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Friday, 14 April 2017

समीर परिमल- बिहार के अत्यन्त लोकप्रिय युवा शायर (Samir Parimal - a very popular young poet of Bihar)

ग़ज़ल-1
*****

देखता हूँ मैं हवाओं का जो आँधी होना
याद आता है सिकंदर का भी मिट्टी होना
I saw the air turning into tempest
And the ground where Alexander did rest
काश महसूस कभी आप भी करते साहिब
दर्द देता है बहुत ग़ैर ज़रूरी होना
Alas! you too had ever experienced
Thrown out as a jettison how I winced

आरज़ू चाँद को छूने की ज़मीं से मत कर
अपनी बस्ती को मयस्सर नहीं दिल्ली होना
Do not aspire from earth to touch the moon
As a burg can never be a Delhi later or soon

ग़म सुलगते हैं तो दरिया में बदल जाते हैं
तुमने देखा ही कहाँ आग का पानी होना
If the gloom catches fire, it’s a watercourse
Have you seen such a fire that is water’s source?

बदगुमानी है तेरी, ख़ुद ही ख़ुदा बन बैठा
तेरी तक़दीर में है ज़ख़्म की मक्खी होना
You are a God yourself, it’s your illusion
You are a fly and a wound is the reason


दर्द समझेंगे क्या बेदर्द ज़माने वाले
कितना मुश्किल है कलमकार की बीवी होना
This insensitive world didn't know your pain as yet
How difficult it is to be a sweetheart of a poet

कौन करता है यकीं तेरी ज़ुबाँ पर 'परिमल'
गैर मुमकिन है तेरे इश्क़ में राजी होना
People always think ‘Parimal’s words are untrue
Impossible, she would ever fall in love with you.
  
©समीर परिमल 
Samir Parimal
[Poetic English translation has been made by Hemant Das 'Him']





(पांच और गज़लें इस परिचय-टिपण्णी के बाद है)
Five more gazals (poems) are placed after this introductory passage.

समीर परिमल की गज़लों में ज़िंन्दगी की कड‌वी सच्चाइयाँ हैंफिक्र है बेकसों पर जुल्मो-सितम ढा रहे उस ताने-बाने पर जहाँ आदमी की तरह जीने का हक सिर्फ और सिर्फ नाजायज तरीके से दौलत और हुकूमत पर कब्जा जमाए मुट्ठी भर लोगों को है. थोड़ा गौर करते ही यह मालूम हो जाता है कि महबूबा के नाज़ और रूमानी इश्को-उल्फत के लफ्जों का इस्तेमाल इस बेहतरीन शायर ने अक्सर सिर्फ वज़्म की तामीर के लिए किया है ताकि उसमें शामिल होनेवालों से उन मुद्दों की बात हो जिसकी वतन और समाज को सख्त जरूरत है. इनके शेर बहर और काफिये के लिहाज से तो दुरुस्त लगते ही है उनमें उससे कहीं ज्यादा गहराई भी है जिसकी आप उम्मीद रख सकते हैं.

Samir Parimal's ghazals have stark truths of life. He is worrying that there is in this perverse set-up only those people has a right to live like a human being who has somehow gathered wealth and power by hook or crook. Anyone can easily conclude with a little bit of alacrity that  the rhetoric of beloved's coiffure, romantic love and infatuation have been used by this prodigious poet simply to attract the audience so that a meaningful dialogue is possible on the issues which are highly needed to the society and nation. His lines seem to be perfect in terms of 'bahar' and 'kafiya' and have far more depth than you can expect.

ग़ज़ल-2
*****

ताक़ पर रक्खी मिली मुझको किताबे-ज़िन्दगी
कुछ फटे पन्ने मिले और कुछ सिसकती शायरी

चंद ज़ख्मों की विरासतचंद अपनों के फ़रेब
उसपे दुनिया की रवायत और मेरी आवारगी

मुद्दतें गुज़रींकोई पढ़ने को राज़ी भी नहीं
छुप नहीं पाती है लफ़्ज़ों के दिलों की बेकली

हाय वो मासूम आँखें और उन आँखों के ख़्वाब
इक पशेमाँ आदमीआंसू बहाती बेबसी

साज़िशों में क़ैद है तूख़ुद में सिमटा मैं भी हूँ
इक तरफ है बेरुखी और इक तरफ दीवानगी

इस समंदर का किनारा अब नज़र आता नहीं
साथ मेरे जाएगी मेरी ये शौके-तिश्नगी

ग़ज़ल-3
*****

भरी महफ़िल में रुसवा क्यूँ करें हम
तेरी आँखों को दरिया क्यूँ करें हम

ज़रूरी और भी हैं मस'अले तो
मुहब्बत ही का चर्चा क्यूँ करें हम

गिले सुलझाएँगे दोनों ही मिलकर
भला सबको इकठ्ठा क्यूँ करें हम

सियासत तोड़ देना चाहती है
मगर भाई से उलझा क्यूँ करें हम

हमारे दिल में ही रावण है यारों
ज़माने भर को कोसा क्यूँ करें हम

तुम्हारी दोस्ती काफ़ी नहीं क्या
किसी दुश्मन को ज़िंदा क्यूँ करें हम

नहीं मिलते यहाँ इंसान 'परिमल'
तेरी दुनिया में ठहरा क्यूँ करें हम

ग़ज़ल-4
*****

एक मुट्ठी आसमाँ बाक़ी रहा
हौसलों का कारवाँ बाक़ी रहा

ले गईं मुझको बहाकर ख़्वाहिशें
रेत पर लेकिन निशाँ बाक़ी रहा

वो चिराग़े-दिल बुझा कर चल दिए
और फिर उठता धुआँ बाक़ी रहा

ख़ौफ़ के साये में सूरज छुप गया
जुगनुओं का इम्तेहाँ बाक़ी रहा

रात भर उड़ता था मेरे साथ जो
वो परिंदा अब कहाँ बाक़ी रहा

आँधियों ने कोशिशें तो लाख कीं
दिल में पर हिन्दोस्ताँ बाक़ी रहा

पूछता 'परिमलहै मुझसे हर घडी
क्या हमारे दरमियाँ बाक़ी रहा

© समीर परिमल
*
ग़ज़ल-5
*****
गर मुहब्बत जवान हो जाए
ये ज़मीं आसमान हो जाए

सबकी मीठी ज़ुबान हो जाए
खूबसूरत जहान हो जाए

बन गया मैं अज़ान मस्जिद की
तू भी मुरली की तान हो जाए

आरज़ू मुख़्तसर सी है अपनी
दिल ये हिंदोस्तान हो जाए

हौसलों के परों को खोलो भी
आसमां तक उड़ान हो जाए

इक नज़र देख ले इधर साक़ी
ज़ब्त का इम्तहान हो जाए

राहे उल्फ़त में चल पड़ा 'परिमल'
चाहे मुश्किल में जान हो जाए

ग़ज़ल-6
*****

बड़ा जबसे घराना हो गया है
ख़फ़ा सारा ज़माना हो गया है

हुई मुद्दत किए हैं ज़ब्त आंसू
निगाहों में खज़ाना हो गया है

मुहब्बत की नज़र मुझपर पड़ी थी
वो खंज़र क़ातिलाना हो गया है

जड़ें खोदा किए ताउम्र जिसकी
शजर वो शामियाना हो गया है

दिवाली-ईद पर भाई से मिलना
सियासत का निशाना हो गया है

चलो 'परिमलकी ग़ज़लें गुनगुनाएं
कि मौसम शायराना हो गया है


सहायक शिक्षक
राजकीय कन्या मध्य विद्यालय
राजभवनपटना (बिहार)
मोबाइल 9934796866
ईमेल samir.parimal@gamil.com
With Neetu Navageet- the renowned poetess 



presenting program on Doordarshan









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