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हम साधारण जन ही रह गए आप बने बलभद्र
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, पटना और अन्य दशाधिक संस्थाओं के संयुक्त
तत्त्वावधान में आयोजित साहित्य सारथी बलभद्र कल्याण -श्रद्धांजलि-सभा
दिनांक 1 अक्टूबर, 2017 (निधन-18 सितम्बर, 2017) उनके घर के सामने शेखपुरा,
बिंद टोली, पटना 800014 में के कतिपय दृश्य। अध्यक्षता-डा. अनिल सुलभ।
मंच-संचालन श्री योगेन्द्र प्रसाद मिश्र। गण्य-मान्य उपस्थिति-न्यायमूर्ति
राजेन्द्र प्रसाद, स्वामी हरिनारायणानन्द, विधायक-संजीव चौरसिया, डा.
शिववंश पाण्डेय, श्री नृपेन्द्रनाथ गुप्त, श्री राजीव कुमार सिंह, डा. तारा
सिन्हा, डा. शान्ति ओझा, श्री विजोय प्रकाश, डा. मृदुला प्रकाश, प्रो.
बलराम तिवारी, श्री रविनन्दन सिन्हा आदि लगभग सौ से अधिक के हिन्दी,
भोजपुरी प्रेमी तथा पुण्यश्लोक कल्याण के सभी सगे-संबंधी।
विशुद्धानन्द ने बलभद्र कल्याण को याद करते हुए अपना एक शेर पढ़ा और कहा कि वे नेकनीयती और आदमीयत के उदाहरण थे-
तुन्द शोलों से भरी बस्ती में साफ नीयत कहीं नहीं मिलती
आदमी तो हजार मिलते हैं, आदमीयत कहीं नहीं मिलती.
छन्दों में सिद्धस्त थे कविकुलवर कल्याण
जब तक थे बन कर रहे श्रद्धा के प्रतिमान
चले गए अब छोड़कर अब कहाँ कौन किस देश
कैसे अब साहित्य का होगा नव उन्मेष
नवागन्तुकों में सदा भरते थे उत्साह
प्रोत्साहन दे-दे सदा नई दिखाते राह
गुंजन मन बेचैन है दिल में है अवसाद
छूटा जब सानिध्य तो उठने लगे निनाद
करें ईश से प्रार्थना उन्हें मिले चिर शांति
उनकी आत्मा को नहीं वहाँ कभी हो भ्रांति.
उदय शंकर शर्मा 'कविजी' ने बलभद्र कल्याण की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्हें इतने बड़े साहित्यकर्मी होने के बावजूद उपेक्षित रहना पड़ा. उनकी मगही में उद्गार थे-
रचलक जे इतिहास देस के, ऊ सब आड़े आड़े हे
जे राही ले राह बनइलक, ऊ सब सड़क किनारे हे
कवि कमलेन्द्र झा 'कमल' ने साहित्य सारथी बलभद्र कल्याण की स्मृति में अपनी कविता पढ़ी जिसकी पंक्तियाँ थीं-
अनमिट रहती वही कहानी जिसका नव उन्मेषसरोकार सामाजिकता का और व्यक्तित्व अशेष
रचना की भू-वेदी पर जो कलम रात-दिन चलती
अंतर की संवेद भावना शब्दों में है ढलती
उन शब्दों के गहन अर्थ सारा समज गहता है
अमर वही है कलमवीर चप्पा चप्पा कहता है
स्थूल रूप में गए, सूक्ष्मता का हम भार गहेंगे
बिना आपके भावों के हम बिन आधार रहेंगे
अत:बसाएंगे हम प्रियवर अपने हृत्पिंडों में
कविता के एक-एक गवाक्ष में चौखट के खंडों में
क्योंकि आए गए करोड़ों नहीं आप सा अन्य
निर्विवाद रचनाकारों में एक आप मूर्धन्य
गए नहीं हैं कभी हे कविवर रूप सिर्फ बदला है
श्यामल कपड़े छोड़ वस्त्र पहना एक उजला है
भावों के नवपुष्प बना आँसू से भरकर अंजलि
साहित्यिक कुलपुरुष समर्पित है नतसिर श्रद्धांजलि
हम साधारण जन ही रह गए आप बने बलभद्र
कलम आपकी धन्य ये दुनिया करती रहेगी कद्र
धरा-धाम पर साहित्यिक किया खूब कल्याण
अवदानों को देख परंतप करूँ प्रवर सम्मान.
(-कमलेंद्र झा 'कमल')
विंध्याचल प्रसाद गिरि ने भोजपुरी में अपनी रचना पढ़ी-
मारे बिरहा करेजवा में बाण / तू छोड़ के कहाँ गईलS कवि कल्याण
हिन्दी साहित्य के अइसन सेवकवर / भोजपुरी कविता के शान
सीधा-साधा भोला-भाला / नम्रता के रहलS तू खान
ऊँचा मनोबल हँसमुख चेहरा / रहलS तू सच्चा इंसान
कोमल हृदय में माखन भरल रहे, माथा में भरल रहे ज्ञान.
(विंध्याचल प्रसाद 'गिरि')
राजकुमार प्रेमी ने अपनी संवेदना स्वरचित मगही निर्गुण के माध्यम से व्यक्त की जो नीचे पहले चित्र के रूप में प्रस्तुत है-
...........
इस आलेख के लेखक - योगेंद्र प्रसाद मिश्र एवं हेमन्त दास 'हिम'
फोटोग्राफर - हेमन्त दास 'हिम'
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