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Saturday, 9 July 2016

'O Kavita Ki'' and 'Mukharit Samvedanayean' '(ओ कविता की' :कवि- गणेश झा एवम 'मुखरित सम्वेदनाएँ' :कवयित्री-किरण सिंह)

पुस्तक का नाम- ओ कविता की?
रचनाकार-श्री गणेश झा
विधा- छन्दबद्ध पद्य
भाषा- मैथिली
प्रकाशन- निघण्टू प्रकाशन, पटना-18
मूल्य- रु. 225 
श्री गणेश झा छन्द्कला के सिद्धस्त तो हैं ही उनकी कविताएँ काफी सन्देशपूर्ण तथा भावपूर्ण होने के साथ-साथ देश और दुनिया से जुड़ी हुई भी हैं,
कुछ दृष्टांत प्रस्तुत है-
"खाउ जत्ते अछि क्षुधा, मुदा
मोछ्मे नहि लागि जाय
लुटबाक अछि जे लुटि लिअ
रखाबार जा नहि जागि जाय" (1)

"दैहिक,दैविक,भौतिकता केर
दुख-सुखमे तन मन गेल मथा
सम्पूर्ण जीवनक अभिनयमे
सुख मात्र एकटा लघु कथा" (2)

काव्यक परिभाषा सँ फराक
कोइली नहि भाखय जेना काक
जे कथ्य कथानक गद्य जेना
कहबै हम ओकरा पद्य कोना" (3)






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पुस्तक का नाम- मुखरित सम्वेदनाएँ
रचनाकार- (श्रीमती) किरण सिंंह
विधा-  पद्य
भाषा- हिन्दी
प्रकाशन- वातायण मीडिया एण्ड पब्लीकेशन प्राइवेट लि.,फ्रेजर रोड, पटना
मूल्य- रु. 125 
कवर डिजाइन- रवि गुप्ता 
शब्द संयोजन- संजय प्रजापति

किरण सिंंह उन सभी भारतीय गृहिणी महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती हैं जो मान लेती हैं कि घर-गृहस्ती में खो जाने के बाद व्यक्तिगत रचनाधर्म समाप्त हो जाता है. बड़ी ही ईमानदारी से इन्होंने लिखा है कि अठारह वर्ष की आयु में विवाह होने के बाद घर की जिम्मेदारियों के कारण पहले तो उन्हें कविता लिखने का मौका नहीं मिला परंतु जैसे ही बच्चे बड़े हुए इनमेंं रचनाधर्म पुन: जाग उठा और इन्होंने यह कविता-संग्रह रच डाला. इसमेंं मुक्तक और छ्न्दबद्ध दोनो तरह की कविताएँ हैं. कुछ बानगी देखिये-
"ये तेरे
नयनो का भेदन
मन्त्र मुग्ध हैं
कर सम्भाषण
पलकों से करत लड़ाई
क्या प्रिय तुमको लाज न आई."(1)

"उर भाव जुड़े कविता की तरह 
बहे निर्झर सरिता की तरह
लहर लेखनी चूम कदम
फहराती सत्य ध्वज रण मेंं
लेकर स्मृतियों को मन में" (2)










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