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Sunday, 29 April 2018

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद् द्वारा 28.4.2018 को पटना में कवि गोष्ठी संपन्न

उससे कोई पूछे जन्नत की फिज़ाँ कैसी है / जिसने हँस हँस के तेरे हाथ से खाये पत्थर



भारतीय  युवा साहित्यकार परिषद्, पटना द्वारा 28.4.2018 को  राजेंद्रनगर रेलवे कोचिंग काम्प्लेक्स में एक  कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में कवियों और श्रोताओं ने भागीदारी की. अध्यक्षता प्रसिद्द शायर रमेश कँवल और संचालन नसीम अख्तर ने किया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजमणि मिश्र थे और संयोजक थे सिद्धेश्वर प्रसाद एवं नसीम अख्तर.

कवि-कवयित्रियों द्वारा पढ़ी गई कविताओं की कुछ पंक्तियाँ निम्नवत थीं-

*वक्त उसको और भी ऊँचा उठा 
 मुझको है अपनी जगह से देखना 
* चुनवा दिये जाने के बावजूद / झाँकती रहेंगी आँखें
(शरद रंजन शरद)
...
#खुदाई का दावा तो करते सभी हैं
दिखा तो अगर एक तिनका बनाकर
#अहसास हुआ जाता है हर हाल में मुर्दा
बेहिस हूँ अब आँखों में हया भी नहीं आती
(शमा क़ौसर शमा)
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रिश्तों पर पड़ी / कड़वाहट की धूल को 
वक्त की हवा / भले ही उड़ा ले / पर वह
उस दरार को भरने में कभी सक्षम नहीं होगी 
जो कड़वाहटों ने बना दी थी
(अर्चना त्रिपाठी)
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दादी की लाठी है ये / घर की परिपाटी है ये
काजल का ढ्ठौना है ये / जलेबी का दोनो है ये
(अशोक मनोरम)
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*फूल ने कहा / किन स्वार्थी हाथों मुझको / बेच दिया है ऐ माली
संतोष नहीं है जिसे / जिसकी रहती हरदम झोली खाली
*सपनों में आकर मेरे तू, मुझको यहाँ पे छल रही
बाँहों में अब आ भी जा / रूठने का पल नहीं
(मधुरेश नारायण)
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आखिर क्यों नहीं / दूसरे मनुष्य और जीवित प्राणियों को देख कर
हम सोचते हैं / सचमुच में उसका भला / बिना किसी उद्देश्य के?

(हेमन्त दास 'हिम')
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मेरे खोने की वजह तुम हो / मेरे होने की वजह तुम हो
तेरे थाप पर थिरकती रही मैं बेसुध होकर / तुझे पा लिया इन धुनों में खुद को खोकर 
(लता प्रासर)
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*उससे कोई पूछे जन्नत की फिज़ाँ कैसी है
जिसने हँस हँस के तेरे हाथ से खाये पत्थर
*दुनिया की खाक छानोगे कुछ भी नहीं मिलेगा
अगर कुछ देखना है तो नजरें घुमाकर देखो
(नसीम अख्तर)
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रूठकर घर से जानेवाले / एक दिन घर भी आना होगा
मैं जब तन्हा हो जाऊँगा / तेरे साथ जमाना होगा
(सिद्धेश्वर)
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देखकर पिताजी मुझे हँसते हैं अपने सारे गम को छुपाने के लिए
(कुन्दन आनन्द)
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*कीचड़ में खिलते हैं फूल / दुनिया को बतलाना होगा
विष का प्याला है सच्चाई/ फिर भी मुझे पी जाना होगा
*घर मेरा मैं घरवाला हूँ  / घर आया मेहमान नहीं हूँ
*मैं बन जाऊँ रिमोट सनम / चैनल जैसी हो जा तू
बैंक बनूँ मैं पीएंनबी / नीरव मोदी हो जा तू
(रमेश कँवल)


उपस्थित साहित्यकारों में राजमणि मिश्र, अशोक प्रजापति, संजीव कुमार श्रीवास्तव, कुंदन आनंद आदि भी शामिल थे. अंत में नंदिनी प्रनय ने आये हुए सभी कवि-कवयित्रियों एवं श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट करते हुए अध्यक्ष की अनुमति से कार्यक्रम की समापति की घोषणा की. 

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आलेख प्रस्तुति - हेमन्त दास 'हिम' / नसीम अख्तर
छायाचित्र- सिद्धेश्वर 
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
प्रतिक्रिया सोशल साइट्स पर कमेंट के द्वारा भी दी जा सकती हैं.
नोट: इस कार्यक्रम के प्रतिभागीगण अपने चित्र और पंक्तियाँ रिपोर्ट में सम्मिलित करवाने  हेतु उपर्युक्त तीनों में से किन्हीं से सम्पर्क कर सकते हैं.
**बिहारी धमाका ब्लॉग पर कोई सामग्री इसकी गवर्निंग बॉडी के निर्देश पर लगायी या हँटाई जा सकती है.**




































Saturday, 28 April 2018

सृजन संगति द्वारा भोला प्रसाद सिंह 'तोमर' की पुण्य तिथि पर 27.4.2018 को पटना में कवि गोष्ठी संपन्न

एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया


'सृजन संगति' संस्था द्वारा अदालतगंज, पटना में स्थित अवर अभियंता महासंघ के भवन में डॉ. भोला प्रसाद सिंह 'तोमर'  की स्मृति में एक  सभा और काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ. कार्यक्रम की  अध्यक्षता डॉ. नागेन्द्र मेहता, उदघाटन बिहार राज्य हिंदी प्रगति समिति के अध्यक्ष कवि सत्यनारायण ने किया और सञ्चालन ह्रीषीकेश पाठक ने किया. मंचासीन कवियों में नागेन्द्र मेहता, विजय गुंजन, घमंडी राम, राजकुमार प्रेमी, आनंद किशोर शास्त्री और ज्योति स्पर्श भी सम्मिलित थे. पहले सत्र में वक्ताओं ने डॉ, भोला प्रसाद सिंह 'तोमर' के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा की और दूसरे सत्र में  कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमे बड़ी संख्या में पुराने और नए कवियों ने भाग लिया.

कुछ कवियों द्वारा पढ़ी गई पंक्तियाँ निम्न हैं-

बँटा पा के किनारे को हस्तियों के बीच
एक लहर खो गई दो कश्तियों के बीच
राशन, फीश, दवा के बीच ख्वाहिशें कहाँ
एक घर गुम हो गया है बस्तियों के बीच
(रविचंद्र 'पासवाँ)
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लोग क्या से क्या नहीं कर जाते हैं 
रंग जमाने में जमाने के लिए 
(कुंदन आनंद)
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मुझे सज़दे में सर कटने का डर है
मैं फिर भी सर झुकाना जानती हूँ
(ज्योति स्पर्श)
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ये समय बड़ा बेईमान है /  समय पर साथ नहीं देता
जब दिखाना चाहते थे / उसी समय बुलावा आ गया
(रमाकान्त पाण्डेय)
...
सास के अंगारे / ससुर के तीर /ननद के काँटे / पति की नफरत
ससुराल के चारो खंभों के बीच / खत्म हो गई तेरी चंचलता
तेरा आकर्षण / तेरा स्वास्थ्य / तेरी खुशी
(प्रभात कुमार धवन)
...
स्त्री पुरुष का प्रेम / बिना किसी बंदिश के 
अपनी भाषा में सब कुछ कह गया
क्षणिक ही सही ही / बड़ी पवित्रता से / सात्विकता से 
परिपक्वता से / अपना बोध करा गया 
(डॉ. रमेश पाठक)
...
बिछुड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई
एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया
(रितुराज पूजा)
...
दिन के सवेरा बा / रवि के उजाला
चहके ले चिरई /  रोअस चकोड़ा हो
(आप्पू कुमार सिंह)
...

यूँ न रोओ साहब न रुलाया करो
लोग हँसने लगे हैं ये समझा करो 
एक एक दो बनने से है बेहतर
मुझको तुम ग्यारह बनाया करो
(लता प्रासर)
...
एक नदी मेरा जीवन
बादल ने तोड़ा मुझको / पर्वत ने जोड़ा मुझको
बूँद बूँद चुन
कर सहेजकर / धरती ने जोड़ा मुझको
(स्व. विशुद्धानंद की पंक्तियों का पाठ उनके सुपुत्र प्रवीर द्वारा)
.....
राकेश प्रियदर्शी ने पिता के चश्मे की महिमा पर,  आर. प्रवेश ने बजरंग बली  पर सस्वर पाठ और राजकुमार प्रेमी ने "मैं एक गरीब की बेटी हूँ" कविता का पाठ किया. सभी मंचासीन कवियों ने भी अपनी श्रेष्ठ रचनाओं का पाठ किया जो उद्धृत नहीं हो पाए हैं. अंत में सभी आगन्तुक कवियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए और अध्यक्ष की अनुमति से सभा की समाप्ति की  घोषणा की गई.
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम' / लता प्रासर
छायाचित्र- कुन्दन आनन्द 
प्रतिभागियों द्वारा अपनी पंक्तियाँ और फोटो को उक्त रिपोर्ट में जुड़वाने हेतु 
अथवा अन्य प्रतिक्रिया के लिए मोबाइल नम्बर- 7277965160 (लता प्रासर)
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbiharidhamaka@yahoo.com
नोट:- बिहारी धमाका ब्लॉग में कोई भी रिपोर्ट या रचना इसकी गवर्निंग बॉडी की इच्छा से लगाई या हटाई जा सकती है.