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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Sunday 16 September 2018

प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक द्वारा पटना में आयोजित 'आखर' में दिनांक 15.9.2018 को तारानंद वियोगी की अशोक से वार्ता सम्पन्न

लेखकों में अंतर्विरोध बढ़ रहा है



आखर कार्यक्रम इन दिनों चर्चा में है. हर बार यह एक स्थापित साहित्यकार को  केंद्रित करते हुए एक कार्यक्रम आयोजित करता है जिसे लोगों द्वारा काफी सराहना मिल रही है. 

20 वीं सदी में दुनिया भर में  शक्तिशाली लोग तो बहुत हुए किंतु अच्छे लोगों की कमी हुई। साहित्य में अच्छे लोगों से तात्पर्य अपने अपने भाषा में अपने संस्करण की कमी से है। ये बातें मैथिली के प्रसिद्ध लेखक कथाकार अशोक ने प्रभा खेतान फाउंडेशन, मसि इंक द्वारा आयोजित एंव श्री सीमेंट द्वारा प्रायोजित आखर नामक कार्यक्रम में बातचीत के दौरान कही। मैथिली कवि और आलोचक तारानंद वियोगी से बातचीत में मैथिली भाषा साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश पड़ा।  अपने रचनाक्रम की यात्रा के बारे में उन्होंने कहा कि 1968 में पहली कविता संग्रह के रूप में पुस्तक आयी और 1971 में पहला कथा सँग्रह। प्रारम्भिक शिक्षा बनारस में हुई फिर सीतामढ़ी में इन्होंने शिक्षा ली। 

इन्होंने कार्य की शुरुआत भोजपुर से की इसके बाद पटना आये और यही बस गए। साहित्य यात्रा पर इन्होंने कहा कि बनारस में पढ़ाई के दौरान मैथली साहित्य की तरफ झुकाव हुआ। मैथिली छात्र संघ से जुड़े रहे तथा डॉ. सीताराम झा का सानिध्य प्राप्त हुआ। पहली 6 कविता मिथिला मिहिर में छपी । फिर उसके बाद कविता विधा से अलग कथा की ओर उन्मुख हुए और 1971 में विराम नाम से कथा लिखी। 

 तारानंद वियोगी जी ने कहा कि मैथिली में लिटरेचर फेस्टिवल की शुरुआत अशोक जी के ही कारण हुई। 1950 के दशक में कथा में मनोविज्ञान का प्रभाव देखने को मिला। हरिमोहन झा, सोमदेव, हंसराज जैसे लेखकों से मैथिली साहित्य को राष्ट्रीय पहचान मिली।  मोहन भरद्वाज के अनुसार साहित्य पर नक्सल का प्रभाव 70- 80 के दशक में  देखने को मिला। उस समय मैथिली में 2469 मैथिली कथा लोगों के समक्ष आयी।  1980 के बाद अशोक के कहानी में स्थिरता आयी।  उस समय सुभाषचंद्र यादव, महाप्रकाश, शुभकान्त, आने से कथा लेखन को रफ्तार मिला। 

ततपश्चात मैथिली साहित्य में भूमंडलीकरण के स्पष्ट प्रभाव देखने को मिला।  लघु उद्योग, कुटीर उद्योग के समाप्त होने से मैथिल लोग बहुयात मात्रा में पलायन हुआ जिसका प्रभाव साहित्य पर देखने को मिला। इसके बाद के समय में जीवकांत, ललित, मायानन्द का कथा हंसी का बजट बहुत लोकप्रिय हुआ। उस समय के मैथिली साहित्य को यह डर था कि उनके भारतीय करण से उनकी मूल पहचान खत्म न हो जाएं। 

उसके बाद मैथिली साहित्य में परम्परा बनाम आधुनिकता का सवाल मुखर रूप से सामने आया। अशोक जी के अनुसार परम्परा के बिना आधुनिकता कुछ भी नहीं है। मैथिल समाज ने आधुनिकता का मतलब पश्च्यात सभ्यता समझ लिया था। उन्होंने उदाहरण के तौर पर उपेंद्रनाथ झा व्यास का लिखा कथा "छिन्नमुल कथा"से लिया गया वाक्य "वर्तमान कितनी दफे इतिहास को बदल देती है।" परिवर्तन के इस रफ्तार में लेखकों की निष्पक्षता खत्म हो रही है, अंतर्विरोध बढ़ रहा है।  20 वीं सदी में दुनिया भर में  शक्तिशाली लोग तो बहुत हुए किंतु अच्छे लोगों की कमी हुई। साहित्य में अच्छे लोगों से तात्पर्य अपने अपने भाषा में अपने संस्करण की कमी से है। 

मैथिली कथा इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि पहले पौराणिक कथा लिखी जाती थी उसके  बाद कहानी के केंद्र में प्रकृति आ गयी। कहानी  के विकास के साथ साथ पाठक का भी विकास होता गया। अपने आगे के रचनाक्रम के बारे में कहते हुए उन्होंने कहा कि मैथिली उन्होंने कहा कि पूरे मैथिली साहित्य में 200 से ज्यादा उपन्यास छप चुके है। उनपे आलोचना का पुस्तक निकालना चाहते है। सोवियत संघ दौरे में उन्होंने जो देखा उनपर उपन्यास निकालना चाहते है। इस कार्यक्रम में पद्मश्री उषाकिरण खान, रघुनाथ मुखिया, धीरेंद्र कुमार झा, रामानन्द झा रमण, भैरवलाल दास, जितेंद्र वर्मा, रत्नेश्वर, राजेश कमल आदि उपस्थित हुए।
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आलेख- सत्यम कुमार
लेखक का ईमेल- satyam.mbt@gmail.com
छायाचित्र- आखर
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल- editorbiharidhamaka@yahoo.com







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