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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday 22 October 2018

गीतकार विशुद्धानंद की स्मृति में उनके कृतित्व पर चर्चा और कवि गोष्ठी 21.10.2018 को पटना में सम्पन्न

सच्चा इतिहास वह नहीं होता जो इतिहासकार लिखता है बल्कि वह होता है जो साहित्यकार लिखता है




"मत पूछ कौन बदला कब क्यों, दल, दीन, धर्म, ईमान यहाँ
अब म्यानों के अंदर अदर शमशीरें बदला करती हैं"
ये दो पंक्तियाँ आज के हालात को बयाँ करने के लिए काफी माकूल है.

कुछ  जन्मजात रचनाकार होते हैं जो सिर्फ विशुद्ध साहित्य रचते हैं अत्यंत उच्च कोटि के. वे जानते हैं दुनिया को देना बहुत कुछ मगर खुद दुनियादारी की पेचीदगियों में अक्सर बहुत कम रूचि लेते हैं. उनकी ज़िद होती है कि वे जियेंगे सिर्फ साहित्य के लिए. मैं जब विशुद्धानंद जी से मिला कुछ वर्षों पहले तो उन्होंने बताया था कि वे सिर्फ और सिर्फ साहित्यकर हैं बाकी और कोई कार्य नहीं करते हैं. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था उस समय लेकिन आगे चल कर जाना कि आश्चर्य यह नहीं था कि वे कोई और काम नहीं करते थे बल्कि आश्चर्य ये होता अगर उन्हें कोई और काम करना पड़ता.

गीतकार विशुद्धानंद की पुण्य तिथि के अवसर पर उनकी स्मृति में अवर अभियंता भवन, अदालतगंज, पटना में एक स्मृति सभा का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता भगवती प्रसाद द्विवेदी ने की. संचालन किया साहित्यकार हृषीकेश पाठक ने. मुख्य अतिथि थे शिववंश पाण्डेय. कार्यक्रम में दिवंगत विशुद्धानंद के दोनो पुत्र उपस्थित थे. 

पहले विशुद्धानंद के पुत्र प्रणव ने सरस्वती वन्दना एवं विशुद्धानंद रचित संस्कृत में देवी वंदना "कुरु कृपा करुणामयी" गाकर कार्यक्रम की शुरुआत की. पुत्र प्रवीर ने विशुद्धानंद की भोजपुरी, अंगिका, मागधी एवं हिन्दी के प्रतिनिधि गीतों का सस्वर पथ किया, साथ ही अपनी रचना "विशुद्धानंद की विरासत" का भी पाठ किया  बड़ी संख्या में उपस्थित श्रोतागण मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे.

वक्ताओं ने विशुद्धानंद के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तारपूर्वक चर्चा की. शिववंश पांडेय ने उनकी पुस्तक "पाटलीपुत्र में बदलती हवाएँ" को साहित्यिक और ऐतिहासिक दोनो दृष्टि से अतिश्रेष्ठ कृति बताया. योगेन्द्र प्रसाद सिन्हा ने कहा कि वे उनसे अपनी मातृभाषा अंगिका में ही बातें किया करते थे. 

डॉ. शिवनारायण ने उनकी पुस्तक "पाटलिपुत्र में बदलती हवाएँ- सिहरती दूब" को एक विलक्षण कृति बताया. उन्होंने कहा कि उन्हें बेहद अफसोस है और वे अपना अपराध स्वीकार करते हैं कि विशुद्धानंद जैसे महान लेखक को सिर्फ नजदीकी सम्बंध होने के कारण उन्होंने उन्हें पूरा महत्व उनके जीते जी नहीं दिया. जब उन्होंने उनकी मृत्यु के बाद उनकी पुस्तक को पढ़ा तो दंग रह गए कि पाटलिपुत्र के आमजन के इतिहास को इतनी गहराई और समग्रता से उन्होंने बताया है और वह भी साहित्यिक पुट के साथ. पढ़नेवाले को लगता ही नहीं कि वे इतिहास पढ़ रहे हैं. सच्चा इतिहास वह नहीं होता जो इतिहासकार लिखता है बल्कि वह होता है जो साहित्यकार लिखता है. कारण कि इतिहासकार सिर्फ राजा-महाराजाओं और सरकारों के बारे में लिखते हैं किंतु साहित्यकार लिखता है आम जन जीवन की पीड़ा और संघर्ष का इतिहास जो सही मायने में लोकजीवन का प्रतिनिधित्व करता है. 

डॉ. शिवनारायण ने विशुद्धानंद की 'बर्बरीक' पुस्तक की चर्चा करते हुए कहा कि सिर्फ पात्रों को महाभारत से लिया गया है बाकि सारी बातें समकालीन की गई हैं. उन्होंने विशुद्धानंद की पुस्तकों पर शोधकार्य करवाने का आश्वासन दिया जो कि उनके प्राध्यापक होने के कारण संभव है. यह भी कहा कि यह आयोजन बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के द्वारा होना चाहिए था.

भोजपुरी फिल्मों के लिए विशुद्धानंद के अमर गीतों की चर्चा भी हुई और लोगों ने उन गीतों की भूरि भूरि प्रशंसा की लेकिन फिल्मी दुनिया ने किस तरह से उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया यह भी याद किया ग्या.

इन वक्ताओं के बाद एक कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें युवा कवि/ कवयित्रियों के साथ-साथ स्थापित रचनाकारों ने भी भाग लिया. 

कुंदन आनंद ने समझाया कि किसी को बेकार समझना सबसे बड़ी नासमझी है-
अब उसी पर है सारे शहर को गुमां
इक समय सबने बेकार समझा जिसे

पंकज प्रियम ने अचानक आकर अपना बननेवालों से सावधान रहने को कहा 
आते हैं जीवन में अपने बन जाते हैं
नाते रिश्ते टूटते जुड़ते बन जाते हैं

एक अन्य कवि ईश्वर के पास पहुँचने में थकते हुए दिखे-
थक गया आज मैं आते आते
ईश्वर तेरी महफिल में 

श्वेता शेखर ने चीख पर चीखने की सलाह दी-
तो अगली बार 
फिर जब सुनाई पड़े चीख
तो चीखना जरूरी है

डॉ. रमेश  पाठक ने 'क्रौंच' शीर्षक कविता में कहा-
साइबेरियन क्रेन 
तुम आए इतनी दूर

इस तरह से सभी कवियों ने एक से बढ़कर एक रचना सुनाई.  निविड़ शिवपुत्र, भावना शेखर, श्वेता शेखर, संजय कुमार कुंदन, डा विजय प्रकाश, डा रमेश पाठक, आर पी घायल, मेहता नगेन्द्र सिंह, उमाशंकर सिंह, राजकुमार प्रेमी, बांकेबिहारी साव, पंकज प्रियम, हेमंत दास हिम, कुंदन आनंद, उत्कर्ष आनन्द 'भारत',अनिल कुमर पंकज आदि कवियों द्वारा काव्यपाठ किया गया. कार्यक्रम में कवि-पत्रकार हेमन्त दास 'हिम' भी उपस्थित थे. कार्यक्रम अत्यंत सौहार्दपूर्ण माहौल में देश शाम तक चला और एक सच्चे समर्पित पूर्णकालिक गीतकार के सम्मान के अनुरूप पूरी गरिमा के साथ सम्पन्न हुआ. 
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आलेख- हेमन्त दास 'हिम'
छायाचित्र- बिनय कुमार
पतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com
नोट - वैसे साहित्यकार जो इसमें शामिल थे लेकिन उनकी पंक्तियाँ शामिल नहीं हो पाईं ठीक उपर दिये गए ईमेल पर शीघ्र भेजे.  आयोजक की अनुमति से उसे जोड़ा जा सकेगा.
























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