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Sunday, 21 June 2020

महिला काव्य मंच बिहार की आभासी गोष्ठी 16.6.2020 को संपन्न

न धरा चाहिए न गगन चाहिए / देह‌ पर इक तिरंगा कफ़न चाहिेए

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१९ जून २०२० को, महिला काव्य मंच  बिहार का पट ७ बजे शाम को खुला और एक-एक करके अर्घ्य ‌सुमन अर्पित होने लगे। चलचित्र की तरह पट पर लोग दिखने  गे। नरेश नाज  के संरक्षण एवं डॉ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव  की अध्यक्षता में काव्यमृत सलिला प्रवाहित होने लगी। मणिबेन  के दीप प्रज्वलन एवं माला अर्पण के बाद नरेश़ नाज  की सरस्वती बंदना की मिठास‌ कानों में घुलने लगी -  मां शारदे दान विद्या का दे के मुझे तार दे।

सुधा सिन्हा 'सावी' ने रूमानी रंग घोला - 
गर मुहब्बत यहाँ नहीँ होतीं
तो दिवानी किधर गयी होती

हरेन्द्र सिन्हा ने देशभक्ति से सराबोर कर दिया -
न धरा चाहिए न गगन चाहिए
 देह‌ पर इक तिरंगा कफ़न चाहिेए।

क्या खूब कहा । नरेश नाज ने एक राजनीतिक निशाना साध दिया।

एम के अम्बष्टा कुछ कम न थे -
जीवन मिला अनमोल इसे प्यार से जीकर देखो
औरों में खुशियां बांटो ।

थोडी मधुरेश नारायण से सुने -
मिलजुल कर रहते है हम।

प्रभात से सुनें__
तब तुम भी कुछ बन जाती हो और मैं भी ‌कुछ बन जाता हूं।
 इतना ही नहीं इनकी थोड़ी ज़़जबात तो  समझिए -
तेरी आंखो की‌ चमक रोज बढ़ती जाती है 
किसके इश्क का कजल लगा लिया तुमने
-क्या खूब। 

भगवती प्रसाद द्विवेदी से सुनिए-
भटका मृगशावक मन जंगल-जंगल,
कस्तूरी-गंध छिपी गाँव में ।
दूसरा भोजपुरी नवगीत:
सूखि गइल सरिता उमंग के
कुम्हिला गइल सुमन,
कहाँ निरेखीं आपन सूरत,
दरक गइल दरपन ।

भोजपुरी भी सुनिये -
सूख गईल सरिता, उमंग के
 कुम्हला गईल सुमन ।

धनश्याम  की तो बात ही निराली -
तेरी‌ आ़खो की नादानी न होती
मुझे इतनी परेशानी न होती।

इसके अलावे पूनम सिन्हा श्रेयसी, मीना परिहार, रजनी पाठक, प्रतिभा परासर, राशी श्रीवास्तव, डा पुष्पा जमुआर, लता प्रासर, अनिता सिद्धि, उषाकिरण, किरण कुमारी, नूतन सिन्हा, संतोष बंसल, अनिमा श्रीवास्तव, डा अन्नपूर्णा श्रीवास्तव ने   भी काव्य सुमन अर्पित किये। अनिता सिद्धि एवं मणिबेन ने क्या  खूब मंच संचालन किया।
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रपट की प्रस्तोता - सुधा सिन्हा 'सावी'
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