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Saturday, 30 September 2017

हम जो चाहते हैं- संजीव कुमार श्रीवास्तव की कविताएँ (Hindi poems of Sanjeev Kumar Srivastava with English translation)

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छ: अंशों में विभक्त कविता/ Poem divided into six sections




1.
भींगना चाहते हैं हम
तुम्हारे आँसूओं की बारिश में
जिसमें नमक की तरह घुले हों
बीते क्षणों की तरह तुम्हारे सारे दु:ख-दर्द
छुपाती आई हो जिन्हें तुम
बड़ी ही होशियारी से
दुनिया की निगाहों से अब तक
पर जिसके पीछे छुपी
तुम्हारी विवशता की
समझने की चेष्टा
किसी ने नहीं की शायद.
I want to wet myself
In the shower of your tears
In which salt of your all pains and agonies
Should have been mixed 
LIke the past moments
Which have been concealed by you
Very carefully 
From the eyes of the world
But there is concealed your compulsions too
Which nobody tried to look at.


2.
पढ़ना चाहते हैं हम
अनुभवों के
एक जीवंत दस्तावेज की तरह तुम्हें
जो दबी पड़ी हो अरसे से
धूल की परतों में लिपटी
किसी जंग खाती आलमारी की दराज में
लिखी गई हो जो
भले ही कुछ अनगढ़ तरीके से.
I want to read you 
Like a live document of experiences
Which would have been dumped 
In the drawer of a rusting cupboard
Draped in the layers of dust
Which might have been scribbled 
Though absolutely roughly. 


3.
सहलाना चाहते हैं हम
तुम्हारी कोमल भावनाओं को
मानवता के स्नेहिल स्पर्श से
जिसकी छुअन
जीवन भर रोमांचित करती रही हो तुम्हें
और जिस किसी को भी छू ले
तुम्हारी परछाईं
स्पंदित होता रहे पुलक से
वो भी सारी उम्र.
I want to caress
Your soft feelings
With the affectionate touch of humanity
The touch of which
Might keep you thrilled lifelong 
And whatever is touched by
Your shadow
He should be horripilated with joy
And that too for the whole life.


4.
खेलना चाहते हैं हम
तुम्हारे साथ
शब्दों की गेंद को
अपनी जुबान और कलम के बल्ले से
बार-बार तुम्हारी ओर उछालकर
बिल्कुल सधे और तनिक शरारती अंदाज में
ताकि आहिस्ता-आहिस्ता ही सही
इसे अच्छी तरह से
कैच करना सीख सको तुम
और अपनी विरासत व परिवेश की
बेजान पिच पर
खड़ी होने के बाद भी
जीवन की बाधाओं का विकेट चटखाने में
महारत हासिल हो सके तुम्हें.


5.
दिखाना चाह्ते हैं हम
एक नई दुनिया की राह
विचारों के आकाश में
उड़ा ले जाकर तुम्हें
सबकी नजरों के सामने
समझ के पंख लगाकर तुममें
ताकि अपनी जमीन से
इंच भर खिसके बगैर भी
समेट सको तुम अपने दामन में
बेशुमार चाँद-सितारे
और बिखेर सको उन्हें
अपने इर्द-गिर्द की दुनिया के
अंधेरे कोनों में
ताकि पसरता चला जाय
धीरे-धीरे
उजाला-ही-उजाला
चारों ओर.

6.
छेड़ना चाहते हैं हम
उस सितार की तरह तुम्हें
दबे पड़े होते हैं जिसके जिस्म में
अनगिनत राग
जो निगाहें चार होते ही
झंकृत हो उठते हैं
अपने आसपास की नीरवता को चीरते हुए
और गुंजायमान हो उठती है
एकदम स
सारी सृष्टि.
.......
मूल हिन्दी कविता के कवि- संजीव कुमार श्रीवास्तव
श्री श्रीवास्तव का मोबाइल- 7564001869, 9990518195 
श्री श्रीवास्तव का ईमेल- sanjivkumarsrivastav@gmail.com
कविता का अंग्रेजी अनुवाद- हेमन्त दास 'हिम'
आप अपनी प्रतिक्रिया इस ईमेल पर भी भेज सकते हैं- hemantdas_2001@yahoo.com

कवि का परिचय: "भावनाओं और विचारों के समन्दर में डूबते उतराते मेरे अनुभव मेरी लेखनी की पतवार थामे जब अभिव्यक्ति के किनारे आ लगते हैं, तभी जाकर आकार ले पाती है मेरी कविता" यह आत्मकथ्य है कवि का. अब तक तो आप मान ही गए होंगे कि संजीव कुमार श्रीवास्तव एक अंत्यंत हृदयस्पर्शी और गम्भीर कविताएँ लिखनेवाले कवि हैं. इनकी कविताएँ कभी रूमानियत का पुट लिए लग सकती हैं तो कभी भावनाओं का निर्बन्ध उद्रेक किन्तु थोड़ा ध्यान देते ही वे तमाम समकालीन मुद्दों से जूझती हुई नजर आती है. कवि उपेक्षा का कुशल शब्दचित्रकार होने के साथ-साथ आधुनिक जीवन की भागदौड़ में विलुप्त जीवन-रस का निपुण अन्वेषक भी है. यह कवि अस्मिता का बली रक्षक तो है ही, वंचितों को उसका अधिकार दिलवाना भी जानता है. इनकी अनेक रचनाएँ प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं और अत्यंत लोकप्रिय अखबारों में प्रकाशित हो चुकीं हैं. आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी इनके अनेक साहित्यिक कार्यक्रम आ चुके हैं.
Introduction of the poet: "My experiences  soaked deep in emotions and ideologies when come up to get side of expression with the help of a rudder called pen, it morphs into a poem", this is the statement of the poet about creation of poetry   Sanjeev Kumar Srivastava is a poet who writes emotive and serious poems. His poems can sometimes look romantic and sometimes the outbreak of emotions, but the moment you pay a little more attention to them you perceive him battling with all contemporary issues. Besides being a skilled illustrator of neglect he is also an accomplished explorer of the  essence of life which seems to have evaporated in the course of running of modern life. This poet is a big protector of self-identity and also knows how to get rights to deprived ones. Many of his compositions have been published in literary periodicals of repute and very popular newspapers. He has also presented many literary programs on Radio and Television.








Thursday, 28 September 2017

दुर्गा पूजा का महत्व / लेखक- संजीव गुप्ता

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संकटों का सामना और कठिन कार्य में विजय के लिए देवी दुर्गा की उपासना
(अररिया में दुर्गा जी की भव्य प्रतिमा के साथ पढ़िये)

अररिया (बिहार) काली मंदिर में स्थापित दुर्गा जीकी भव्य प्रतिमा. अररिया में इस मंदिर का विशेष महत्व है. इसके पूजारी नानू दा मंदिर के चढ़ाये गए कपड़े और अन्य वस्तुओं को गरीब और जरूरतमंदों को बाँट देते हैं. और तो और ये मंदिर के प्रति श्रद्धा रखने के साथ-साथ भक्तों को अंधविश्वास से दूर रहने के  लिए भी प्रेरित करते हैं. इन कारणों से लोग इस मंदिर के प्रति लोगों के प्रति आदर और श्रद्धा में विशेष वृद्धि हुई है. (फोटो साभार - संजीव गुप्ता)

भारतीय सनातन धर्म की एक अद्वितीय विशेषता ईश्वर की शक्ति की नारी रूप में कल्पना है जिसके पीछे शास्त्रसम्मत प्रमाण हैं. यहाँ की हिन्दु परम्परा में दुर्गा को शक्ति रूप में पूजनीय माना गया है जिस प्रकार सरस्वती को ज्ञान का, लक्ष्मी को धन का, काली को दुष्टों के संहार का और संतोषी को संतोष का प्रतीक माना गया है. इनके पूजन का उद्देश्य मानव के मन और जीवन में वीरता, रक्षा, ज्ञान, अर्थ और संतोष जैसे गुणों का समावेश करना है. ईश्वर के इन रूपों को माँ कहकर संबोधित करना एक स्त्री की क्षमताओं का सम्मान है जिसमें स्त्री को कमजोर न मानकर उसे क्रोध, दया, क्षमा, तप, शौर्य आदि गुणों से युक्त माना गया है. कई देवी देवताओं के साथ चित्रित पशु पक्षी या पेड़ पौधे की उपासना प्रकृति के साकार रूप की रक्षा का संकल्प है.

संकटों का सामना और कठिन कार्य में विजय के लिए देवी दुर्गा की उपासना की जाती है. जो लोग मूर्तिपूजा को अंधविश्वास मानते हैं उन्हे यह जानना चाहिए कि यूरोप में विंसी की कलाकृति मोनालिसा की मुस्कुराहट के चित्रण से सदियों पहले भारतीय मूर्तिकारों और चित्रकारों ने क्रोध , दया, रक्षा, संघर्ष , ध्यान जैसी भावनाओं से युक्त मुखाकृति का निर्माण करके मानवीय मनोभावना का अध्ययन कर लिया था. दुर्गा के बड़े नेत्र क्रोध की भावना प्रदर्शित करते हैं. इसी प्रकार सरस्वती का चित्रण शांत मुस्कुराती मुखाकृति और हंस मोर तथा वीणा और पुस्तक के साथ है. लेखकों ने भी स्तुति में मंत्रों और भजनों की रचना की है जिसे सुनने मात्र से आँखे नम हो जाती है.

माथे पर तिलक लगाना, मूर्तिपूजा और देवनागरी लिपि के अक्षरों में रचित मंत्र, ये सब बिहार में देवी दुर्गा के प्रति आराध्य भाव की अभिव्यक्ति के विशेष साधन हैं.  शिकारी मानव जब कृषक मानव बना तब वह पूरी तरह अहिंसक नहीं बना है. रक्षा की भावना में हिंसा का तत्व स्वीकार्य है. अफगानिस्तान में अहिंसक बौद्धों का नरसंहार और शांत बुद्ध की प्रतिमा का विखंडन पूर्ण अहिंसा की सीमा को दिखाता है. ऑस्ट्रेलिया जैसे महादेश के लोग कभी गोरे अंगरेजों के शासन से नहीं निकल सके और ऑस्ट्रेलिया एक द्वीप की तरह उपनिवेश बनकर रह गया. भारत में आदर्शों की भिन्नता रही है. मध्यम मार्ग वाले बुद्ध, पूर्ण अहिंसक महावीर और माँ दर्गा- काली के आदर्श सह अस्तित्व में रहे हैं. यही कारण है कि आक्रमणकारियों और भिन्न आदर्शों की एक लंबी पीढ़ी भारत को अफगानिस्तान या ऑस्ट्रेलिया की तरह विजित नहीं कर सकी. बलि प्रथा किसी पर बाध्यकारी नहीं है और समय के साथ इसके प्रचलन में भारी कमी आई है. आशा है, आनेवाले समय में यह पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा क्योंकि मात्र अत्याचारियों का विनाश करनेवाली देवी कभी भी निरीह पशु के संहार से प्रसन्न नहीं हो सकती.

देवी दुर्गा के महिषासुर पर विजय के चित्रण में उनके दस हाथ दिखाये गए हैं और यह वास्तव में गतिशील शस्त्र संचालन का प्रतीक है और साथ में गणेश कार्तिक सरस्वती लक्ष्मी का चित्रण. इन चारों के सहयोग यह दर्शाते हैं कि विकट स्थिति का सामना सब मिलकर ही कर सकते हैं. यही विजय का मंत्र है.

दुर्गा पूजा दस दिनों तक चलने वाला एक उत्साहपूर्ण त्योहार है. खिलौनों का मेला लगना, पूजा पंडाल की भव्यता, संगीत, आरती हवन, मंत्रोच्चार, फूल माला की बिक्री, सड़कों घरों मंदिरो की सफाई, कपड़ों की बिक्री आदि कार्यों की गति बढ़ जाती है जिससे कई लोगों के रोजगार और मनोरंजन को तेज गति मिलती है. पूजा स्थानीय सामूहिकता और सम्पन्नता का प्रतीक है. मंदिर कभी लोभ ईर्ष्या या संपत्ति के केन्द्र न बने , बल्कि सामाजिकता सामूहिकता और आर्थिक क्रियाकलापों के केन्द्र बनें--- यह ध्यान देना मंदिर प्रबंधन समिति का पवित्र दायित्व है.

माँ दुर्गा के नौ रूपों अर्थात शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धीदात्री के रूप में यह पूजा वास्तव में पूजन की एक श्रृंखला है जो कलश स्थापन से लेकर पूजन और विसर्जन तर की एक प्रक्रिया है. भक्तिमय मन से लोग अपनी शारीरिक क्षमता और आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार उपवास रखकर विधििपूर्वक पूजन करें तो कार्यों में सफलता मिलती है किन्तु दुर्गा पूजन का प्रतीक स्वयं के मन और शरीर की क्षमता में वृद्धि करना है. पारिवारिक शांति और सहयोग का सार कन्या पूजन में निहित है.

चुकि यह पूजा एक बड़ी अवधि तक चलती है. अत: हमें पूजा अवधि में सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए. समाज यदि स्त्री विरोधी या स्त्री मन को चोट पहुँचानेवाली प्रथाओं जैसे कन्याभ्रूण हत्या, दहेज उत्पीड़न, अश्लील चित्रण, छेड़छाड़ , नारी से स्वास्थ्य की उपेक्षा जैसे गंदी और परिवार - समाज- देश को कमजोर करने वाली सोंच का परित्याग करे तो वह सबसे बड़ी पूजा होगी. साथ ही गरीबों के बीच मिठाई और वस्त्र वितरण , बच्चों को खिलौना उपहार देना जैसे कार्य ज्यादा होने से पूजा सार्थक होगी साथ हीं लाउडस्पीकरों की तेज ध्वनि से नवजात शिशु, वृद्ध और बीमार लोगों के कष्ट को ध्यान में रखकर शोर कम किया जाए एवं अच्छी क्वालिटी का वाद्य उपकरण पर संगीत- मंत्र बजे तो पूजन का आनंद और बढ़ जाएगा.

अंत में, या देवी सर्वभूतेषु माता/ दया/ क्षमा/ तप/ शक्ति रूपेण संस्थिता: / नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:.
माँ सभी प्राणियों में हैं. आँखे बंद कर ध्यान में इसे अनुभव करें. तभी माँ आपके आचरण में भी प्रकट होगी.
...............
इस लेख के लेखक - संजीव गुप्ता
आप अपनी प्रतिक्रिया इस ईमेल आइडी पर भी भेज सकते हैंं- hemantdas_2001@yahoo.com
लेखक आयकर विभाग में कार्यरत हैं और एक अत्यंत सामाजिक चेतना के प्रति काफी जागरूक लेखक हैं.






अंगिका की अंगराई-7 - छोड़ी के' बिहार पिया चललय पंजाब किये/ कैलाश झा किंकर की कविताएँ (Angika poem with poetic English translation)

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अंगिका (कवित्त) कविताएँ 
Angika poems with poetic English tranalation
(बिहार से मजदूरों के पलायन को रोकने हेतु 



(1)
छोड़ी के' बिहार पिया चललय पंजाब किये
कोल्हू के' बरद जेकाँ जोती-जोती मारथौं ।
Leaving Bihar don't go to  Punjab my love
They would use you as a drudger and kill

घड़ी-घड़ी गुड़ केरो' चाय खेत भेजी-भेजी
भैया-भैया कहि मजदूरो' छय पुकारथौं ।।
Time and again they would send just Jaggery tea
Calling you 'bhaiya', labourers  mock you in mill

जानवर बूझी काम दारू से' निकिलै वहाँ
घर ऐभय जखनी बिमारिये पछाड़थौं ।
Like an animal you have to toil just for wine
And when you return home you are seriously ill

कारू काका ऐलो' छै पंजाब से बीमारी लेने
दवा-दारू बसलो' ई घरो' के' उजारथौं ।।
Karu uncle has come from Punjab along with sickness
Once medicine enters your home, it destroys you by bill.
......................


(2)
खेती-बारी देखो' यहाँ छौड़ो' नै बिहार पिया
चलो' कोनो' खेत के' बटाई पे उठाबै ले' ।
Take care of farming and don't leave Bihar dear
Let us try to take some plot of land on lease

जोती-कोरी खेत के' लगाबो' धान,मकई,गेहूँ
जैबो' तोरे संगे-साथ हमहूँ कमाबै ले' ।।
Let us till the farm to sow rice, maze, wheat
I shall also accompany you in earning rupees


ग्रामीण विकास परियोजना से ऋण लै के'
चलो' गाय-गोरु फेनू खुट्टा पर बुलाबै ले' ।
Taking loan from the scheme of Rural Development Scheme
See, cows and calves coming to pegs with ease


कथी ले' पंजाब जैभय धीया-पूता संगे-साथें
चलो'-चलो' घरबा मे' लक्ष्मी बुलाबै ले'।।
Why shall we go to Punjab along with our children
Let us go home to pray to Laxmi and appease.
..........

Original poem in Angika by - Kailash Jha Kinkar
Poetic translation into English by - Hemant Das 'Him'
कवि-परिचय-- कैलाश झा किंकर वर्तमान में अंगिका के सबसे बड़े हस्ताक्षरों में से एक हैं. ये अंगिका भाषा में निकलनेवाली पत्रिका के सम्पादक हैं और इनका निवास खगड़िया में है. इन्हें अब तक अनेक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं.

अंगिका पत्रिका जिसके सम्पादक हैं कैलाश झा किंकर










Tuesday, 26 September 2017

ऑस्कर पुरस्कार हेतु नामांकित 'न्यूटन' फिल्म की संक्षिप्त समीक्षा सुनील श्रीवास्तव के द्वारा

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सबसे बड़े लोकतंत्र की पोल खोलता फिल्म 'न्यूटन'
(एक फिल्म समीक्षा )

Nature and Nature's laws lay hid in night
God said, 'Let Newton be!' and all was light.
-Alexander Pope

अंधकार में छिपे नियमों को प्रकाश में लाने के मानव-प्रयत्नों का ही तो प्रतीक है न्यूटन। 'न्यूटन' फ़िल्म देखने से पहले मैंने सिर्फ इसका एक पोस्टर देखा था जिसमें पंकज त्रिपाठी मिलिट्री ड्रेस पहने जंगल में खड़े थे। फ़िल्म के कथ्य के बारे में कोई अनुमान नहीं लग पा रहा था। फ़िल्म के नाम का इस पोस्टर से कोई सामंजस्य नहीं बैठ पा रहा था। किन्तु, जब फ़िल्म शुरू होती है तो थोड़ी ही देर में फ़िल्म के नामकरण का कारण और अर्थ स्पष्ट हो जाता है जब ट्रेनर की भूमिका निभा रहे संजय मिश्रा एक संवाद में कहते हैं कि न्यूटन ने यह साबित किया कि प्रकृति का कानून सब जगह एक है। जो नियम धरती पर है वही आकाश में भी। अम्बानी और एक चायवाले को किसी ऊँचाई से एक साथ गिराया जाए तो दोनो एक साथ ही जमीन पर पहुँचेंगे।

युवा अपर डिवीजन क्लर्क न्यूटन कुमार इसी विश्वास के साथ कि जो लोकतंत्र और उसका कानून पूरे देश में है वही विद्रोह की ज्वाला में धधक रहे सुदूर जंगलों में भी, छत्तीसगढ़ के जंगल के एक बूथ पर चुनाव कराने की ड्यूटी निभाने पहुँचता है। और उसके बाद जो होता है उससे सिर्फ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की पोल ही नहीं खुलती, देश के ही एक हिस्से में एक दूसरा देश दिखाई पड़ता है। अंत में जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात निकलकर सामने आती है वह कि इस व्यवस्था में यदि कोई कानून एवं नियमों का पूरी जिम्मेदारी से पालन करने एवं करवाने की चाह रखता है, वह व्यक्ति चाहे सरकारी कर्मचारी ही क्यों न हो, सिर्फ एक मजाक बनकर रह जाता है।

यह फ़िल्म एक सीख है कि गम्भीर विषयों पर दर्शकों को बाँधे रखनी वाली फ़िल्म किस तरह बनाई जानी चाहिए। एक डार्क कॉमेडी के रूप में 'न्यूटन' एक असरदार और अपने प्रयोजनों को सफल करती फ़िल्म है। सभी अभिनेताओं-अभिनेत्रियों ने सहज एवं जीवंत अभिनय किए हैं। संवाद मनोरंजक एवं चुटीले हैं। पूरी फ़िल्म के दौरान मैंने हॉल में कई बार ठहाके गूँजते सुने। फिर भी फ़िल्म कहीं अपने उद्देश्यों से भटकती नहीं लगी और बड़ी सहजता से दर्शकों को हँसाते-गुदगुदाते हुए अपना मेसेज उनतक पहुँचाती है।

किन्तु फ़िल्म देखने के बाद एक प्रश्न यह भी दिमाग में आता है कि क्या इस तंत्र के नियम-कानून सिर्फ छत्तीसगढ़ के जंगलों में ही असफल हैं। क्या हमारे नगरों-महानगरो या राजधानी में ही कानून का राज है? क्या नियमों का पालन करने-करवाने वाले हर जगह जोकर बनकर नहीं रह जाते? क्या हम रोज कदम-कदम पर नियमों का उल्लंघन होते नहीं देखते? जंगल तो हर जगह है। फिर फिल्मकारों को छत्तीसगढ़ जाने की क्या जरूरत थी? छत्तीसगढ़ के जंगलों की दूसरी कहानी है जिसे यह फ़िल्म छूती जरूर है, मगर उसमें उतरती नहीं। इस फ़िल्म का जो कथ्य है उसे कहने के लिए छत्तीसगढ़ के उग्रवाद पीड़ित जंगलों का चुनाव, 'अभिव्यक्ति के खतरे उठाने' के लिहाज से थोड़ा सुरक्षित चुनाव लगा मुझे।


खैर, एक न्यूटन के बाद दूसरे न्यूटन की जरूरत तो हमेशा बनी ही रहेगी। एक सार्थक फ़िल्म बनाने के लिए पूरी टीम को बधाई और सफलता की शुभकामनाएँ।
............
इस रिपोर्ट के लेखक- सुनील श्रीवास्तव 
आप अपनी प्रतिक्रिया इस ईमेल पर भी भेज स्कते हैं- hemantdas_2001@yahoo.com

लेखक का परिचय: श्री सुनील श्रीवास्तव वामपनथी रुझान वाले एक अत्यंत संवेदनशील समकालीन कवि और गद्यकार हैं. इनकी रचनाएँ देश के शीर्ष हिन्दी पत्रिकाओं जैसे वागर्थ आदि में प्रकाशित होती रहतीं हैं. ये अत्यंत सरल और गम्भीर स्वभाव के व्यक्ति हैं और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन की प्रवृति से बिलकुल दूर रहते हैं. इनका निवास आरा (बिहार) है और ये आयकर विभाग में कार्यरत हैं. 





इस लेख के लेखक सुनील श्रीवास्तव अपनी धर्मपत्नी के साथ



सांस्कृतिक परिक्रमा अंक- 26.9.2017 (Cultural Roundup by Bihari Dhamaka)/ ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटीना),बंगलोर, दिल्ली, सोनपुर, छपरा, वैशाली, मधुबनी, मुजफ्फरपुर के कुछ कार्यक्रम भी

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नोट -  सांस्कृतिक परिक्रमा में पूरे विश्व में होनेवाले बिहारी कार्यक्रमों को शामिल जाता है. आप अपने कार्यक्रमों के चित्र संक्षिप्त  विवरण के साथ बिहारी धमाका ब्लॉग के मुख्य पृष्ठ पर सबसे ऊपर लिखे व्हाट्सएप्प नम्बर या hemantdas_20011@yahoo.com  पर भेज सकते हैं.

विख्यात साहित्यकार ममता मेहरोत्रा, पटना में अपनी साहित्यिक मंडली के साथ दांडिया नृत्य का आनंद लेते हुए





(ऊपर में) गायत्री स्मृति ट्रस्टमिथिला आर्ट एण्ड कल्चर एसोसिएशनपटना एवं मानवोदयपटना सिटी के संयुक्त तत्वावधान में 25.09.2017 को एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता श्री राजेन्द्र प्रसाद मंजुल और उद्घाटन डॉ.संजय कुमार मंजुलपुरातत्ववेत्ता ने किया. श्री भगवती प्रसाद द्विवेदीमुख्य अतिथि तथा श्री अरुण शाद्वल विशिष्ट अतिथि थे. कवि सम्मेलन का संचालन वरिष्ठ कवि और "आज" के उपसंपादक श्री प्रभात कुमार धवन ने किया. इस अवसर पर सुश्री प्रेरणा कुमारी और नाजिश को "मानवोदय" की ओर से प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया. कवि सम्मेलन में सर्व श्री सुनील कुमार उपाध्यायप्रशांत कुमारश्लोक मंजुलरामकिशोर सिंह बिरागीसुबोध कुमार मंजुलआशुतोष कुमारआनन्द कुमारडॉ.संजय कुमार मंजुल,मो.एहसान अलीओमप्रकाश पाण्डेय प्रकाशसुनील कुमार मंजुलगौरीशंकर राजहंसमेहता डॉ.नगेन्द्र सिंहमनोज उपाध्यायप्रभात कुमार धवन,समीर परिमलअरुण शाद्वलभगवती प्रसाद द्विवेदीराजेन्द्र कुमार मंजुलश्रीमती लता पराशरप्रेरणा कुमारीनाजिश तथा मैंने काव्य पाठ किया और श्रोताओं ने विभिन्न विषयों पर आधारित कविताओं का मंत्रमुग्ध होकर आनन्द उठाया.(नीचे का एक चित्र भी देखें.)




(Above) Post-performance discussion over the play 'Raja Salahes' staged by Mithilangan. This drama show was spectacular on several parameters of  theater. (Also see two pics below)




 20 सितम्बर को पटना विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में शाद अज़ीमाबादी की परपोती बेहतरीन फ़िक्शन निगार शहनाज़ फ़ातमी के उपन्यास बोलती आँखें पर भव्य आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता अब्दुस समद मुख्य अतिथि क़ासिम खुरशीद , प्रवक्ताओं में जावेद हयात अफ़साना ख़ातून अर्चना त्रिपाठी शरक़ा शिफ़्तेन के अलावा अन्य शामिल थे । शहाब ज़फ़र आज़मी के संचालन ख़ूबसूरत वातावरण महिलाओं पुरुषों और मीडिया की भारी उपस्तिथि ने ये साबित कर दिया कि बड़े आयोजन के लिए साफ़ दृष्टि और कौशल बेहद ज़रूरी है।शहनाज़ फ़ातमी जी को बहुत बधाई.

पटना। दिनांक 26 अक्टूबर 2017 को स्थानीय दिल्ली पब्लिक वर्ल्ड स्कूल में प्राचार्या एवं सामयिक परिवेश की प्रधान संपादक ममता मेहरोत्रा तथा संपादक समीर परिमल द्वारा 'पोपो टीवी' का शुभारंभ किया गया। ममता मेहरोत्रा ने इस अवसर पर कहा कि तकनीकीकरण के वर्तमान युग में आसपास के परिदृश्य से सीखने की अनवरत प्रक्रिया के तहत यह प्रयोग छोटे-छोटे बच्चों को अल्फाबेट्स, फल, फूल, कविताएँ आदि एनीमेशन के रूप में समझाने में सफल होगा। समीर परिमल ने कहा कि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में बदलाव आया है और पोपो टीवी के माध्यम से खेल-खेल में मनोरंजक शिक्षा प्रदान करना सहज और सुगम सिद्ध होगा। पोपो टीवी वस्तुतः एक यूट्यूब चैनल आधारित कार्यक्रम है जिसका निर्माण सुजीत कुमार के निर्देशन में फ्रेम बाई फ्रेम प्रोडक्शन हाउस द्वारा किया गया है। इसके द्वारा छोटे-छोटे बच्चों को मुफ्त में यूट्यूब के लिंक द्वारा ई-लर्निंग की व्यवस्था की गई है। इस अवसर पर विद्यालय के बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया।

मैथिली ठाकुर का 'बिहार बिहान' दूरदर्शन बिहार का कार्यक्रम 8.30 बजे प्रात: हुआ 

(ऊपर) नाट्यदल Dastak, Patna ने प्रस्तुत किया अपना नवीनतम नाटक जाति ही पूछो साधू की । मराठी के प्रसिद्द नाटककार विजय तेंदुलकर लिखित इस प्रसिद्द हास्य व्यंग्य नाटक को वे बिहार के परिवेश में प्रयोग करने कोशिश कर रहे हैं। इसमें बिहार की बोली, वाणी के साथ ही भोजपुरी के लोक, आधुनिक व पारंपरिक संगीत भी देखे सुने गए। आयोजक - Nirman Kala Manch / अवसर - रंग-जलसा 2017 / प्रस्तुति - दस्तक, पटना / स्थान - प्रेमचंद रंगशाला, पटना / दिनांक - 21 सितंबर 

(above) 'Bihari Dhamaka' blog crossed 33333 pageviews in Sept which was just near 2500 in Feb 2017

दिनांक-21/9/17 को पूर्व मध्य रेल सोनपुर मण्डल राजभाषा विभाग द्वारा आयोजित हास्य कवि सम्मेलन में सर्वश्री सुनील कुमार तंग,भूषण त्यागी,समीर परिमल,डा. आराधना प्रसाद,बादशाह प्रेमी,उजबक आज़मगढ़ी आदि · 



दिनकर जयंती के अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी में कुंदन आनंद और अन्य युवा कविगण (नीचे एक चित्र भी देखें)


बिहार बिहान (दूरदर्शन बिहार -8.30 बजे प्रात:)Live show with Dr Talat Halim sir Director of medical services of PARAS HMRI Hospital







(दायें से) डॉ. शंकर प्रसाद, डॉ. अनिल सुलभ और अन्य गणमान्य साहित्यकार

शायर नसीम अख्तर एक कार्यक्रम में सम्मान ग्रहण करते हुए
नीचे के दो चित्र भी देखें
 


(ऊपर) मधुबनी की साहित्यकार और भारतीय संविधान का Bhairab Lal Das के साथ मिलकर मैथिली में अनुवाद करनेवाले डॉ. नित्यानन्द लाल दास की सुपुत्री Chandana Dutt को भावराव देवरस सेवा न्यासलखनऊ द्वारा पं. प्रताप नारायण मिश्र युवा साहित्यकार सम्मान मिलने पर ढेर सारी बधाइयाँ! (नीचे का एक चित्र भी देखें.)





काशीनाथ पाण्डेय शिखर समान समरोह,  कालिदास रंगालय, पटना

काशीनाथ पाण्डेय शिखर सम्मान समारोह- (बायें से) अभिनय काशीनाथ, पी.एन.सिंह (दूरदर्शन बिहार के केंद्र निदेशक), सम्मानित कलाकार, अनिल सुलभ (अध्यक्ष बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन), एक अन्य गणमान्य व्यक्ति

सबसे बायें अभिनय काशीनाथ एवं सबसे दाहिने पल्लवी विश्वास












Duga Puja in Bangalore (pic courtesy- Vijay Kumar)

Durga Puja in Bangalore (pic courtesy- Vijay Kumar)

(बायें से) रमेश कँवल, कवि सत्यनारायण, एक गणमान्य कवि, आराधना प्रसाद, हृषीकेश पाठक और अन्य एक गणमान्य कवि (नीचे का एक चित्र भी देखें)




प्रमचंद रंगशाला, पटना के परिसर नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति के बाद निर्देशक शुभ्रो भट्टाचार्य, सुप्रसिद्ध रंगनिर्देशक संजय उपाध्याय से सम्मान प्राप्त करते हुए


दूरदर्शन मुजफ्फरपुर के चारो पेक्स के स्थानांतरण हो जाने से वहाँ कार्यक्रम निर्माण बंद है.

 The shop in Moron, Buenos Aiers (Argentina) from where a Bihari engineer got the chaat-pakauda


While we are celebrating Durga Puja festival here, this young Bihari engineer presently posted in Buenos Aires (Argentina) has succeeded in getting a food-item something like pakoda chaat he relishes in Bihar. (Pic of shop above)