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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Monday 15 October 2018

लेख्य मंजूषा द्वारा पटना में लघुकथा कार्यशाला पटना में 14.10.2018 को सम्पन्न

लघुकथा सबसे उत्तम रचनाकर्म



लघुकथा और छोटी कहानी में अंतर होता है। हिन्दी में लघुकथा एक विशिष्ट विधा है जिसमें गागर में सागर भरने जैसी बात होती है. मात्र कुछ एक पंक्तियों में कोई ऐसी बात कह जानी होती है जिसका प्रभाव काफी प्रबल हो.

दिनांक 14.10.2018 को लेख्य मंजूषा और अमन स्टूडियो के संयुक्त तत्वाधान में लघुकथा कार्यशाला का आयोजन पटना के होटल वेलकम में किया गया। जहाँ लेख्य मंजूषा के सदस्यों एवं मिर्ज़ा ग़ालिब टीचर ट्रेनिंग स्कूल से आई छात्रायें भी उपस्थित थे। प्रथम सत्र की अद्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा आज के भागमभाग वाली ज़िन्दगी में लघुकथा सबसे उत्कृष्ट रचना है। मुख्य अतिथि के तौर पर प्रोफेसर अनीता राकेश ने लघुकथा वह विधा है जिसमें कम शब्दों में सारी बातें निहित होती हैं। इस मौके पर उपस्थित ध्रुव कुमार ने लघुकथा के शिल्प संरचना के जानकारी उपलब्ध करवाई।

इसके बाद लेख्य मंजूषा के सदस्यों ने अपनी-अपनी लघुकथा का पाठ किया जिनमें प्रमुख रूप से अशफाक अहमद, मो. नसीम अख्तर,  प्रेमलता सिंह ,पुनम देवा,एकता कुमारी , संजय कुमार सिंह ,सुनील कुमार, रंजना , संगीता गोविल ,नूतन सिन्हा, अशोक कुमार सिन्हा इत्यादि।  विद्यार्थियों ने लघुकथा से संबंधित सवाल विशेषज्ञों से किया जिसके जवाब में वह सन्तुष्ट दिखे। 

धन्यवाद ज्ञापन मो. नसीम अख्तर  ने किया। उन्होंने बताया लेख्य मंजूषा सामाज को साहित्य से जोड़ने का काम हमेशा करती रहेगी। लेख्य- मंजूषा की अध्यक्ष श्रीमती विभा रानी श्रीवास्तव और अमन स्टूडियो के निदेशक श्री शहनवाज जी के बीच लघुकथाओं पर शार्ट फिल्में बनने की बात पर चर्चा हुई।
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आलेख- मो.  नसीम अख्तर
छायाचित्र- लेख्य मंजूषा
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल कीजिए- editorbiharidhamaka@yahoo.com
नोट- अन्य प्रतिभागी अपनी पढ़ी गई लघुकथा ऊपर दिये गए ईमेल आइडी पर भेज सकते हैं.
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नीचे प्रस्तुत है मो.नसीम अख्तर के द्वारा पढ़ी गई लघुकथा.
  मातमपुर्सी 

साहब लाॅन में कुर्सी डाले मुँह लटकाए बैठे थे कि राजेन्द्र बाबू हेड क्लर्क ने आकर 'नमस्ते ' कहा बोला - "साहब कार्यालय के सभी कर्मचारि आपके  'टाॅमी 'के दुनिया से चले जाने के कारण मातमपुर्सी के लिए हाज़िर हुआ है"। साहब ने नौकर को आवाज़ दी और कुर्सियांँ डालने के लिए कहते हुए हेड क्लर्क से बोले - "उन्हें अंदर बुला लें "।

थोड़ी देर में सब ने प्रणाम के बाद मातमपुर्सी करते हुए 'टाॅमी ' की वफादारी, सुरत और गुण इत्यादि के पुल बांँध दिए फिर साहब ने उन्हें शर्बत पिलाकर विदा किया।

कुछ साल बाद उसी लाॅन में कुर्सी डाले साहब की पत्नी मुँह लटकाए, बड़बड़ा रही थीं कि 'टाॅमी 'की मौत की खबर सुनते ही तमाम अमला दौड़ा चला आया था, लेकिन आज उनको गुज़रे दस दिन हो गए..... चिड़िया का बच्चा भी दिखाई नहीं दिया.... दिलासा देने को...... ।
(लेखक-  मो. नसीम अख्तर)
लेखक का परिचय: मो. नसीम अख्तर भारतीय रेल में कार्यालय अधीक्षक के पद पर कार्यरत हैं.







   
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