Pages

Saturday, 4 November 2017

पाण्डेय कपिल की स्मृति में शोक सभा,बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा 3.11.2017 को पटना में आयोजित

Blog pageview last count- 42089 (Check the latest figure on computer or web version of 4G mobile)
भोजपुरी साहित्य को अपूरणीय क्षति


प्रसिद्ध भोजपुरी साहित्यकार पांडेय कपिल कानिधन 2 नवम्बर,2017 को हो गया था. उसके अगले दिन उनकी गुलबी घाट पर अंत्येष्टि करने के पश्चात बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, कदम कुआँ द्वारा एक शोक सभा आयोजित हुई जिसमें देश के जाने माने भोजपुरी रचानाकारों के साथ अन्य साहित्यकारों ने भी भाग लिया. कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ.अनिल सुलभ ने की और संचालन योगेंद्र नाथ मिश्र ने किया. 

भगवती प्रसाद दिविदी ने कहा कि वे 87 वर्ष के थे परंतु इतने सक्रिय कि उनके अस्पताल में भर्ती होने के दौरान भी एक नया संग्रह आने वाला था. वे हमेशा युवा रचनाकारों को प्रेरित किया करते थे.

हृषीकेश पाठक ने कहा कि हिंदी में तो और लोग भी बहुतायत में लिख रहे हैं लेकिन भोजपुरी में उनके जैसा लिखनेवाला कोई नहीं है. भोजपुरी साहित्य को अपूरणीय क्षति हुई है.

शिववंश पाण्डेय ने कहा कि 28 वर्षों का उनका साथ रहा विशेष रूप से राजभाषा विभाग में कार्यरत रहने के दौरान. हालांकि वो हिन्दी में भी अच्छा लिखते थे किन्तु यदि सिर्फ उनके भोजपुरी में योगदान को देखा जाय तो वो उसके लिए सदियों तक जाने जाने लायक हैं.

डॉ. शंकर प्रसाद ने कहा कि आकाशवाणी में कार्यरत होने के दौरान उन्हें वो कार्यक्रम देने के लिए हमेशा बुलाते रहे और इस बहाने  मिलते रहे. पाण्डेय कपिल उत्तर प्रदेश और बिहार के भोजपुरी रचनाकारों को एक सूत्र में जोड़नेवाले थे. उनके साथ 47 वर्षों के दौरान सम्पर्क रहा. डॉ. शंकर प्रसाद ने मेघदूत का भोजपुरी में मंचन 1971-72 में किया था जिसे उन्होंने खूब सराहा था. अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन के इलाहाबाद, छपरा आदि अनेक स्थानों पर आयोजन के दौरान मुलाकात होती रही. उनका पूरा परिवार ही कला साधना में जुड़ा था.

राजकुमार प्रेमी ने कहा कि उन्होंने इनकी पुस्तक की समीक्षा करने के अनुरोध को स्वीकार कर लिया था और सम्भवत: उसे कर भी लिया था परंतु उसकी जानकारी इन्हें नहीं मिल पाई. वे इतने बड़े साहित्यकार होने के बावजूद सभी साहित्यकारों की इज्जात करते थे.

बिन्देश्वर प्रसाद गुप्त ने कहा कि वे आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी थे और स्वभाव से काफी मिलनसार थे. उनकी कमी खलती रहेगी.

नृपेन्द्र नाथ गुप्त ने कहा कि उनके जाने से एक शून्य सा उत्पन्न हो गया है और इसे भर पाना आसान न होगा. 

आर. प्रवेश ने कहा कि वे 2000 ई. के आसपास काफी सक्रिय थे. एक खद्दर का झोला उनकी विशिष्ट पहचान थी.

तुषारकांत उपाध्याय ने भी कहा कि यद्यपि उनका बहुत कम सम्पर्क हो पाया लेकिन उनके विराट व्यक्तित्व से ये काफी प्रभावित हुए.

हरेंद्र सिन्हा ने कहा कि वे उनसे मिलने उनके अस्पताल गए थे. साथ में भगवती बाबू और अन्य भी थे. उन्हें मिलने के दौरान ही उनका प्राणांत हो गया. यह दृष्य देखना एक सदमा के समान था.

योगेंद्र नाथ मिश्र ने कहा कि इनका घर पाण्डेय कपिल के मुहल्ले में था और लोग इनके घर को पाण्डेय कपिल के मुहल्ले में होने के कारण पता आसानी से जान पाते थे. यह बात इसका प्रमाण है कि उनकी लोकप्रियाता कितनी थी..

अंत में अध्यक्षीय भाषण करते हुए अनिल सुलभ ने कहा कि हाल ही में बलभद्र कल्याण, विशुद्धानंद को खोने के बाद हमलोगों ने साहित्य के बड़े व्यक्तित्व पाण्डेय कपिल को खो दिया यह बहुत दुखद है. अखिल भारतीय भोजपुरी सम्मेलन की स्थापना और उसके कार्य एवं भोजपुरी अकादमी की स्थापना और उसके कार्य में उनका बड़ा योगदान रहा. हालाँकि भोजपुरी अकादमी में बाद में उन्हें उचित स्थान नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए था. उन्होंने अनेक मोर्चों पर संघर्ष करते हुए साहित्य सृजन किया.

अंत में एक शोक प्रस्ताव पारित किया गया और सभी साहित्यकारों ने दिवंगत आत्मा की शांति के लिए एक मिनट का मौन रखा. इस सभा में मधुरेश नारायण, हेमन्त 'हिम', डॉ. शालिनी पाण्डेय,  डॉ. विनय कुमार विष्णुपुरी आदि भी उपस्थित थे.
..................
आलेख- हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र- हेमन्त 'हिम' (योगेंद्र नाथ मिश्र के कैमरे में)
प्रतिक्रिया भेजने हेतु ईमेल- hemantdas_2001@yahoo.com






No comments:

Post a Comment

अपने कमेंट को यहाँ नहीं देकर इस पेज के ऊपर में दिये गए Comment Box के लिंक को खोलकर दीजिए. उसे यहाँ जोड़ दिया जाएगा. ब्लॉग के वेब/ डेस्कटॉप वर्शन में सबसे नीचे दिये गए Contact Form के द्वारा भी दे सकते हैं.

Note: only a member of this blog may post a comment.