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Wednesday, 29 January 2020

बसन्ती बयार / आभासी कवि गोष्ठी - बिहारी धमाका दिनांक 29.1. 2020

फूलों के मंत्रालय से

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वसन्त ऋतु एक मौसम नहीं एक जीवन-दर्शन है. आप वृद्धावस्था में भी इसका अनुभव कर सकते हैं और युवावस्था में नहीं भी. प्रेम और सौंदर्य से परिपूर्ण सकारात्मकता का दूसरा नाम ही वसन्त है.  आज वसंत पंचमी के विशेष अवसर पर हमने श्रीमती पूनम (कतरियार) जी की पहल पर एक आभासी कवि गोष्ठी रच डाली है. आशा है आपको पसंद आएगी.  तो आइये, वसंत के झरोखे से देखते हैं कुछ अपने आस-पास के कवियों की काव्य रचनाओं को -

साहित्य के पुरोधा और 42 पुस्तकों के लेखक डॉ. शिव नारायण जैसे गम्भीर कवि भी वसन्त ऋतु में कह उठते हैं -
फूल जैसा ही वो संवर जाके
बन के खुशबू कहीं बिखर जाए
ज़ख्म इतना बढ़ा दो सीने में 
मौत भी ज़िंदगी से डर जाए
क्या भरोसा करें उसी पर हम
साथ देने से जो मुकर जाए
तुम उसी वक़्त ही चले आना 
चांद जब झील में उतर जाए
ऐसे लोगों से 'शिव' नहीं मिलता
बात करने से जो मुकर जाए.
एक अच्छा कवि अनिवार्यत: जीवन में सौंदर्य और प्रेम का उपासक होता है. इसलिए इन्होंने अपने नवीनतम कविता-सग्रह का नाम रखा है -"झील में चांद" जहां से उपरोक्त पंक्तियां ली गईं हैं.

कवयित्री पूनम (कतरियार) को बसन्त ऋतु में किसी का आना अच्छा लगता है और अपनी मीठी अनुभूतियों के पलों को वो कुछ इस तरह से व्यक्त करती हैं 'आमंत्रण' शीर्षक से अपनी कविता में -
अच्छा लगता है,
यह मधुमय बसंत
और किसीका आना
गुंजन करते भ्रमर-सा
अलबलाते कुछ कहना.
अकस्मात्
वो सुलझे केशों को
बार-बार उलझाना.
पाॅकेट में हाथ डालते
चाॅकलेटस् निकल आना.
साझा करना किसीसे
प्यारी-सी कोई उलझन.
अपनी चिंता-परेशानी
छोटी सी चुटीली कधन.
चपल नयन का नैनों से
बेबाक बतियाना.
और कभी घुंघरूओं-सा
रूनझुन गुनगुन करना.
हां, अच्छा लगता है,
किसीका यूं जीवन में आना.
जिंदगी में शामिल होने का
बासंती-आमंत्रण दे जाना.

प्रतिष्ठित युवाकवि रोहित ठाकुर बहुत कम समय में पूरे देश के लगभग सभी पत्र- पत्रिकाओं और साहित्यिक ब्लॉग में प्रकाशित हो चुके हैं और होते आ रहे हैं. शब्दों के अप्रत्याशित अर्थों का अन्वेषण और अभूतपूर्व बिम्ब निर्माण ही रोहित का यूएसपी या अनन्यता है . उनकी ताज़ा कविता प्रस्तुत है - 
* तुम एक मौसम को छूती हो 
   फूलों के मंत्रालय से
    ख़बर आती है
   यह बसन्त है.
* तुम फूलों के नाम का उल्लेख करो
   और दिन गिर आता है
   बसंत की गोद में |
* तुम फूलों के नामों का मंत्राचार हो
   तुम्हारी छाया ही बसंत है |

कवयित्री लता प्रासर इन दिनों कविता-प्रकाशन का कीर्तिमान स्थापित करती दिख रही हैं. वे सूरज को गले लगा रही धरती को बधाई देती कहती हैं -
सूरज गले लगा रहा प्यारी धरती को बधाई हो
धरती अंगड़ाई ले रही बसंती हवा संग बधाई हो
जन जन का चेहरा खिल उठा मौसमी बयार से
प्रकृति जीवंत रहे उमंगों की बौछार बधाई हो!

'सिद्धेश्वरनामा' डायरी श्रृंखला से बिहार भर में छा जानेवाले कवि सिद्धेश्वर वसंत ऋतु के ठीक पहले मनाए गए ग़णतंत्र दिवस पर भारत के स्वाभिमान और संविधान की रक्षा करने की शपथ ले रहे हैं -
जय  गणतंत्र, जय  संविधान
जय-जय भारत का स्वाभिमान !
तिरंगे को सींचते, रहें  खून ‌से
उन अमर शहीद को  पहचान !
न हिंदू -मुस्लिम, न सिख ईसाई
हम  सब  हैं  पूरा  हिंदुस्तान !
न धर्म -जाति, न रंग -भेद
इंसानियत हो जिसकी पहचान!
वही सपूत है भारत  देश   का
जिसके दिल में,शहीदों का सम्मान!
न जय नेता, न  जय अभिनेता
जय जवान, जय किसान जय विज्ञान !

सभी साहित्यकारों को ब्लॉगिंग के माध्यम से संयोजित करने के प्रयास में सदैव तल्लीन रहनेवाले कवि हेमन्त दास 'हिम' भी वसन्त के खुशनुमा मौसम में कुछ बेफ़िक्र से हो गए हैं -
चांद तारों से सजा आसमान कहता है 
आपके शहर का मौसम खुशनुमा रहता है
ज़िंदगी गुजरती है बेफ़िक्र इस तरह 
दरिया में बिन माँझी जैसे नाव बहता है
हर रोज यहां महफ़िल सजी रहती है
हर लम्हा प्यारा समां रहता है
अजनबी लोग भी लगते हैं पहचाने से
और अपनों में नयेपन का गुमां रहता है
दूर होने पर रहती है यादों की खुशबू
जिसमें दिल जुदाई का गम सहता है.

आप सब को वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकमनाएँ!
..........
संयोजन और प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम'
कविताएँ - डॉ. शिव नारायण, पूनम (कतरियार), रोहित ठाकुर, लता प्रासर, सिद्धेश्वर, हेमन्त दास 'हिम'
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
नोट: 1. डॉ. शिव नारायण का काव्यांश उनकी पुस्तक से और श्री रोहित ठाकुर का उनके वाल से लिया गया है. वो चाहें तो पूरी कविता इसमें प्रकाशित करने की अनुमति दे सकते हैं.
2. अन्य जो भी कवि (देश के या बाहर के) वसंत ऋतु से संबंधित कविता इसमें शामिल करवाना चाहते हैं  वे ईमेल से (कविता / चित्र) शीघ्र भेजें- editorbejodindia@gmail.com








       

Tuesday, 28 January 2020

ब्रजकिशोर स्मारक प्रतिष्ठान द्वारा पटना में 13.1.2020 को कवि-गोष्ठी सम्पन्न

जिंदगी फिर से मुस्कुराई है

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 राष्ट्रसेवा और मानवीय चेतना को समर्पित महान  स्वतंत्रता सेनानी ब्रजकिशोर प्रसाद की 143वींजयंती की पूर्व संध्या में कवि गोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया। इस समारोह की विशिष्टता थी कि सर्द भरे मौसम में भी एक दर्जन श्रेष्ठ कवियों के अतिरिक्त ढेर सारे श्रोताओं ने गोष्ठी के अंत तक पूरी तन्मयता से कविताओं को गंभीरता के साथ सुना और आनंद उठाया।

ब्रजकिशोर स्मारक प्रतिष्ठान के सभागार में आयोजित कवि गोष्ठी का सशक्त संचालन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कविता के संदर्भ में कहा कि  कविता हमें जीवन से जोड़ती है और जीवंत बनाती है। जब तक  जीवन है, हम कविता को जीवन से अलग नहीं कर सकते। और यह सच भी है। कविता मनुष्यता की मातृभाषा है। किसी कवि ने तो यहां तक कह दिया है कि कविता भाषा में आदमी होने की तम्मीज है। क्या यह सच नहीं है कि कविता मनुष्यता की मातृभाषा है ? गूंगे का गुड़ है कविता। इसके बारे में कोई सटीक परिभाषा नहीं दी जा सकती। और न ही कविता को पूरी तरह व्याख्यायित किया जा सकता है।

 हां, कविता आज के लिए और भी जरूरी बन गई है, इसमें कोई संदेह नहीं। क्योंकि आज सारे मानवीय मूल्य क्षरित हो रहे हैं। और हर तरफ अमानवीयता का ही दौड़ है। ऐसी स्थिति में कविता ही हमें बचा सकती है। मनुष्यता के पक्ष में कविता ही खड़ी हो सकती है।

इस कवि गोष्ठी में कविता के हर विधाओं में लिखने वाले कवि मौजूद थे। कवि गोष्ठी के आरंभ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से पुरस्कृत गीत चेतना की कवयित्री शांति जैन के काव्य पाठ से हुआ-
तोड़ना था नहीं पर
तोडना पडा
मेरी पसंद और थी
उसकी पसंद और थी
इतनी जरा सी बात पर
घर छोड़ना पड़ा।"

जीवंत गीतकार मधुरेश नारायण ने सस्वर गीतों का पाठ किया -
"जिंदगी फिर से मुस्कुराई है
  जीने की फिर वजह जो पाई है।"

गीत के बाद गजल की महफ़िल जमी, सुप्रसिद्ध कवयित्री आराधना प्रसाद की मधुर गजल गायन और अंदाज़े- बयां से  -
" जो अपने फैसले पल - पल बदलते रहते हैं
    वो  जिंदगी में यूं ही  हाथ  मलते रहते  हैं।"

गीत गजल के बाद व्यंग्य कवि अरुण शाद्वल को मंच पर आमंत्रित किया गया?! उन्होंने तीखे व्यंग्य से परिपूर्ण कविता प्रस्तुत की -
      "वह एक उंगली ही तो होती है
      जो करती है फैसला कि
         आप खेल में हैं या नहीं ।"
  वह भी उंगली तो  है
 जो  तय कर देती है
 किसी तख्त या तख्ते का। "

वरिष्ठ कवि मुकेश प्रत्यूष ने अपनी छोटी-छोटी कुछ कविताओं का पाठ किया -
"एक पहाड़ी धून सुनी
और मैं उदास हो गया
मैंं उदास हो गया
एक ताजा खिले गुलाब के ऊपर
 बैठे भौंरे को देखकर!"

आज की सामाजिक व्यवस्था पर तंज़ कसती हुई एक नज्म पेश की संजय कुमार कुंदन ने -
"कसीदें पढ़ रहें सभी
वो बारिशों की शाम में
तप रही जमीं
कदम जहां जहां पडे़!"

संवेदना जगाती एक मुक्तछंद की कविता प्रस्तुत की पत्रकार कवि अनिल विभाकर ने -
  "ढेर सारे काम करती हैं उंगलियां
इशारा भी करती हैं / तिलक भी लगाती हैं!
 इशारा करने वाली उंगलियां उठती भी हैं,,,!".

ग्राम्य जीवंतता से पूर्ण मधुर गीतों का पाठ किया वरिष्ठ गीतकार विजय प्रकाश ने -
  "अमन चैन की बीन बजाता
निर्भय गाँव-नगर हो
अमरायी के बीच हमारा
 छोटा- सा  इक घर हो।"

हिन्दी और भोजपुरी के वरिष्ठ कवि कथाकार सतीश प्रसाद सिन्हा ने भोजपुरी में गीत सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया -
 " तन मकान, मन अंगना
   निकलल तीर कमान से
     मुंह से निकलल बात।
लौटावे के बा कहां
केहु में औकात.!"

 पत्रकार कवि प्रभात कुमार धवन ने अंतर्मन की व्यथा को कविता के माध्यम से उद्घाटित किया-
"ससुराल के चारों
जल्लादों के बीच
खत्म हो गई तेरी चंचलता / तेरा आकर्षण
तेरी खुशी / तेरा स्वास्थ्य! "
सुहागन होकर भी
विधवा सी रहती है!"

नामचीन ग़ज़लगो घनश्याम की हिन्दी गजल की बेबाक़ी ने श्रोताओं को ताली बजाने को मजबूर कर दिया -
" मुझको मरना  ही होगा, तो मर  जाऊंगा 
   अपनी खुश्बू तेरे नाम कर जाऊंगा
  भूल कर भी नहीं, यह भ्रम पालना 
तू जो धमकाएगा तो मैं डर जाऊंगा
मुझको   परदेश हरगिज सुहाता नहीं
अपना वैभव संभोलो, मैं घर जाऊंगा
       तेरी मर्जी पे नहीं, मेरी मर्जी पे है
      मैं इधर जाऊंगा या उधर जाऊंगा ।"

घनश्याम जी ही हिंदी गजल की सादगी के बावजूद उसके जोरदार असर को कुछ यूं  साबित करते हैं -
"बात गहरी हों लब्ज सादे, शायरी का राज है
ये बयां करने का सबसे खुशनुमा अंदाज है
तुम दिमागी कसरतों से छंद लिखना छोड़ दो
ग़ज़ल दिल की साज से निकली हुई आवाज है।"

लब्धप्रतिष्ठ कथाकार, शिवदयाल , जो एक जीवंत कवि भी हैं। उनकी छोटी छोटी कविताओं में भी जीवन दर्शन होता है, बहुत बड़ी बड़ी बातें होती हैं -
"कम से कम जगह में भी
जगह निकल आती है!
आखिर तो
पतली सी सुई में भी
धागे के लिए
एक जगह होती है !
,,,,, और इतनी सी पुतली में
सारा संसार समा जाता है!!"
कि / रचना का मूल्य
उसे देखने पढने वाले तय करते हैं!"

कवि हरेन्द्र सिंह ने गीत सुनाया-
" प्रेम सरसता हाथ में लेकर
  घर घर हम पहुंचाएं जी!"

कवि, कथाकार, चित्रकार सिद्धेश्वर ने अपनी दो समकालीन कविताओं का पाठ किया -
"सूखा हुआ नहीं / हरा लचीला बांस हूं मैं
टूटता मुड़ता नहीं
सिर्फ अपनी हद तक लचकता हूं
इसलिए गिर गिरकर संभलता हूं!"

 साहित्य में भी पूरी प्रतिबद्धता के साथ लिख रहें कवि मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ डां मिथिलेश्वर प्रसाद वर्मा ने समाज और देश को रेखांकित करते हुए मुक्तछंद कविताओं का पाठ किया -
"सुबह सुबह दरवाजा और खिड़कियां खोलते ही
घुस आती है किरणों के संग
रात की चीखें
और हवाओं में बेचैनियों का सिलसिला शुरू हो जाता है!"

संचालन क्रम में भगवती प्रसाद द्विवेदी ने भी अपने गीतों का पाठ कर कवि गोष्ठी को गरिमा प्रदान की -
   "कहां हैं वे लोग, वे बातें उजालों से भरी
पंच परमेश्वर के जुम्मन शेख अलगू चौधरी
खून के प्यासे हुए
इंसाफ करते हिटलरी।"

इस सारस्वत समारोह, संस्थान के सचिव पी वी मंडल ने आगत अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया और यह उद्घोषना भी की कि आज पढी गई कविताओं को कवियों के फोटो परिचय के साथ, एक पुस्तक प्रकाशित करेगी यह संस्थान।

कवि गोष्ठी में पढी गई कविताओं को एक  पुस्तक का रुप देने के इस सिलसिले को और भी संस्थाएं आगे चलाए तो यह एक ऎतिहासिक कार्य होगा। 
........
रपट के लेखक -  सिद्धेश्वर
छायाचित्रकार- सिद्धेश्वर
रपट के लेखक का ईमेल -  sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल  - editorbejodindia@gmail.com                 






    

          

         


Saturday, 4 January 2020

इंद्रधनुषी कविताओं का मेला साहित्य कला संसद बिहार द्वारा 29.12.2019 को पटना में आयोजित - सिद्धेश्वर की डायरी

कविता मनुष्यता की मातृभाषा है

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साल को गुडबाय कहता हुआ, नए  साल के भव्य स्वागत में, पटना के साहित्यकारों ने जश्न-ए-बहार मनाया इन्द्रधनुषी कविताओं के माध्यम से। साहित्यिक संस्था साहित्य कला संसद के बैनर तले कड़कती ठंड में भी पचास से अधिक कवियों और लगभग उतनी ही संख्या में प्रबुद्ध श्रोताओं (जो अक्सर साहित्यिक आयोजनों में अपवाद ही बने रहते हैं) की गहमागहमी पटना के कालिदास रंगालय में देखने को मिली।

इस बार भी हमारी संस्था भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् ने जब अलविदा साल और नए साल के स्वागत में गोष्ठी की तारीख रखी तब साहित्यिक मित्र पंकज प्रियम ने मेरे  फोन पर अपने आयोजन की जानकारी देते हुए मुझे आमंत्रित किया और काव्य पाठ के साथ साथ मेरी कविता पोस्टर प्रदर्शनी को इसी समारोह में समायोजित करने का प्रस्ताव रखा। हम करें या पंकज प्रियम। पटना में हमारे लगभग वही साहित्यकार मित्र हैं जो उनके!ऐसे में दो या चार  संस्थाओं के संयुक्त तत्वावधान में भी आयोजन करना श्रेयस्कर हो सकता है। हमारे  दिग्गज साहित्यकार ऐसा करते रहे हैं। खैर, अंततः मैं अपनी संस्था का कार्यक्रम रद्द कर इस संगोष्ठी में सह भागीदार बना। 

साहित्य कला मंच की ओर से आयोजित इस सारस्वत समारोह के मुख्य अतिथि, वरिष्ठ कथाकार कवि भगवती प्रसाद द्विवेदी ने ऐसे आयोजन की सार्थकता को रेखांकित करते हुए कहा कि "इस तरह का कार्यक्रम हमें जीवन और जगत को निरपेक्ष ढ़ंग से देखने का संदेश देता है। यह कविताओं का इन्द्रधनुषी मेला और इसमें कविता के ढेर सारे रंगों ने हम सबको सराबोर कर दिया है।"

कविता के संदर्भ में उन्होंने कहा कि "कविता भाषा में आदमी होने की तमीज ही नहीं, बल्कि कविता आत्मा और मनुष्यता की मातृभाषा है। मेरे लिए अंतस की असह्य अकुलाहट की अभिव्यक्ति है।"   
   
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ समालोचक डॉ. शिवनारायण ने कविता की जीवंतता के संदर्भ में कहा कि  "कविता हमें अपने समय और समाज की संवेदना से जोड़ कर एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है। इसलिए कविताओं से साल की विदाई और स्वागत का यह आयोजन अनूठा है।"

साहित्य कला संसद के अध्यक्ष और इस समारोह के संयोजक डॉ. पंकज प्रियम ने कहा कि -" इन्द्रधनुषी कविताओं के इस मेले में सभी विचारधाराओं के कवियों का समागम हुआ है जिन्होंने अपनी- अपनी शब्द साधना से मानवता की सीख समाज को दी है।.

कविता मेले में कई पीढ़ियों के कवियों की हिस्सेदारी रही। इस इन्द्रधनुषी कविताओं के मेले में भगवती प्रसाद द्विवेदी, शिवनारायण, संजय कुमार कुंदन, शहंशाह आलम, निविड़ शिवपुत्र, विजय गुंजन, अश्विनी कविराज, डॉ. सीमा रानी, सुमन चतुर्वेदी, मो मोईन, विभा कुमारी, कुमारी मेनका, प्रभात कुमार धवन, सीमा रानी, सिंधु कुमारी, गौरी गुप्ता, विजय प्रकाश, रश्मि गुप्ता, घमंडी राम समेत चालीस से ज्यादा कवियों की जबरदस्त काव्य प्रस्तुति हुई। ठंड भरे मौसम में भी इस मेले में गर्मजोशी रही। । मिलकर, कविताएं सुन-सुनाकर मुझे भी इतना आनंद आया कि लगा बीतते साल ने जाते-जाते अमूल्य सौगात दे दी है। हलाकि आए हुए कवियों में कुछ ऐसे महान कवि भी थे जिन्हें मंच पर जगह नहीं मिली तो वे बिना काव्य पाठ किए ही चुपचाप घिसक गए। और कई और भी ऐसे कवि थे जो आमंत्रित कवियों में अपना नाम और काव्य पंक्तियां देकर भी अनुपस्थित रहे। बावजूद इसके "रेडिमेड तैयार न्यूज" की वजह से और पत्रकार बंधु की कृपा से उन अनुपस्थित कवियों का नाम अखबार में प्रकाशित हुआ और कई उपस्थित कवियों का नाम न छपने की भी विवशता भी बनी रही।

अध्यक्ष डॉ शिवनारायण की ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ यूं थी- 
"ग़म का क्या उपचार नहीं है
लोगों में किरदार नहीं है
ऊपर ऊपर क्या  पढ़  लोगे
जीवन यह अखबार नहीं है
हम रिश्तों में जीनेवाले
कोई भी दीवार नहीं है
जो खुशियों पर ताला जड़ दे
ऐसी  भी  सरकार  नहीं  है
'शिव' को यह मालूम हुआ है
जीना यह दुश्वार नहीं है।"
...... 
"कदम कदम पर लाखों छल
भीड़  बहुत  है  धीरे  चल
सारे खत को खोले हम
शायद कोई निकले हल।"
(-शिवनारायण)

इतने विविधतापूर्ण आयोजन की पूरी सफलता कवि सम्मेलन के संचालन पर निर्भर करता है जिसकी जिम्मेवारी बखूबी निभाई युवा कवयित्री  रश्मि गुप्ता ने। अपने मधुर और सशक्त संचालन के दौरान ही रश्मि गुप्ता ने काव्य पाठ भी किया -
"जिनके जीवन में कोई हमसफर नहीं होता।
 उनका तो लोगों सकूं से सफर नहीं होता।"

संजय कुमार कुंदन की यह नज़्म ठेठ उर्दू भाषा समझने वालों के लिए ख़ास लज़्जतदार रही -
"ये एक अजीब दौर है / खिंजां रसीदा नख्ल है
 मगर है शोरे फसले गुल / कसीदें पढ़ रहे सभी
वो बारिशों की शाम में!"

विशिष्ट अतिथि के रूप में मंचासीन कवि शहंशाह आलम की समय संदर्भित एक समकालीन कविता का पाठ किया, जिसमें लोग अर्थ तलाश रहे थे-
"भय को मैंने भगाया / शत्रुओं को चेतावनी मैंने दी
गहरे मौन को  स्वर मैंनें दिया / तोतों को मैंनें पुकारा
अदृश्य घर को दृश्य मैंने दिया!"

गीतकार विजय गुंजन का गीत श्रोताओं को खूब भाया-
"साँस-साँस में यति-गति-लय है
यह जीवन है छंद ,
विना छंद के हम निबंध हैं
कवि तो अब हैं चंद।
अनुशासन में रह कर ही हम
सबकुछ कर सकते हैं,
निर्जीवन में सुकर सौर्य -बल
अतुलित भर सकते हैं ।
यति-गति-लय में नियत नियंत्रण,
 से- अग-जग गतिमय है,
इनके विना उपग्रह-ग्रह - भू-अम्बर
समझो क्षय है।"
   
आयोजक संस्था साहित्य कला संसद बिहार के अध्यक्ष कवि पंकज प्रियम ने सुनाया -
 "हिंदु हैं, सिक्ख हैं, ईसाई हैं,  मुस्लिम हैं
जो कुछ भी हो / एक साथ है
लोग खून को चाहते हैं पतला बनाना/
किंतु हम अस्तित्व में घनत्व में एक हैं।

 "कवयित्री सुधा सिन्हा ने नए वर्ष के संदर्भ में काव्य पाठ किया -
"नव वर्ष का प्रणाम करते हैं!
हर दिन का सलाम करते हैं!!
जिन्दगी खुशियों से भरी रहे
यही तो कलाम पढ़ते हैं!"

कवि सिद्धेश्वर ने नए वर्ष की शुभकामनाएं देते हुए सकारात्मक संदर्भों को रेखांकित करते हुए अपनी एक नई कविता प्रस्तुत की -
" कितना बुरा बीता पिछला वर्ष
     इसका पश्चाताप करने से
     क्या दुःख भरे जीवन में
     जाग उठेगा, उत्साह और हर्ष?
             अतीत की कब्र पर बैठकर
              जी भर आंसू बहाने के बदले
               वर्तमान की कर्मभूमि पर
                क्यों न रोपें /उम्मीदों के बीज ?
  ताकि फिर से जाग उठे नए सपनें
  खिल उठे मुरझाया हुआ जीवन!
  सुख-समृद्धि से हो मिलन !
  नए साल में, महके-चहके तेरा उपवन!"

कवयित्री मधुरानी की कविता में ग़ज़ब की कशिश थी-
"न  कुछ  कहा, न  इकरार  किया
बस दिल ने कहा और प्यार किया।
जाने  कौन से  बंधन  में बँध  कर
अंतर्मन  ने  तुम्हें  स्वीकार किया।"

एक मधुर गीत का पाठ किया सिंधु कुमारी ने-
"सूरज को क्षितिज पर
बुला रही वो कौन है?"

श्रोताओं ने नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर विजय प्रकाश के गीतों की भूरि भूरि प्रशंसा की -
 "खट्टी-मीठी यादें देकर हायन अंतर्ध्यान हो रहा
यहीं कहीं तुम छिपी हुई हो ऐसा रह-रह भान हो रहा।
सपना देखा है मैंने इक, सपना यह सच हो जाए,
तुम मेरे गीतों की गरिमा, मैं तेरी मुसकान हो रहा।"
उन्होंने  वर्ष को संबोधित करते हुए कहा -
"मुट्ठी से रेत जैसी
पल-पल फिसल रही हैं
ये सांस, उम्र, घड़ियाँ-
कैसे इन्हें संभालूँ?
शायद न वश में अपने
इसके सिवा बचा कुछ
कि साथ-साथ तेरे
कुछ और दूर चल लूँ,
कुछ और गीत गा लूँ!
नववर्ष तुम मना लो
मैं हर्ष में नहा लूँ

 हिंदी गजल की एक विशेषता यह भी है कि वह सीधे तौर पर श्रोताओं के हृदय में समा जाती है जैसा कि मशहूर शायर ऋतुराज राकेश ने अपनी रचना से उदाहरण प्रस्तुत किया -
"मुझको   कैसी   बीमारी   है  तुम्हीं कहो
जागते   शब   गुजारी   है    तुम्हीं  कहो। 
करके  वादे  न  आये  सर-ए-बज़्म  क्यों
आज   कैसी   लाचारी   है   तुम्हीं  कहो?
हम  तुम्हारी  तरफ  जो  बढ़े  दो   कदम
भूल   क्या   ये   हमारी  है   तुम्हीं  कहो।
जाम नज़रों   से  मैंने  पीया  था  कभी
आज  तक  क्यूं  खुमारी  है  तुम्हीं कहो?
उम्र   भर   साथ   देने   का  अरमान  है
ये  क्या  गलती   हमारी  है  तुम्हीं  कहो।
हमसफ़र मैं तुम्हारा  हूँ  और  हमनशीन
मैंने  हिम्मत  क्या  हारी  है  तुम्हीं  कहो।
हिज्र की शब क़यामत सी मुझको लगी
रात  तुम पर भी  भारी  है तुम्हीं कहो।
तुम  अना वाले  हो  और  मैं  खुद्दार हूँ
बाजी  किसने  यूं  हारी  है  तुम्हीं कहो।
पूछता  है   ऋतुराज   क्या   है   सबब
अश्क़  क्यूं  आज  जारी है तुम्हीं कहो।"

समकालीन कविता के सशक्त हस्ताक्षर निविड़ शिवपुत्र ने आधुनिक बोध की कविता प्रस्तुत की -
" हैप्पी न्यू ईयर / माफ करना /
खरीदी हुई कामनाएँ / नहीं भेज पा रहा हूं मित्र 
क्या इन सारे शब्दों में 
मेरी शुभकामनाओं को जिंदा कर सकोगे
कि नया वर्ष तुम्हें  / नया आकाश दें ?"

आयोजक के अनुरोध पर राष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध रेखाचित्रकार सिद्धेश्वर ने इस इंद्रधनुषी कविता मेला में अपनी कविता पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई। जिसे दर्शकों और उपस्थित कवियों में उपरोक्त कवियों के अतिरिक्त राजकिशोर राजन, मनीष राही, ऋतुराज राकेश, अश्विनी कविराज, मधु वर्मा, सिंधु कुमारी, संजय कु. कुंदन और युवा कवयित्री रश्मि गुप्ता समेत सैंकड़ो लोगों ने खूब सराहा।

कविता पोस्टर प्रदर्शनी की विस्तृत रपट, डायरीनामा के रुप में, पचास से अधिक फोटो के साथ अलग से आपके सामने प्रस्तुत करुंगा। 
..................

आलेख - सिद्धेश्वर
प्रस्तुति सहयोग - हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र -  सिद्धेश्वर
रपट के लेखक का ईमेल-  sidheshwarpoet.art@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
नोट - जिन कवियों का जिक्र छूट गया हो, कृपया तुरंत ऊपर दिये गए सम्पादक के ईमेल आईडी पर अपनी कविता की चार पंक्तियों के साथ शीघ्र भेजने का कष्ट कीजिएगा। उसे इस रपट में जोड़ दिया जाएगा