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सभी किरदार गर रखने हैं जिन्दा / कहानी में हमें मरना पड़ेगा
दिनांक 17.12.2017 को पटना सिटी की सुपरिचित साहित्यिक संस्था मानवोदय के तत्वावधान में दशमेश गुरु गोविन्द सिंह जी के आगामी जन्मदिन की स्मृति में एक काव्य-गोष्ठी आयोजित की गई जिसका संचालन संस्था के महासचिव श्री प्रभात कुमार धवन ने किया और अध्यक्षता कवि घनश्याम ने की.
गोष्ठी के आरंभ में दारा सिंह जी ने गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज के सम्मान में गुरुवाणी के अंशों का पाठ करते हुए उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं पर प्रकाश डाला. इसके बाद काव्य-पाठ का दौर चला जिसमें श्री सुनील कुमार उपाध्याय,समीर परिमल, रामनाथ शोधार्थी, हेमन्त दास 'हिम', मनोज उपाध्याय, दारा सिंह, चन्द्र प्रकाश तारा, कुन्दन आनन्द, उत्कर्ष आनन्द "भारत", सूरज ठाकुर बिहारी, अक्स समस्तीपुरी, नवनीत कृष्ण, गौरीशंकर राजहंस, सुशील जायसवाल, प्रभात कुमार धवन आदि कवियों ने अपनी-अपनी कविताएं और ग़ज़लों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया. अंत में कार्यक्रम के अध्यक्ष कवि घनश्याम ने अपनी रचनाओं का पाठ किया.
पढ़ी गई कविताओं की बानगी प्रस्तुत है-
आप के हिस्से पिज्जा वर्गर / दूध मलाई और मुसल्लम
अपना तो खामोश है चुल्हा / और पतीली खाली है (समीर परिमल)
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सच तो कड़वा जरूर होता है
पर यही है सच्ची दवा बिलकुल (घनश्याम)
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आप के हिस्से पिज्जा वर्गर / दूध मलाई और मुसल्लम
अपना तो खामोश है चुल्हा / और पतीली खाली है (समीर परिमल)
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सच तो कड़वा जरूर होता है
पर यही है सच्ची दवा बिलकुल (घनश्याम)
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तुम दुखी हो कि तुम बिन्दु हो / यह बेहद दुखद है
अनन्त विस्तार वाली रेखाएँ तुम्हीं से तो बनती है (मजोज उपाध्याय)
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हरा तो हूँ मगर कच्चा नहीं हूँ
अलग बात है कि मीठा नहीं हूँ (डॉ. रामनाथ शोधार्थी)
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मेरी आँखों में बच कर उतरना / यहाँ अश्कों का एक दरिया पड़ेगा
सभी किरदार गर रखने हैं जिन्दा / कहानी में हमें मरना पड़ेगा
(अक्स समस्तीपुरी)
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डरता हूँ / चित्कारों को सहेज कर रखनेवाले इन टुकड़ों से
पत्थर बन चुके इन ईंटों से / जाने कब मुझपर गिरे
और रंग ले अपने ही रंग में (हेमन्त दास 'हिम')
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तुम्हारी क्या औकात तुम दिल तोड़ ही सकते हो
दिल जोड़ने का हुनर जानोगे तो खुदा हो जाओगे (सुनील कु. उपाध्याय)
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दशमेश आ ढाल तलवार संभाल
काल को पकड़ के बोले / सत् श्री अकाल (प्रभात कु. धवन)
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महिमा और गरिमा से पटना मालामाल है
वाहे गुरु की खालसा बोले से निहाल है (गौरी शंकर राजहंस)
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कल तलक जो था आज वो हाल कहाँ / अब वो रानाइये-ख्याल कहाँ
जो वतन पर निसार हो जाए / वो भगत सिंह के जैसा लाल कहाँ
(नवनीत कृष्ण)
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हमको काँटों ने पाला पिता की तरह
मेरे काँटों को फूलों से मत तौलिए (कुन्दन आनन्द)
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गिरजा, मन्दिर और शिवालय काफी हैं / साकी कम हैं, पीनेवाले काफी हैं
धर्म का पालन करनेवाला कोई नहीं / धर्म के नाम पे मरनेवाने काफी हैं (दारा सिंह)
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स्वयं भी शांति से जीयो / औरों को शांति से जीने दो
बढ़ेंगे जो सद्भाव सदा / वो अमृत छक कर पीने दो (सुशील जायसवाल)
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न जाने किस रंग में रंग गये ईमान
लो कागज पर बिक गए मिट्टी के इंसान (उत्कर्ष आनन्द)
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ये मेरा दिल अगर नादान होता / भुलाना तब उसे आसान होता
(सूरज ठाकुर बिहारी)
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आलेख - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र - हेमन्त 'हिम'
प्रतिक्रिया और सुधार के सुझाव हेतु ईमेल - hemantdas_2001@yahoo.com
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