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बिहार, भारत की कला, संस्कृति और साहित्य.......Art, Culture and Literature of Bihar, India ..... E-mail: editorbejodindia@gmail.com / अपनी सामग्री को ब्लॉग से डाउनलोड कर सुरक्षित कर लें.

# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Tuesday 27 November 2018

List of English posts on Bihari Dhamaka blog upto 27.11.2018 / छन्दात्मक काव्यानुवाद, Drama Review and others

View-  Latest data - Covid19 in Bihar
(आंकड़ों की सत्यता की जिम्मेवारी उस वेबसाइट की है हमारे ब्लॉग की नहीं।)

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नोट- अपनी पसंद का पोस्ट देखने के लिए नीचे दिए गए लिंकों में चुनिए 
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A.  Rhythmic poem translation / छन्दात्मक काव्यानुवाद (latest on the top and so on..)


छायाचित्र- प्राशांत विप्लवी 

Vijay Prakash / nov'18 / Click here
Ghanshyam / nov'18 / Click here
Satish Prasad Sinha - chhaliya umar - Click here
Arun Kumar Lal Das - Click here
Satish Prasad Sinha - maut tumse - Click here
Hari Narayan Hari - Click here
Sunil Kumar -  Click here
Shiv Narayan -  Click here
Sudhir Kumar Programmer - Angika - Hamaro vidhata chhai etana kathor
Nasim Akhtar - ek sang dar pe - Click here
Bhagwat  'Animesh' - bajjika - khaili ham chocolate - 
Satish Prasad Sinha - deep ham aise jalayen - Click here
Rajkumar Bharti - mor piya - Click here
Kailash Jha Kinkar - angkika - chhori ke bihar piya - Click here
Kailash Jha Kinkar - ankgika - ki karbho enahiye - Click here
Asmurari Nandan Mishra - yahan milan ka mausam - Click here
Rajkumar Bharti - angika - eegi dulahawa te - Click here
Bhagwat Sharan Jha 'Animesh'
Rajkumar Bharti - apane jhanda ko ham jhukne nahi - Click here
Bhagwat Sharan Jha 'Animesh' - bajjika - binu puchhle raat biraat 
Rajkumar Bharti -  angika - khali tel lagaaai chhau lathiya me 
B. N. Vishwakarma - magahi - aadamiyat par dhyan dhara
Ramnath Shodharti - Hindi - patthar hoon ya devata mujhe kuch pata nahi
Kailash Jha Kinkar - angika - master ke masterba kahabho
Kumar Pankajesh - hindi - ek lau ummeed ki hai aur tufaan se l
Khadg Balllabh Das 'Swajan' - maithili - gagan pawan jal anal 
B. N. Vishwakarma - magahi - ketana sundar phool khilal hay
Bhagwat Sharan Jha 'Animesh' - bajjika - barasal paani
Sanjay Kumar Kundan - hindi - badal gaya hai agar wo toh 
Sudhir Kumar Programmer - Tukur tukur takai chhai - Click here
Sudhir Kumar Programmer - angika - dekhlo bahar angina 
Bhagwati Prasad Dwivedi - ghat aur pratighat biya
Ashish Anchinhar - maithili - chhai sabh kiyo asagar
Om Prakash Jha - dekhi hunkar asal rang - Click here
Bhagwat Sharan Jha 'Animesh' - bajjika - otane ham ji rahal chhi
Samir Parimal - hindi - dekhata hoon mai hawaon ka jo 
Ramesh Pathak - bhojapuri - parab teej ke din aayal
Ganesh Jha - maithili - o kavita ki 


B. Nonrhythmic poem translation / छंदहीन काव्यानुवाद (latest on the top and so on..)

Bhaskar Jha Bhaskaranand - birthday of two idols 
Pankhuri Sinha - chaand to wahi hai 
Prabhat Sarsij - yaad kiya
Parichay Das - saleema
Rakesh Priyadarshi - paaltu kutta
Rajkishore Rajan - vilaap
Shahanshah Alam - pahaad

Note- Posts are mentioned in order of dates. The earliest at the bottom and so on. Some poets have been mentioned many times as their different poems have been translated. In some posts there are more than one poem translation.


C. Drama Review / नाटक समीक्षा (latest on the top and so on..)



Jago Mere Desh / ...12.2018/  Click here
Aaina / nov'18 / Click here
Muhabbat ki nisbat me /oct'18 / Click here
Shahjahan ke ansoo / oct'18 /Click here
Domkatch - ...9.2018 - Click here
Jhijhir Kona - ...9.2018 - Click here
Charulatla - ...9.2018 - Click here
Provoked - ...9.2018 - Click here
Gotya ko bacha lo - ...9.2018 - Click here
Ratinath ki chachi - ...8.2018 - Click here
Outcaste -  ...8.2018 - Click here
Aarambh - ...8.2018 - Click here
Seema Par ...7.2018 - Click here
Aao tanik prem karen - ...7.2018 - Click here
Kutubpur ke bhikhari Thakur - ...7.2018 - Click here
Mahabhoj - ...7.2018 - Click here
Apne paraye - ...7.2018 - Click here 
Janeman - ...7.2018 - Click here
George Washington - ...6.2018 - Click here
Kuchchi ka Kaanoon - ...6.2018 - Click here
Raag Basanti - ....5.2018 - Click here
Dus din ka anshan - ...4.2018 - Click here
Mridangiya - ...4.2018 - Click here
Men without shadow - ...3.2018 - Click here
Akeli - ...3.2018 - Click here
Lanchhan - ...2.2018 - Click here
Balconi-2 - ....1.2018 - Click here
Saanse - ....1.2018 - Click here
Chharmatiya - ....1.2018 - Click here
Satramge Log - ...1.2018 - Click here
Sapno ka mar jana - ...1.2018 - Click here
Gughghoo - ...12.2017 / Click here 
Kanchan Rang - ..11.2017 - Click here
Dharti Aaba - ..11.2017 - Click here
Tat niranjana - ..11.2017 - Click here
Majahabi - ...11.2017 - Click here
Sipahi ki ma - ...11.2017 - Click here
Ya devi sarva bhuteshu - ...10.2017 - Click here
Bapu - ...10.2017 - Click here
Patkatha - ...9.2017 - Click here
Raja Salhesh -...9.2017 - Cliick here
Ajanabi - 4.9.2017 - Click here
Bhojpuriya Bhanj - 24.8.2017 - Click here
Aayakar Lila - ...8.2017 - Click here
Ghaaswali - ...8.2017 - Click here
Sikka, Chori, Ghoos - ...8.2017 - Click here
Tukron tukron me zindgi, Aks, Safar - ...7.2017 - Click here
Bakari -..7.2017 - Click here
Desi murgi vilayati chaal - ...7.2017 - Click here
Nadi ka pani - 15.6.2017 - Click here
Surajmukhi Hamlet - ...6.2017 - Click here
Trilokinath zindabad - ...5.2017 - Click here
Peele scooter wala  aadmi - ...5.2017 - Click here
Tamasha interview ka - ....4.2017 - Click here
Bhagwan mushhar - ......4.2017 - Click here
Bideshia - 18.4.2017 - Click here
Pappu pass ho gaya - 14.4.2017 - Click here
Bidesia - 10.4.2017 - Click here
Lal pan ki begum - 9.4.2017 - Click here
Pakwaghar - 8.4.2017 - Click here
Andha Yug - 28.3.2017 - Click here
Paro - ...3.2017 - Click here (Only pics)
Museum of species - ....3.2017 - Click here
Uchchakon ka chorus - ...3.2017 - Click here
Mahamaya - ...3.2017 - Click here
Janawasa - 26.2.2017 - Click here
Buddham Sharanam Gachchami -...2.2017 - Click here
Haste haste - 18.2.2017 - Click here
Kamwakht Ishq - 19.2.2017 - Click here
Chandu ki chachi - 19.2.2017 - Click here
Comedy-1 - 17.2.2017 - Click here
Comedy-2 - 17.2.2017 - Click here
Romeo juliet - 15.2.2017 - Click here
Bhana gangnath - 3.2.2017 - Click here
Bhookh - 26.1.2017 - Click here
Renumala - 30.1.2017 - Click here
Pandeji ka patara - ....7.2016 - Click here
Accident -....7.2016 - Click here (only pics)
Beti viyog -....7.2016 - Click here
Bhrun hatya - ....7.2016 - Click here
Dasarath manjhi - ....6.2016 - Click here
Kathaputali - ...6.2016 - Click here
USA ki potli - ...6.2016 - Click here
Postmortem - ...6.2016 - Click here
Natmethia - ....12.2015 - Click here
Tajamahal ka Tender - ....12.2015 -  C;lick here
Jal damru baje - ....8.2015 - Click here
Chitrangada - ....7.2015 - Click here
Haybadan - ....8.2014 - Click here
Hira dom - ....8.2014 - Click here
Lalhron ke rajhans - ....8.2014 - Click here
Natmaethia - ....8.2014 - Click here
Yahudi Ki Ladki - ....7.2014 - Click here
Fandi - ....7.2014 - Click here

D. List of other posts in English  (will be added soon)

Nov'18 - Niva artist - painting exhibition - Click here
.....
हेमन्त दास 'हिम' अपनी माता श्रीमती आशा लता से आशीर्वाद प्राप्त करते हुए / Hemant Das 'Him' getting blessed by his mother Smt. Asha Lalta


नीरज कुमार सिंह का कविता-संग्रह "मौसम बदलना चाहिए" : एक पुस्तक समीक्षा

                           सच बोलना मेरी आदत में शुमार है / सरकार कोई हो मेरी सबसे शिकायत है



नीरज कुमार सिंह के पहले ही दो कविता-संग्रह 2017 ई. में प्रकाशित हो चुके हैं. यह उनका तीसरा कविता-संग्रह है. 

एक मौसम वैज्ञानिक तो नहीं हैं नीरज लेकिन मौसम को बदलने का माद्दा रखते हैं और वह भी अपनी कलम से. कभी-कभी मौसम से आजिज़ आकर ये कलम की बजाय तलवार उठाने की बात भी अक्सर करते हैं लेकिन अंतत: इन्हें मालूम है कि असली लड़ाई तलवार से नहीं, बारूद से नहीं बल्कि विचारों से जीती जाती है-
कलम की रोशनाई फेंककर बारूद भर लूँगा
मुझे बाँधोगे तो मैं बगावत कर दूँगा (पृ.41

जिसमे दुर्बल का भाव निहित
वो अमन नहीं प्यारा है
इसी शांति ने तो हमें
सौ दशकों से मारा है

नीरज की भाषा ओजपूर्ण है और गाहे-बगाहे ये वीर-रस के सीमांत तक पहुँच गए लगते हैं. बार-बार अपने प्राणों को वीरतापूर्वक न्यौछवर करने की बात भी करते हैं-

लेकिन पूरी पुस्तक को पढ़ने से स्पष्ट है कि इनका मूल चिंतन बिल्कुल समकालीन धारा के अनुरूप है अर्थात इनका दग्ध हृदय माँग कर रहा है मुक्ति की गरीबी से,शोषण से, अत्याचार से, वृहत जनसमुदाय को मूर्ख बनाकर अपना उल्लू सीधा करने की प्रवृति से -

कल शूद्र मरा आज सवर्ण की बारी है
फिर कोई नया नरमेध रचने की तैयारी है (पृ.103)

न हमसे है मुहब्बत न हमसे है प्रीति
हमारी मौत के मातम में इनकी राजनीति (पृ.36)

मुहब्बत को भी थोड़ी सी जगह दे दो
कि वैसे ही शहर में शिवाला बहुत है

सब के सब लगे हुए हैं एक कारोबार में
ये मेरा हुनर नहीं सो मैं ही एक बेकार हूँ
गुजर रही है ज़िंदगी इन दिनों कुछ ख़ौफ से
अपने शहर के मौसम से मैं बहुत बेज़ार हूँ

सच बोलना मेरी आदत में शुमार है
सरकार कोई हो मेरी सबसे शिकायत है
मैं आईना लेकर शहर भर घूमता हूँ
वो समझते हैं कि ये उनकी ख़िलाफत है (पृ.67)

हालाँकि कहीं से एक-दो कविताओं को पढ‌‌ लेने से पाठक को यह भ्रम हो सकता है किन्तु निश्चित रूप से नीरज किसी ख़ास दल, विचार या समुदाय के प्रवक्ता नहीं हैं न्यूनतम स्तर तक भी नहीं. इनका हृदय विशुद्ध कवि का हृदय है जिसमें राजनीति हेतु प्रवेशद्वार पूरी तरह से बंद है और करुणा हेतु पूरी तरह से खुला.

पहले कविता संग्रह से भाषा के स्तर पर काफी सुधार देखने को मिल रहा है. शाब्दिक और वैयाकरण अशुद्धियाँ बहुत ही कम हैं, काव्य शिल्प के स्तर पर अभी भी सुधार की काफी गुंजाइश है. 

एक कर्मवीर कभी दूसरों के भरोसे नहीं रहता. वह समाज को अपना योगदान करता है बिल्कुल अपने दम पर. अपने घर में शांति और अमन का फूल खिलेगा तो सुगंध तो पड़ोसियों तक पहुँचेगी ही-
मुझे ग़ैर के बगीचे का भरोसा नहीं
क्यों न फूल घर में ही खिलाते हैं

आसमाँ से गुज़ारिश क्यों करें
हर दीये को आफ़ताब कर दो

इस नदी के ऊपर छोटा पुल बनेगा
गाँव वालों ने खुद ही चंदा किया है

एक अच्छे कवि की विशेषता होती है उसका आत्मावलोकन. नकारात्मक दिशा में बदलते समय को चुनौती दे पाने का साहस नहीं जुटा पाने से दोष भावना का सुंदर चित्रण इन शब्दों में दिखता है-
देखता हूँ, मैं क्या था, क्या हो गया हूँ
खुद की नजर से बदर हो गया हूँ
सच बोलने का अब साहस नहीं है
जुबाँ बंद है, बेअसर हो गया हूँ

ये दुनिया पूजती है मुझको तो देवता सा
मैं खुद को जानता हूँ, पर ये सच किसे बताऊँ?

लेकिन यह कवि कोई अपने शब्दों को रंगरेलियों में  अपव्यय करनेवालों में से नहीं है. यह पूरी  तरह से निगाह रखता है समय के घटनाक्रम पर -
साजिश बड़ी है रोशनी के खात्मे के वास्ते
हस्तिनापुर को अंधेरे के सिपाही बढ़ रहे हैं

उपर्युक्त पंक्तियों को पढ़ के अगर कोई अंदेशा हुआ हो कवि की विचारधारा को लेकर तो आगे देखिए-
तेरे-मेरे दरम्यां ये खाई है गहरी
गूँगा हूँ मैं और मेरी सरकार है बहरी

घोटाले सुने कई बड़े बड़े, पर कितनों को मिली सजा
इन पक्ष विपक्षी नेताओं से रिश्तेदारी किसकी है?

खेतिहर के आँगन में खलबली है
दिल्ली में है रोशनी, दीपावली है पृ.34)


नीरज का विशाल हृदय करुणा से ओत-प्रोत है. दुधमुहे की माँ की तकलीफ का वर्णन इससे सजीव और क्या हो सकता है. चरम अभिव्यक्ति है -
रह रह के माँ वक्ष को निचोड़ती थी
बूँद बूँद करके दूध जोड़ती थी
बढ़ रही थी भूख अबोध चीखता था
करुण क्रंदन प्लावित कर हृदय सींचता था
तब रोने लगी बेचारी माँ लाचार होकर
गिराने लगी आँसू की माला पिरोकर
मातृ-स्नेह ढलने लगा हृदय से ढहकर
तृप्त हो गया बालक अश्रू ही पीकर (पृ.32)

संवेदना कविता की आत्मा होती है. कवि के इन शब्दों में भावनात्मक कोमलता है जो हौले से दिल को छूती है-
कोई भूली-भटकी सी चिड़िया थी वो 
जिसको देखा सवेरे चहकते हुए

छुओगे मुझे सहलाने के लिए
मैं पुर्जा पुर्जा टूट बिखर जाऊँगा

अच्छा होगा झील को मैं दर्पण बना लूँ
लहर बिखर तो जाएंगी पर चटक नहीं सकती

शायद वो शख्स मुझे पहचानता नहीं
इसलिए मुझे देखकर वो मुस्कुराया है

ये मकां भी चंद ईँटों के सहारे हैं
एक रोशनदान है और कई दरारे हैं

जिनको समझा अपना छिप छिप कर बैठ गए
मुझे घर का पता बताया किसी बेगाने ने

आज का सच्चा कवि शोषितों का पक्षधर रहेगा ही- 
इस गूँगे से डरो जिस दिन बोल बैठेगा
उस दिन आँखों से फ़कत अंगार बरसेगा

और जब शोषण व्याप्त हो तो कवि उन्हें जुबाँ खोलने को कहता है- 
कोई तो बताए उसे उसकी कमियाँ
चुप रहने वालों की सुनती कहाँ दुनिया (पृ.61)

पृ.89 पर दी गई कविता "विनाश की बेला"  में कवि ने पाठकों के भ्रम का पूर्ण समाधान किया है. सभी दलों का नाम लेकर उसकी खिंचाई की है चाहे वह सत्ताधारी दल हो या विपक्षी.

क्रांति कवि का मूल धर्म है. समाज में सत्य, न्याय की स्थापना के लिए क्रांति के पठीकों की हौसला-अफजाई कवि करता है-
छोटे छोटे जुगनुओं के सौ चिराग हैं
ये भीड़ अपना रास्ता भटक नहीं सकती

आज के समय में रिश्तों पर से भरोसा उठता जा रहा है. कवि इस चिंता से पूरी तरह आगाह है-
जिसको दी जगह मैंने इंसानियत के नाम पर
आज वही शख्स मेरी नौका डुबोने वाला है

इस महफ़िल में जो तुम्हें सबसे अज़ीज़ है
वो चेहरा नहीं है खूबसूरत इक मुखौटा है

टहनी को शिकायत है बूढ़े दरख्त से
जिसकी बदौलत आज यूँ लहलहाता है (पृ.54)

ज़िंदगी का फलसफा सिखाते हैं
ख़ार भी आँगन में लगाए रखना (75)

इस युवा कवि को हौसला किसी बाहरी प्रोत्साहन से नहीं बल्कि कुछ अच्छा करने की आंतरिक जिद से बढ़्ता है--
बारहां मैं टूट कर बिखर गया होता
मुझे मेरी ज़िद ने संभालाबहुत है


आज का समय सचेत रहने का समय है. हर ओर से हर कोई धोखा देने को तैयार है. अगर जीना है तो बिलकुल संभल कर रहना होगा - 
इसमें काँटे नहीं हैं,  खुशबू भी नहीं
इसे शौक से लगाइये, नकली गुलाब है

पढ़ा लिखा ही असल बेवकूफ है
मस्ज़िदों की छाँह में भी धूप है

एक पल में ज़िंदगी है एक पल में मौत है
मन की गति से सृष्टि का समीकरण बदलता है (पृ.49)

सारे इर्द-गिर्द में नक़ाबपोश हैं
क्यों न मैं समझूँ, अब ये मेरा शहर नहीं

जितने ऊँचे लोग
पाप उतना ही ऊँचा (पृ.108)

इस तरह से हम पाते हैं कि नीरज कुमार सिंह पूरी तरह से एक जागरूक कवि हैं जो पूरी तरह से निष्पक्ष भी हैं. इनकी कविताओं को पढ़ना अपनेआप को शक्ति और दृष्टि देने की मानिंद है,  इनके इस संग्रह को अवश्य खरीदकर पढ़ना चाहिए.
......
समीक्षक- हेमन्त दास 'हिम'
पुस्तक का नाम - मौसम बदलना चाहिए (कविता संग्रह)
पुस्तक के रचनाकार - नीरज (नीरज कुमार सिंह)
पुस्तक का मूल्य- रु.150/= मात्र
प्रकाशक - अंजुमन प्रकाशन, 942, आर्य कन्या चौराहा, मुट्ठीगंज, इलाहाबाद- 211003









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56-59वीं बैच में चयनित बिहार वित्त सेवा के अधिकारियों का मिलनोत्सव पटना में 26.11.2018 को सम्पन्न

क़ातिलों का ठिकाना बदल जायेगा
जीवन संघर्ष के विवरणों पर भावुक हुए अधिकारीगण और फिर चला शेरो-शायरी का दौर



किसी उपलब्धि को फूलों के रास्ते पर चलकर नहीं पाया जा सकता। उसके लिए काँटों और अंगारों पर चलना पड़ता है। जब प्रयास करते करते आपका मनोबल छलनी हो जाता है तब जाकर आपको नसीब होता है सफलता का गुलदस्ता। बिहार की धरती से निकले देश के जाने माने उम्दा शायर समीर परिमल को यह सफलता पाने में 26 वर्ष लगे जिस दौरान वे प्राथमिक कन्या विद्यालय में शिक्षक की नौकरी करते रहे (पूरे साक्षात्कार का लिंक नीचे) तो, इतनी कठिनाइयों से पाई सफलता पर क्यों न जश्न मनाया जाय! और जब एक शायर हो, एक गीतकार हो, एक गायिका हो और तमाम सहित्यानुरागी संगीतप्रेमी नवचयनित युवा अधिकारियों का हुज़ूम तो महफिल जमना लाज़मी है।

दिनांक 26 नवंबर 2018 को पटना स्थित 'घर आँगन' रिसोर्ट में बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा 56-59वीं बैच में चयनित बिहार वित्त सेवा के अधिकारियों (सहायक आयुक्त, राज्य कर) का मिलनोत्सव आयोजित किया गया जिसमें नवचयनित पदाधिकारियों ने खूब धमाल मचाया। इस अवसर पर सभी पदाधिकारियों ने अपना परिचय दिया और गीत, ग़ज़ल, नृत्य आदि की प्रस्तुति भी दी। साथ ही वित्त सेवा के इन पदाधिकारियों ने सत्य और निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों के निर्वहन का संकल्प भी लिया। इस समारोह में प्रसिद्ध शायर समीर परिमल ने अपनी ग़ज़लों से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। 

समीर परिमल ने सुनाया -
नफ़रतों का तराना बदल जायेगा
क़ातिलों का ठिकाना बदल जायेगा
कुछ बदल जाओ तुम, कुछ बदल जाएं हम
देख लेना ज़माना बदल जायेगा

प्रेम कुमार ने कहा कि
नाकाफ़ी है अक़ीदत में फ़क़त परवान दे देना
मुझे बेख़ौफ़ भी तो कर, ख़ुदा तीखी ढलान से

शर्मिका वाजपेई ने सुंदर गीत प्रस्तुत किया जिसकी सब ने तारीफ की

कार्यक्रम का कुशल संचालन किया प्रीति ने।

इस अवसर पर सुमन कुमार, बिरेन्द्र पांडेय, वंदना, प्रीति, सुजाता, रंजना, शर्मिका, नवनीत भारती, मानव सौरभ, संतोष कुमार, सोनी, पुनीता, सन्नी, मनोज पॉल, मनीषा, अनामिका, विक्रम, उमेश दास, विभांशु, कमलेश, विकास, अविनाश, अजय, मानवेन्द्र सिंह परिहार आदि कई नवनियुक्त सहायक आयुक्तों ने भी अपने विचार रखे। कई अधिकारियों ने अपने जीवन संघर्ष का वर्णन कर सबको भावुक कर दिया।

ज्ञातव्य है कि बिहार वित्त सेवा के अंतर्गत नवचयनित सहायक आयुक्तों के प्रमाण-पत्रों का सत्यापन आज से ही मुख्य सचिवालय स्थित एनेक्सी भवन के वाणिज्य कर विभाग में प्रारंभ हुआ है। इन नए पदाधिकारियों के आने से बिहार में कर वसूली की प्रक्रिया और ज़ोर पकड़ेगी।
......

प्रस्तुति -  हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र सौजन्य - समीर परिमल
श्री समीर परिमल का लिंक- https://www.facebook.com/samir.parimal
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी- editorbiharidhamaka@yahoo.com
श्री समीर परिमल से लिए गए साक्षात्कार का  लिंक - यहाँ क्लिक कीजिए










 




Monday 26 November 2018

साहित्य परिक्रमा की कवि-गोष्ठी 25.11.2018 को पटना में सम्पन्न

तीरगी से तबाह है दुनिया / अवतरित आफ़ताब कब होगा


नफरतों को  नई हवा दूँ क्या
ख़ामखा बात फिर बढ़ा दूँ क्या
आँख उसकी बड़ी नशीली है
होश नज़रों में ही गँवा दूँ क्या
वक़्त की नब्ज को पकड़ कर माहौल में मादकता घोलती हुई ये पंक्तियाँ थीं सुनील कुमार की जिसे सुनकर श्रोतागण वाह-वाह कर उठे.

दिनांक 25.11.2018 को साहित्य परिक्रमा के तत्वावधान में कृष्ण मुरारी शरण के कंकड़बाग, चांदमारी रोड, पटना स्थित आवास पर एक भव्य काव्य गोष्ठी आयोजित की गई. 

प्रख्यात गीतकार भगवती प्रसाद द्विवेदी की अध्यक्षता और हरेन्द्र सिन्हा के संचालन में काव्य गोष्ठी का शुभारंभ हुआ जिसमें सतीश प्रसाद सिन्हा,  राम तिवारी, सिद्धेश्वर, विश्वनाथ प्रसाद वर्मा, मधुरेश नारायण, डा. सुनील कुमार उपाध्याय, मेहता डा.नगेन्द्र सिंह, गहवर गोवर्द्धन, आराधना प्रसाद, हरेन्द्र सिन्हा, रविचन्द्र 'पासवां', अजय कुमार दुबे, सुनील कुमार, डा.एम.के.मधु, मो. नसीम अख़्तर, लता प्रासर, शशिकान्त श्रीवास्तव, भगवती प्रसाद द्विवेदी के अलावा घनश्याम ने भी काव्य पाठ किया.

सिद्धेश्वर सताए जाने के बावजूद मुस्कुराते रहे-
हम जमाने में सताए जाएंगे
फिर भी मुस्कुराए जाएंगे
पूछते हैं पाँवों के हर आबले
आग पे कब तक चलाए जाएंगे

मधुरेश नारायण की ज़िंदगी फिर से मुस्कुरा उठी क्योंकि-
ज़िंदगी फिर सए मुस्कुराई है
जीने की फिर वजह जो पाई है
इस वीरान पड़े गुलशन में 
एक नन्हीं कली खिल आई है

ता प्रासर ने किसी से मिलने का इरादा तय कर लिया-
ओ धान / तेरी खुशबू , तेरा रंग / मेरे नस-नस में बसा है
ओ धान /  पछिया हवा के साथ तेरी खरखराहट 
दुनिया के सारे लय ताल से अद्भुत होता
ओ धान / बरसों ब्रस जन्म जन्मांतर तक /
यूँ ही खरकते लरजते रहना / मैं आउंगी मिलने इन्हीं पगडंडियों के सहारे
अनछुए नाद सुनने

नसीम अख्तर दर्द की आग को जलाए रखते हैं-
दर्द की आग बहर-हाल जलाए रखना
अपनी आहों से फलक सर पे उठाए रखना
राजे-दिल लब के हवाले नहीं करते अख्तर
बात दिल की है उसे दिल में दबाए रखना

घनश्याम जैसे कवियों से दुनिया को सावधान रहना होगा जो हुस्न को बेनकाब करते करते इन्कलाब कर डालते हैं-
हुस्न फिर बेनकाब कब होगा
रू-बरू माहताब कब होगा
तीरगी से तबाह है दुनिया
अवतरित आफ़ताब कब होगा
ज़ुल्म अब तो सहा नहीं जाता
बोलिए इन्कलाब कब होगा

हरेंद्र सिन्हा के ख्याल इन दिनों जलने लगे हैं-
देख कर दुनिया का हाल चाल आप जीते हैं हम मरते हैं
आप तो रोज ही सँवरते हैं मेरे तो रोज ख्याल जलते हैं

हास्य कवि विश्वनाथ वर्मा ने जब पत्नी के मेकअप पर सवाल किए तो आवाज आई, "सट अप" -
एक दिन मैंने अपनी पत्नी से कहा - ये उम्र और ये मेकअप?
पत्नी ने कहा - सट अप!
थोड़ी सी लिपस्टिक क्या लगा ली, जलने लगे?
थोड़ी सी बिंदी क्या बढ़ा ली, जलने लगे.

अजय दूबे ने कन्या भूण की ओर से अपनी खता पूछी तो सब सन्न रह गए-
क्या मुझसे हुई थी खता
कि मिटाने चले मेरा पता?

सुनील कुमार उपाध्याय की चैन मे बाधा डालने हमेशा कोई-न-कोई रास्ते में खड़ा हो जाता है -
जब भी चाहीले चैन जिनगी में,केहू रहिये में ठाढ़ हो जाला 
दिन गुजारीले कसहुँ तफरी में,रैन काटल पहाड़ हो जाला

शशिकान्त श्रीवास्तव ने दिखने और बिकने के अन्योनाश्रय सम्बंध पर प्रकाश डाला-
जो दिखता है सो बिकता है
जो बिकता है वही दिखता है

काव्य-पाठ का औपचारिक समापन सभा के अध्यक्ष भगवती प्रसाद द्विवेदी के द्वारा हुआ. उन्होंने पढ़ी गई कविताओं पर अपने संक्षिप्त विचार प्रकट किए और फिर अपनी कविता के द्वारा हिटलरी इंसाफ की व्यवस्था पर करारा प्रहार किया-
कहाँ गए वो लोग वो बातें उजालों से भरी 
पंच परमेश्वर के जुम्मन शेख अलगू चौधरी 
खून के प्यासे हुए इंसाफ करते हिटलरी
अब तो की जाती यहाँ फारियादी से मसखरी

लोग झूमते रहे कवियों की पंक्तियों पर और समाँ बिल्कुल महफ़िल सा बना रहा. लगभग चार घंटे तक चले इस काव्य गोष्ठी में कवियों ने अपनी बेहतरीन प्रस्तुति से आयोजन को सार्थक किया.

जाने माने रंगकर्मी और कवि मधुरेश नारायण के अग्रज कृष्ण मुरारी शरण के 81 वें जन्मदिन के उपलक्ष्य में इस अवसर पर उपस्थित कवियों और परिजनों ने उन्हें शाल और पुष्प हार देकर सम्मानित किया. उनकी पोती सान्वी ने उन्हें अपने काव्य का उपहार दिया-

बाबा हैं हम सब के प्यारे / दुनिया में हैं सबसे निराले
पापा-बुआ को पाला जिन्होंने / इस घर के वे हैं रखवाले

अन्त में मधुरेश नारायण के धन्यवाद ज्ञापन के बाद गोष्ठी का समापन हुआ.
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आलेख- घनश्याम / हेमन्त दास 'हिम'

छायाचित्र सौजन्य - घनश्याम
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी- editorbiharidhamaka@yahoo.com





























  


  
  

















लेख्य मंजूषा की कवि-गोष्ठी राष्ट्रीय पुस्तक मेला पटना में 25.11.2018 को सम्पन्न

सोच में बदलाव आना रह गया 


लेख्य-मंजूषा साहित्य में नव निर्माण का कार्य कर रही है। यह संस्था साहित्य जगत में विश्विद्यालय बनने की ओर अग्रसर है। ऊक्त बातें कॉलेज ऑफ कॉमर्स की हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. प्रो. मंगला रानी ने गांधी मैदान में आयोजित पुस्तक मेला में लेख्य मंजूषा के साहित्यिक कार्यक्रम में कही। इसके बाद अपनी कविता राष्ट्रधर्म का पाठ करते हुए उन्होंने व्यंग्य किया-
गाया करते थे देश है वीर जवानों का,
जरा ठहरो ये देश है धूर्त लुटेरों का

निर्विवाद व्यक्तित्व के स्वामी एक स्वर्गीय प्रधानमंत्री को याद करते हुए बैंककर्मी एवं कवि संजय संज ने अपने काव्य पाठ को शब्द देते हुए प्रगतिवादी पाठ पढ़ा -
जातिधर्म न भेद-भाव की, सर्वव्यापी पहचान हूँ,
खोया नहीं है गैरत जिसने, मिट्टी का इंसान हूँ,
मैं प्रगतिमान हूँ, हाँ मैं प्रगतिमान हूँ

संजय संज ने एक ग़ज़ल भी सुनाई जिसे मंचासीन अतिथि तथा मेला में सुनने वाले अनेक श्रोताओं ने खूब सराहा-
जिंदगी जीने का बहाना चाहिएग़म में भी मुस्कुराना चाहिए,
करें जो कोई तेरे कांधे का इस्तेमाल, निशाना उसपर भी कभी लगाना चाहिए

आज के रिश्तों में आई दूरी को लेकर कवि संजय सिंह ने अपनी कविता पुराना घरसे दिल छू लेने वाली पंक्ति को पढा -
कितने बच्चों को जवान होते देखा
घर के लिए कितनों को कुर्बान होते देखा

तंज कसते हुए सुनील कुमार ने अपनी ग़ज़ल में कहा -
असलियत से जी चुराना रह गया, सोंच में बदलाव आना रह गया,
हुस्न का जलवा बिखेरा था कभीआज मी टू का बहाना रह गया

नसीम अख्तर की पंक्तियाँ थीं-
तुम्हारा करम कम नहीं है
जहाँ का हमें ग़म नहीं है
भरे दिल के ज़ख्मों को 'अख्तर'
जहाँ में वो मरहम नहीं है

कुंदन आनंद ने जोश पूर्ण कविता प्रस्तुत की -
 मौत सुनिश्चित है ही तो फिर मौत से ज्यादा डरना क्या
एकबार ही मरना है तो फिर पशुओं सा मरना क्या
 माहौल जोश पूर्ण हो गया और मंच की दाद मिली।

सीमा रानी ने‌ पढा -
कचरों सी ज़िन्दगी मैने देखी है
कुछ मासूमों को कचरा चुनते हुए

अपने दिल का हाल बताते हुए ईशानी सरकार ने गाया -
पता नहीं इधर इस दिल को क्या हुआ है,
पहले यह सब की सुनता था, इधर सिर्फ मेरी ही सुनने लगा है

राजकांता राज अपनी कविता ख्यालका पाठ किया। हिंदी की दुर्दशा पर मीनाक्षी सिंह ने कविता के माध्यम से प्रहार किया -
 सपने में हिंदी आज सपने में मुझसे मिलने आई
 देख मैं उसको डर गई।

मंच संचालन कर रहे सुबोध कुमार सिन्हा ने अपनी दो कविता सुनाई -
मुखौटों का है ये जंगल, यहाँ हर शख्स शिकारी है
तथा सच बोलना है जुर्म यहाँ, हुआ फ़तवा ये जारी है
एवं काश ! दे पाती सबक़, आपको ये छोटी सी दुकान।

युवा विपुल कुमार ने एक बेहतरीन कविता सुनाई -
 मन मे हसरत हुई मैं परिंदा बनूँ,
 देख लूं सारी दुनिया तुम्हारे लिए।

बिहार से बाहर के सदस्यों की रचनाओं का पाठ संस्था की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने किया।

धन्यवाद ज्ञापन ग़ज़लकार नसीम अख्तर करते हुए अपने ग़ज़ल को सबके सामने प्रस्तुत किया-
कोई चुनता नहीं फूल बिखरा हुआ,
जब से ज़ख़्मी हुआ हाथ बढ़ता हुआ, तो तालियों से दाद मिली।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. सतीशराज पुष्करना ने सभी सदस्यों को बधाई देते हुए कहा कि सभी सदस्यों की रचना दिल छू लेने वाली थी। अपने ग़ज़ल में उन्होंने अपने वर्षों के अनुभव को सबके सामने रखा –
सड़कों पर तपती धूप और पावों में छाले हैं
फ़ूलों की हवेली ने कब दर्द ये जाना हैं

कार्यक्रम में अनेक कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया जिसमें प्रमुख रहे संगीता गोविल, मिनाक्षी सिंह, अमीर हमजा, अश्वनी कुमार, शाइस्ता अंजूम आदि। यह भी उल्लेखनीय है कि संस्था के बारे में जब कवि तथा संस्था के उपाध्यक्ष संजय संज ने बताया कि संस्था सीखने सिखाने के लिए है जो साहित्य और समाज के प्रति जागरूक करती संस्था है और नवांकुरों को एक मंच भी देती है तो लगभग चार लोगों ने न सिर्फ संस्था से जुड़ने की इच्छा जताई बल्कि कुछ ने तो काव्यपाठ भी कर डाला।

कार्यक्रम के अंत मे अभिलाष दत्त ने बताया आगामी 4 दिसंबर 2018 को लेख्य - मंजूषा अपने दो साल पूरा करने जा रही है जिसका भव्य कार्यक्रम और एक पत्रिका का विमोचन भी होना है।
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आलेख: अभिलाष दत्ता एवं संजय कुमार
रिपोर्ट अद्यतन एवं छायाचित्र : संजय संज
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com