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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday 29 October 2018

'आयाम' द्वारा उपन्यासकार डॉ. शहनाज़ फ़ातमी की रचनाओं के साहित्य पर चर्चा 27.10.2018 को पटना में सम्पन्न

बोलती आंखें,  लम्हों की कसक, दरकते रिश्ते, हरसिंगार के साये  की उपन्यासकार 
डॉ. शहनाज़ फ़ातमी हैं शाद अज़ीमाबादी की पौत्री  





अपने सामाजिक सरोकार तथा मानवीय मूल्यों के लिए जानी जाने वाली हिंदी और उर्दू की वरिष्ठ लेखिका डॉ शहनाज़ फ़ातमी उन कुछ रचनाकारों में एक हैं जो साहित्य की राजनीति और शोरशराबे से दूर रहकर कई दशकों से बड़ी ख़ामोशी से लिखती रही हैं। 

डॉ शहनाज़ फ़ातमी उर्दू के बेहद अज़ीम शायर मरहूम शाद अज़ीमाबादी की पौत्री भी हैं। उनके लिखे कुछ उपन्यास - बोलती आंखें, दिन जो पखेरु होते, चांद, लम्हों की कसक, दरकते रिश्ते, चुड़ैल, हरसिंगार के साये और लिप्सा को पाठकों का भरपूर प्यार मिला। दुखद है कि पूर्वग्रहग्रस्त आलोचकों ने उन्हें वह तवज़्ज़ो नहीं दी जिसकी वे वाक़ई हकदार थीं। 

दिनांक 27.10.2018 को साहित्य का स्त्री स्वर 'आयाम' द्वारा पटना के आई.आई.बी.एम सभागार में डॉ शहनाज़ की रचनात्मकता पर केंद्रित एक आयोजन एक ऐसा अवसर था जब उनकी रचनाधर्मिता और कृतियों पर विशद चर्चा हुई। डॉ उषा किरण खान की अध्यक्षता में आयोजित इस गोष्ठी में डॉ उषाकिरण खान, डॉ पूनम सिन्हा, डॉ रेखा मिश्र, डॉ मंगला रानी, रानी सुमिता, भूपेंद्र कलसी ने उनके उपन्यासों की विषयवस्तु, शैली और उनमें निहित संदेशों पर अपने विचार व्यक्त किये। 

डॉ शहनाज़ फ़ातमी ने अपने लेखकीय वक्तव्य में अपनी लेखन-यात्रा के विभिन्न पड़ावों, प्रेरणाओं, चुनौतियों और भविष्य की योजनाओं पर प्रकाश डाला। 

कार्यक्रम का संचालन रानी सुमिता और भावना शेखर ने किया। इस कार्यक्रम में दूरदर्शन की निदेशिका डॉ रत्ना पुरकायस्थ, विभा रानी श्रीवास्तव, कल्याणी कुसुम, वीणा अमृत, प्रो सुधा ओझा, शांति शर्मा, डॉ निकहत मुनीम आभा रानी, प्रो उषा सिंह, प्रो छाया सिन्हा, ज्योति स्पर्श, प्रियंका सिंह, सुमन सिन्हा, सुनीता गुप्ता सहित बड़ी संख्या में महिला रचनाकारों और 'नई धारा' के संपादक शिव नारायण, नीलांशु रंजन तथा हृषिकेश पाठक की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

इस ज़रूरी आयोजन के लिए 'आयाम' को बधाई और डॉ शहनाज़ फ़ातमी को उनके लंबे तथा रचनात्मक जीवन की अशेष शुभकामनाएं ! 
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आलेख- ध्रुब गुप्त 
श्री ध्रुव गुप्त का लिंक - https://www.facebook.com/dhruva.n.gupta
छायाचित्र- ज्योति स्पर्श
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com

























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