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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Wednesday 25 October 2017

हाजीपुर में कवितावली द्वारा आयोजित कवि गोष्ठी 22.10.2017 को सम्पन्न

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समकालीन विन्दुओं को उठाती सार्थक काव्य गोष्ठी

दिनांक 22.10.2017 को  शाम 4:30 बजे ध्रुव कुमार चित्रांश जी के गाँधी आश्रम हाजीपुर, वौशाली डेरे पर कवितावली-1 नाम से एक काव्य गोष्ठी आयोजित हुई। इसमें भाग लेनेवाले अधिकांश  कविगण वैशाली जनपद के ही थे। दो महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व  श्री प्रभाकर जी और गुरुजी (शिक्षक द्वय) का की उपस्थिति से यह कार्यक्रम गौरवान्वित हुआ। अध्यक्षता जादूगर, प्रोफेसर, कवि और चित्रकार ध्रुव कुमार चित्रांश ने की और संचालन कवि, सम्पादक संजय शांडिल्य ने

पहले दो नवोदित कवियों ने अपनी कविताएँ सुनायीं-
1. कुमार शिवम : 
अ. बाबा आ. हमदर्दी।
2. आदित्य कुमार ठाकुर : 
अ. आतंकवादी आ. समय इ. नाड़ी ई. पेड़
दोनों कवियों में कविता का बीजांकुर है। दोनों कवियों ने कोमलता और संघर्ष की कविताएँ सुनायीं। समय पर भी इनकी नज़र है। दोनों संभावनाशील हैं।

क्रम को जारी रखते हुए निम्नलिखित कवियों ने क्रमवार अपनी कविताएँ सुनायीं।

3. सतीश कुमार ने कुल चार कविताएँ सुनायीं : कविता, भूलेटन, छंददास और कवि और कविता। कवि सतीश का काव्य-संग्रह "मैं गालिब नहीं" का प्रकाशन, कवि राकेश रंजन के संपादन में प्रकाशित हो चुका है। सतीश संवेदनशील तो हैं ही, संभावनाशील भी हैं। साहित्य की सेवा में खुद को लगाना चाहते हैं। आप साफ शब्दों में अपनी बात रखने की कोशिश करते हैं और सफल होते हैं। आज की पीढ़ी लगभग छंद में लिखना-पढ़ना छोड़ चुकी है, ऐसे समय में कवि छंद का ककहरा पढ़ने में लगा है। इस प्रयास का स्वागत है।

4. आदर्श नितिन ने अपनी छः रचनाएँ पढ़ीं : भिखारी, कपड़े, नाजायज बच्चा, सड़क पर बिल्ली, दस रुपये का नोट और एक टाँगवाला कौआ। आदर्श नितिन देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, यथा : वागर्थ और लम्हे आदि में छप चुके हैं। वक्त के हालात पर आपकी नज़र रहती है। परिवेश पर गौर का माद्दा है। आपकी कविताएँ किंचित छोटी, लेकिन अर्थ में बड़ी होती हैं। आपकी अभिव्यक्ति साफ और सहज है। उम्मीद है सिलसिला जारी रहेगा।

5. अनाम विश्वजीत ने अपनी सधी हुई और बँधी हुई चार कविताएँ सुनायीं। पाना, अहिंसा, हड़बड़ी और महत्त्वहीन। भले ही कवि अनाम विश्वजीत पत्र-पत्रिकाओं या अखबारों में अप्रकाशित हैं, लेकिन साहित्य के प्रकाश से प्रकाशित हैं, और यह प्रकाश क्षितिज पर जल्दी ही फैलने वाला है। आपकी साहित्यिक सौंदर्य-चेतना बेहतर है। कविताओं में समय को अभिव्यक्त करने की खूबी है। आप शिल्प और प्रारूप को साधने की बेहतरीन प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। आप अपनी बात साफगोई से रखने में सफल होते हैं, जिसे पाठक आसानी से समझने की कोशिश करते हैं।

6. अरविन्द पासवान दूसरे कवियों को पढ़ते हुए देखकर साहस और हौसले से भर गए और अपनी दस कविताएँ सुना डालीं। वे संचालक महोदय के द्वारा पकड़े गए और तत्क्षण कवितावली-1 के विशिष्ट कवि घोषित हुए। 

कविताओं का असरबयानी मुश्किल है। एक बात उम्मीद से कह सकता हूँ, कि सम्माननीय विद्वान कविगण मेरी कविताएँ तो धैर्यपूर्वक सुन ही रहे थे, दाद भी दे रहे थे, लेकिन मेरे लिए अद्भुत पल यह था कि कवि संजय शांडिल्य और कवि राकेश रंजन तवज्जो देकर गौर से सुन रहे थे और गुन रहे थे। कविताएँ थीं- एक आईडिया, देखना, बच्चे-1, बच्चे-2, क्या बदल जाएगा, शान्ति रक्षक शिशु, ताकि अँधेरा कायम रहे, चाँद और अमंग देई

7. अभिषेक चंदन ने अपनी जीसस, फूटपाथ और चुप होना अपराध गिना जाएगा, कविताएँ सुनायीं। आपमें विषय प्रवेश की क्षमता है। एक तरफ आप कविता के लिए गंभीर विषय चुनते हैं, तो दूसरी तरफ साधरण-सी बात को भी काव्यात्मक लहजे में प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं। बड़े फलक पर अपनी बात कहने की आपमें क्षमता है। तीन कवियों का संयुक्त काव्य संग्रह : "त्रिवेणी" जिसके आप एक सम्मानित कवि हैं। 

8. डॉ राकेश रंजन ने विभिन्न तेवर और स्वाद की कुल चार कविताएँ सुनायीं। झुकना, मुझे क्षमा करें, कमाया घण्टा और ढोड़ी ढीली भई हमारी।राकेश रंजन वर्तमान समय की धड़कन और बुलन्द आवाज हैं। आपकी कविताएँ सहज ही अपना सर्वोत्तम लक्ष्य या स्थान पा लेती हैं। समय का, देश का जो सच है, वह आपकी कविताओं में अभिव्यक्त है, सम्भव है कि पूरा सच अभिव्यक्त न हो, लेकिन जो सच शेष है उन रगों पर भी आपकी उंगलियाँ पड़ने को उद्यत हैं। जबकि हम चांद का सफर करने को बेताब हैं, धरती का चांद, कज्जल जल में नवजात शिशु की भाँति फूलकर सफेद हुआ जा रहा है। समाज की संवेदना का इस कदर क्षरण, हमारे ही गिरने की निशानी है, जिससे कवि अपनी संवेदना से सचेत भी करता है। 

यदि हम हिंदी साहित्य की परम्परा, खासकर काव्य-परम्परा, उसके काव्य-बोध और काव्य-सौंदर्य आदि से गुजरना चाहते हैं तो राकेश रंजन की कविताओं से गुजर सकते हैं। कविता की अभिव्यक्ति का जो माध्यम है, साध्य या साधन जैसे कि : विषय, भाषा, शिल्प, प्रारूप, संरचना, बनावट और बुनावट आदि, उसे हम डॉ राकेश की कविताओं में देख सकते हैं। आपकी कविताएँ मन-मिजाज में घुलती रहती हैं। आप 2006 का विद्यापति पुरस्कार (पटना पुस्तक मेला), 2009 का हेमंत-स्मृति कविता सम्मान (मुम्बई) पा चुके हैं।

9. सतीश नूतन ने अपनी भाव और भाषा से सिक्त चार कविताएँ सुनायीं। दूम, नाक, आह चिरई और वाह चिरई। सतीश नूतन परिचय के मोहताज नहीं हैं। देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आप प्रकाशित तो हो ही चुके हैं, आपका एक काव्य-संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है : घोसला चिरई का"आप ठेठ भाषा से लेकर अभिजात्य भाषा को साधनेवाले कवि हैं। आपकी कविताओं में गाँव, गाँव की मिट्टी, मिट्टी की खुशबू, पेड़, पक्षी, पर्यावरण और परिवेश सहज दिखते हैं। आपकी व्यंग्य कविताएँ बिना हल्ला मचाए मन के भीतर शोर करती हैं। आप अपनी तरह के नायाब कवि हैं। आपकी रचनाशीलता और गतिशीलता हमें आश्वस्त करती हैं कि जल्दी ही कोई नई पुस्तक हम पाठकों के बीच होगी।

10. संजय शांडिल्य ने अपनी तीन ताज़ी कविताएँ सीधे श्रोताओं के दिल में उतार दीं। मैं इस केदारनाथ सिंह को नहीं जानता, मैं आऊंगा और जो आदमी लौट आया है। संजय शांडिल्य सघन अनुभूति के शानदार कवि हैं। आपकी कविताओं में घनत्व इस कदर व्याप्त होता है कि एक बिंदु का भी असर पाठकों जेहन में चिपक जाता है। आपकी कविताएँ काव्य-बोध और सौंदर्य-बोध के साथ विषय, शिल्प और भाषा का भी अन्यतम बोध कराती है। एक तरफ आपकी कविताएँ मानव मूल्यों के अवमूल्यन, परिवार और परिवेश से कटने की तरफ इशारा करती हैं, तो दूसरी तरफ इसके स्थापित होने और लौटने की भी उम्मीद जगाती। हम उम्मीद करते हैं कि जल्द-से-जल्द आपका एकल संग्रह पाठकों के बीच हो।

11. अंत में परम्परानुसार आज की अध्यक्षता कर रहे कवि ध्रुव कुमार चित्रांश ने ओजपूर्ण अध्यक्षीय वक्तव्य के साथ अपनी दो रचनाओं का पाठ किया। यमदेव से प्रार्थना और एक पहेली। सचबयानी से ओत-प्रोत आपकी कविताओं ने श्रोताओं पर सीधा और गहरा असर किया। बिना लाग-लपेट के अपने भाव और विचार में जीनेवाला कवि चित्रांश ने धरती के दारुण दुख का उजागर किया। यमदेव से कवि की प्रार्थना है कि धरती पर इस तरह दुख व्याप्त है कि मुझे यदि जन्म भी लेना पड़े तो धरती पर मत भेजना। आपकी दोनों कविताएँ सराही गयीं। गोष्ठी आकार में भले ही छोटी ज़रूर थी लेकिन अर्थ में बड़ी थी। 
सिलसिला हर बात का, इक बात से जारी रहे
हम रहें या ना रहें, यह सफर जारी रहे...
..............
आलेख- अरबिन्द पासवान
लेखक का परिचय- अरबिन्द पासवान बिहार के जाने-माने युवा कवि और लेखक हैं और विशेष रूप से दलित विमर्श, सर्वहारा वर्ग के शोषण के विरुद्ध और छ्द्म धार्मिक अंधविश्वास के विरुद्ध विषयों पर अपनी आवाज लेखन के माध्यम से बुलन्द करते हैं. इनकी रचनाएँ देश के सम्मानित पत्रिकाओं, समाचारपत्रों में छपती रहतीं हैंंं. भारतीय रेल में लेखा विभाग में अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं. 












इस रिपोर्ट के लेखक - अरबिन्द पासवान

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