंसा की. जयप्रकाश के आंदोलन के साथ-साथ यह उनके प्रभावती के साथ दाम्पत्य सम्बंध की जटिलता को भी उद्घाटित करता है. विचारधाराओं यथा समाजवाद, मार्क्सवाद और गांधीवाद से रूबरू यह उपन्यास किसी एक के बंधन में अपने को सीमित नहीं रखता है. 

संजय कुमार कुन्दन ने इसे जेपी युग का दस्तावेज बताया जिससे अनेक युगीन सत्यों का पता चलता है. सतीश प्रसाद सिन्हा ने बताया कि उपन्यास प्रेम प्रसंगों को वर्णित करते हुए भी अपनी शालीनता नहीं खोता है. है.यह जेपी के छात्र आन्दोलन के परिदृष्य में निजी जीवन का भी यथार्थवादी विश्लेषण प्रस्तुत करता है. भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि उपन्यास जेपी युग का होते हुए भी आज के समय में और भी ज्यादा प्रासंगिक लगती है. आत्मकथात्मक शैली और दो खण्डों में बँटा यह उपन्यास विविध परिस्थितियों का सूक्ष्म परीक्षण करता है.

उपन्यासकार शिवदयाल ने कहा कि उन्हें बारह वर्ष लगे इसे पूरा करने में. इसमें भूदान आन्दोलन की भी चर्चा है और यह जीवन्त इसलिए हो उठी है क्योंकि रचनाकार स्वयं उन परिस्थितियों का भोगी और गवाह रहा है.  इस अवसर पर मुकेश प्रत्यूष, अनिल विभाकर और अवधेश प्रीत भी उपस्थित थे. सुधी श्रोताओं में अन्य थे रत्नेश्वर, अनीस अँकुर , विनीत, पंकजेश, सुशील कुमार भारद्वाज, अमिताभ पांडे, कमला प्रसाद,प्रमोद सिंह, मनोज.सी.कुमार आदि.


(बायें से) संजय कु. कुन्दन, शिवदयाल, मुकेश प्रत्यूष, अवधेश प्रीत, अनिल विभाकर और भगवती प्र.दिवेदी

कल यानी 5.12.2017 को होनेवाले कार्यक्रम

1. नुक्कड़ नाटक 'पालकीपालन' - 1 बजे दोपहर
2. यात्रा- एक अकेली लड़की - 2.20 बजे दोपहर
3. सौरभ आनंद की पुस्तक पर बातचीत - 3.30 बजे अपराह्न
4. छोटे शहरों की बड़ी रचनाशीलता - 4.40 बजे अपराह्न
5. कवि केदारनाथ सिंह से अरुण कमल की वार्ता - 5.50 बजे सायं

अहिन्दीभाषी हिन्दी सीखने को ज्यादा बेताब

मास्को से पत्रकारिता में स्वर्णपदक प्राप्त लेखिका-पत्रकार शिखा वार्ष्णेय ने साहित्यकार मनीषा प्रकाश से 'लंदन में हिन्दी' विषय पर बातचीत में बताया कि हिन्दीभाषियों की तुलना में अहिन्दीभाषी इन दिनों हिन्दी में ज्यादा रूचि ले रहे हैं. रूसी भाषा और संस्कृत भाषा के व्याकरण में बहुत कुछ समानता है. लन्दन में हिन्दी की पुस्तकें नहीं बिक पातीं क्योंकि नई पीढ़ी हिन्दी में रूचि नहीं लेती. पुरानी पीढ़ी के लोग चाहे बिहार में हों या बाहर अब भी हिन्दी साहित्य में रूचि रखते हैं. उन्होंने यह भी बताया कि कविताएँ, नज़्में और ब्लॉग के बाद अब वे उपन्यास लिखना चाहतीं हैं. उन्होंने अपनी एक कविता भी सुनाई.

नुक्कड़ नाटक 'चाण्डालिका' का प्रदर्शन

रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित और जॉय मित्रा द्वारा निर्देशित नुक्कड़ नाटक 'चाण्डालिका' का प्रदर्शन किया गया. नाटक में संगीत को खूबसूरती के साथ मिश्रित किया गया था जिसका लुत्फ सभी पुस्तकप्रेमियों ने उठाया. नाटक के कलाकार थे नेहा कुमारी, राजनन्दिनी, अदिति, संध्या, रिया, निशा, मानसी और अंकिता. रंगकर्मी जयप्रकाश ने समन्वय किया. 



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