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Small Dhamaka (लघु समाचार) - Cultural / Bihari Dhamaka

2.  नारी-विमर्श पर प्रकाश डालती "झंकृत कर माँ ज्ञान को"

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"झंकृत कर माँ ज्ञान को" कवि "अवधेश कुमार आशुतोष" जी की पाँचवीं पुस्तक है, जो अपने में विविध विषयों के लगभग 400 कुंडलिया को समाहित किये हुए है। इससे पूर्व भी इनकी कुंडलियों की एक पुस्तक "कस्तूरी कुंडल बसे" प्रकाशित हो चुकी है जो "बिहार सरकार के राजभाषा विभाग हिन्दी" द्वारा अनुदानित है। यह पाठकों के बीच बहुत लोकप्रिय हुई। कुंडलिया पहले रीतिकालीन कवियों का पर्याय था, परन्तु आज के युग में भी बहुत से कवियों ने कुंडलियों जैसी कठिन विधा में काव्य की रचना की है और पाठकों द्वारा इसे बहुत सराहा गया। कुंडलिया एक दोहा तथा दो रोलों के सहयोग से बनी होती है इसमें शुरू की  दो पंक्तियों में तेरह-ग्यारह की मात्रा यानी दोहा और बाकी चार पंक्तियों में ग्यारह-तेरह की मात्रा का क्रम होता है जिसे रोल कहा जाता है। "झंकृत कर माँ ज्ञान" को पुस्तक में भाव एवं शिल्प का अद्भुत संयोजन है,जो कवि की रचनाशीलता एवं सृजनधर्मिता को दर्शाता है। कवि की तीक्ष्ण दृष्टि समाज में घट रही घटनाओं पर है। एक ओर इस पुस्तक में जहाँ समसामयिक घटनायें हैं तो दूसरी ओर इसमें श्रृंगार की सरस निर्झरिणी निकली है। इस पुस्तक में महिलाओं एवं बेटियों को बहुत ही उत्कृष्ट स्थान प्राप्त है और उनके मनोबल को ख़ूब बढ़ाया गया है। उसे आत्मसम्मान के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ने की राह दिखाई गई है। वह समाज के सामने प्रेरणास्रोत बन कर आई है। "आशुतोष" जी नारी को सबल एवं शिक्षित रूप में देखना चाहते हैं। उनका मानना है कि यदि नारी शिक्षित होगी तभी हमारा समाज, हमारा गाँव तथा हमारा देश शिक्षित एवं सफल होगा। कवि का कहना है कि नारी में असीमित क्षमता है, वह जन्मदात्री, पालनहार, त्याग एवं ममता की मूरत है। कवि नारी में ईश्वर का रूप भी देखते हैं। आज नारी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है, इसके पीछे उनकी शिक्षा का अहम योगदान है। वह पुरुषों से न सिर्फ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है बल्कि उनसे आगे भी निकल रही है। धरती से अंबर तक आज नारी अपना परचम लहरा रही है।

"आशुतोष" जी का मानना है कि यदि नारी शिक्षित है तो वह बड़ा से बड़ा कष्ट भी अपने बुद्धि एवं विवेक से दूर कर सकती है। वह परिवार की संरचना का आधार है, जिस घर में नारी का सम्मान होता है वहाँ पर देवताओं का निवास होता है।

नारी पूजित हो जहाँ, बसे वहाँ पर देव।
कभी न धन की हो कमी, भरी रहे नित जेब।।
भारी रहे नित जेब, खजाना हो नहि खाली।
लछमी का ही रूप, हुआ करती घरवाली।।
टूटे विपद पहाड़, कभी जब घर पर भारी।
धर दुर्गा का रूप, टूट पड़ती है नारी।।

धरती से अंबर तलक, नारी खड़ी कतार।
पहुंची है हर क्षेत्र में, परचम फहरे नार।।
परचम फहरे नार, बुद्धि-बल के सब कायल।
बदला नहि श्रृंगार, पहनती अब भी पायल।।
जाती है जिस क्षेत्र, हृदय से सेवा करती।
सहनशीलता, त्याग, धैर्य में, है वह धरती।।

"आशुतोष" जी कहते हैं कि मनुष्य की इच्छाएँ असीम है, उसकी कोई सीमा नहीं है। कभी मनुष्य का दिल ठंढक चाहता है, तो कभी मधुर वसंत चाहता है। कभी पिया का संग चाहता है, तो कभी राग मल्हार, तो कभी हिया का हिल्लोड़ चाहता है। अपनी इच्छाओं की समीक्षा कर पाना तो बहुत ही दुष्कर कार्य है, क्योंकि इच्छाएँ तो असीमित होती है, एक आती है तो एक जाती है।

इच्छा की सीमा नहीं, छोर न इसका अंत।
दिल ठंडक चाहे कभी, चाहे मधुर बसंत।।
चाहे मधुर बसंत, कभी तो संग पिया का।
कभी राग मल्हार, कभी हिल्लोड़ हिया का।।
सच में दुष्कर काम, चाह की कठिन समीक्षा।
एक पकड़ती राह, दूसरी आती इच्छा।।

कवि का कहना है कि प्यार में ऐसी औषधि है, जिससे शुष्क पेड़ भी खिल जाता है और बिना प्यार के हरा-भरा पेड़ भी कुम्हला जाता है, कितनी जिंदगी मुरझा जाती है। यह सिर्फ मनुष्य के साथ ही लागू नहीं होता बल्कि हर जीवन के साथ लागू होता है।

ऐसी औषधि प्यार में, शुष्क पेड़ खिल जाय।
हरा भरा इक पेड़ भी, प्यार बिना कुम्हलाय।।
प्यार बिना कुम्हलाय, मिले यदि खाद न पानी।
हो कोई भी जीव, सभी की एक कहानी।।
जितने कोमल भाव, सबों में प्यार हितैषी।
मुरझाती बिन प्यार, जिंदगी ही है ऐसी।।

कवि कहते हैं कि चिंता और चिता में चिंता अधिक खतरनाक है क्योंकि, चिंता का शिकार तो सिर्फ मृतक है, परन्तु चिंता लोगों को जिंदा जलाती है। चिंता का काम अधिक मुश्किल है, क्योंकि चिता तो श्मशान में जलती है। परंतु चिंता लोगों के घर में उनके बीच रहकर उन्हें जलाती है।

कहती चिंता ऐ चिता! तू मत शान बघार।
तुम से तो मैं बीस हूँ, तेरा मृतक शिकार।।
तेरा मृतक शिकार, जलाती मैं तो जिंदा।
मेरा मुश्किल काम, कभी तो हो शर्मिंदा।।
तेरा घर श्मशान, सभी घर में मैं रहती।
सीमित तेरी सोच, तभी तो मैं यह कहती।।

"आशुतोष" जी की कुंडलियों को पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे किसी कुशल जौहरी ने एक-एक हीरे को बहुत मेहनत से तलाश कर करीने से सजाया है। विविध विषयों का यह संयोजन लिए हुए लगभग चार सौ कुंडलियों की एक अद्भुत पुस्तक है। इसमें श्रृंगार के कोमल पक्ष भी हैं और राजनीति, भ्रष्टाचार जैसे समाज का घिनौना पक्ष भी। आज के समय में नारियाँ एवं बेटियाँ हर पल शोषित एवं दमित हो रही है उसे "आशुतोष" जी की कुंडलियाँ ने जीवन की सही राह दिखाई है। उसे अपनी शक्ति पहचानते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा दी है। शरीरिक रूप से कमजोर होते हुए भी नारियों का समाज में अहम योगदान है। हमारे समाज में उनकी कुंडलियाँ नारी के आत्मविश्वास एवं आत्मगौरव को बढ़ाने का काम करती हैं। आधी आबादी को महिमामंडित करती, आसमान की बुलंदियों को छूने के लिए प्रेरित करती यह एक अद्भुत पुस्तक है। नारी के आत्मसम्मान को दृढ़ता प्रदान करने वाली, उसे समाज में प्रतिष्ठित करने वाली पुस्तक है "झंकृत कर माँ ज्ञान को" जो अपने में "गागर में सागर" समाये हुए है।

श्रृंगार रस की कुंडलिया पाठकों को श्रृंगार सागर में गोते लगाने का सुखद अनुभूति कराती है। इस पुस्तक का श्रृंगार पक्ष अद्भुत है, साथ ही अध्यात्म पक्ष काफी प्रबल है। कवि का गहन ज्ञान इनकी कुंडलियों से छलकता है।

 कुल मिलाकर पुस्तक "झंकृत कर माँ ज्ञान को"  मानव को आत्मसम्मान के साथ जीने का संदेश देती है। किस तरह पारिवारिक जीवन सुखमय हो, जीवन में मनुष्य को किस तरह सामंजस्य बना कर चलना चाहिए इन सभी गंभीर विषयों पर भी अनुपम कुंडलियों का सृजन हुआ है। शीघ्र ही कवि की भजन की पुस्तक "सब कुछ तुझपर वार दिया है" और बरबै छन्द में "वाल्मीकि रामायण" का अयोध्या काण्ड की पुस्तक "वन को चले सियारघुराई" पाठकों के समक्ष आने वाली है।ये पुस्तकें पाठकों के लिए निश्चित रूप से उपयोगी होंगी। 
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समीक्षक - डॉ० विभा माधवी
समीक्षक का ईमेल - bibha.madhawi@gmail.com
पतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com
पुस्तक मूल्य:- 195
शिवालिक प्रकाशन, दिल्ली
प्रकाशन वर्ष:2019
(page LC - 28)





1. कवि शंभु अगेही की पुण्यतिथि पर  हिंदी समाहार मंच दरभंगा द्वारा दरभंगा में 24.8.2019 को लोकार्पण और साहित्य शिखर सम्मान सम्पन्न

 शंभु अगेही की पुण्यतिथि पर  हिंदी समाहार मंच दरभंगा द्वारा दरभंगा में 24.8.2019 को लोकार्पण और साहित्य शिखर सम्मान 

साहित्य शिखर सम्मान,हिंदी समाहार मंच, दरभंगा। कवि शंभु अगेही की पुण्यतिथि पर प्रति वर्ष 24 अगस्त को सम्मान समारोह आयोजित होता है। श्री अगेही की हिंदी सहित बजिका‌ तथा मैथिली में दो दर्जन से अधिक कविता, कहानी, आलोचना तथा संदर्भ ग्रंथ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी रचनाओं पर टेली फिल्म बन चुकी है। अबतक प्रकाशित पुस्तकों की सूची यहां दी गई है। किन्तु इनकी अनेक पुस्तकें अप्रकाशित हैं। प्रति वर्ष इनके पुत्र इस अवसर पर इनकी अप्रकाशित पुस्तकों में किसी का लोकार्पण इस अवसर पर करते हैं। इस वर्ष भी उनकी कुछ धार्मिक पुस्तकों का लोकार्पण हुआ.

इस वर्ष कवि अगेही की तीसरी पुण्यतिथि पर सम्मान समारोह भी आयोजित किया गया।  इसके अंतर्गत इस वर्ष डॉ. सुजीत वर्मा, पटना, चितरंजन सिन्हा ‘कनक, मुजफ्फरपुर, प्रेमकुमार वर्मा, मुजफ्फरपुर, पूनम सिन्हा श्रयसी, पटना,  रत्ना नन्द झा छोटन, वैशाली, डॉ. किरण शंकर प्रसाद, दरभंगा, मंजर सिद्दीकी व नरेंद्र किशोर सिन्हा, समस्तीपुर को सम्मानित किया गया। 

सुजीत कुमार अंग्रेजी और हिंदी के जाने माने साहित्यकार हैं और उनकी एक कृति अंग्रेजी में और एक हिंदी में प्रकाशित हो चुकी हैं जिनके चित्र नीचे दिये जा रहे हैं.
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सूचना प्राप्ति सौजन्य - डॉ. सुजीत वर्मा
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@yahoo.com












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