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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Wednesday 6 December 2017

5.12.2017 की सांस्कृतिक हलचल - पटना पुस्तक मेला (अरुण कमल की केदारनाथ सिंह से बातचीत)

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'बाल साहित्य वाया बचपन - इकतारा प्रकाशन' 
पर केदारनाथ सिंह से अरुण कमल की बातचीत 

केदारनाथ सिंंह (मध्य) से बातचीत करते अरुण कमल (दाहिने). सबसे बायें बैठे हैं दॉ. श्रीराम तिवारी
उसका गर्म हाथ मेरे हाथ में आता है 
तो मैं सोचता हूँ 
कि ऐसी ही दुनिया होनी चाहिए

बिहार सरकार के संस्कृति, कला एवं युवा मंत्रालय और सीआरडी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पुस्तक मेला के चौथे दिन आयोजित वार्ता में प्रसिद्ध कवि अरुण कमल ने उक्त पंक्तियाँ पढ़ीं जब वो तार सप्तक के सुविख्यात कवि केदारनाथ सिंह से बातें कर रहे थे. प्रस्तुत है अरुण कमल के प्रश्नों के उत्तर में कहे गए केदारनाथ सिंह के कथनों पर आधारित लेख.

बचपन में एक थे हुलास राम जो मेरे गुरु नहीं भगवान थे. वे बार-बार  भाग जाते थे. उस समय मैं उनको नहीं समझ पाया कि वो ऐसा क्यों करते हैं. बाद में पता चला कि भाग कर वो पैसे इकठ्ठा करते थे. उन पैसों से उन्होंने स्कूल स्थापित किया. मेरे पिता गांव में रहते हुए भी अखबार मँगाते  थे जो दो दिनों के बाद पहुँचता था. 

बचपन से ही रामचरितमानस पसंदीदा पुस्तक रही है जो पुस्तक नहीं चमत्कार है. कविता ऐसे गायी भी जा सकती है यह मैंने जाना. विद्यापति भी बहुत पसंद हैं.

उदय प्रताप कोलेज में रहकर ही मैंने कविता लिखना सीखा क्योंकि वहाँ कवि  सम्मलेन खूब होता था. मैंने अपनी पहली कविता सुभाष चन्द्र बोस की संभावित मृत्यु होने पर लिखी थी.  उस कोलेज में रहकर मैंने कितनी कवितायेँ लिखीं परन्तु कवितायेँ विधिवत लिखना तो हिन्दू विश्वविद्यालय में ही शुरू हुआ. एक दिन राजकमल प्रकाशन ने कहा कि मुझे आपके गीतों का संग्रह चाहिए. मैंने तार सप्तक में भी लिखा है. 

हिन्दू  विश्वविद्यालय के बाद मैं दिल्ली आ गया और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया. वहाँ सबसे बड़ी बात मैंने जो सीखी वह थी कि सीखने का क्रम कभी बंद नहीं होना चाहिए. और इस उम्र में भी मैं सीख ही रहा हूँ.

पहला पुरस्कार मुझे तमिलनाडु में प्राप्त हुआ जो पाँच हजार रूपये का था. 

मैंने बच्चों के लिए कभी कविता नहीं लिखी. रविन्द्रनाथ टैगोर ने भी बहुत बाद में बच्चो के लिए कविता लिखी थी - सुकुमार राय. उनसे प्रेरित होकर मैंने भी कोशिश कि लेकिन असफल रहा.  

श्याम नारायण पाण्डेय ऐसे लिखते हैं जैसे वो बच्चों के लिए लिख रहे हों. वे पन्त के समय के थे. जौहर, हल्दीघाटी आदि उनकी प्रसिद्द रचनाएँ हैं. निराला बच्चों के कवि नहीं थे. केदारनाथ अग्रवाल की "हवा हूँ हवा हूँ मैं वसंती हवा हूँ." लोकप्रिय हुई. 
......
आलेख -  लता प्रासर






)मध्य मे बायें से )उषा किरण खान एवं भावना शेखर और इन दोनो के दाहिने हैं लता प्रासर तथा सबसे बायें हैं डॉ.बी.एन.विश्वकर्मा



केदारनाथ सिंह

डॉ. बी. एन विश्वकर्मा एवं अन्य दर्शक

कवि केदारनाथ सिह के साथ लता प्रासर 






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