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# DAILY QUOTE # -"हर भले आदमी की एक रेल होती है/ जो माँ के घर तक जाती है/ सीटी बजाती हुई / धुआँ उड़ाती हुई"/ Every good man has a rail / Which goes to his mother / Blowing wistles / Making smokes [– आलोक धन्वा, विख्यात कवि की एक पूर्ण कविता / A full poem by Alok Dhanwa, Renowned poet]

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Sunday 30 July 2017

'साँसें' से ममता मेहरोत्रा लिखित कहानियों पर आदि-शक्ति नाट्य महोत्सव का 29.7.2017 को पटना में समापन

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मरते समय भी पति को अपराधबोध से बचानेवाली महिला की कहानी 
    (राजन कुमार सिंंह की रिपोर्ट)



        स्थानीय कालिदास रंगालय में चल रहे तीन दिवसीय आदि शक्ति नाट्य महोत्सव का पर्दा नाटक सांसे के मंचन के साथ गिरा। ममता मेहरोत्रा की कहानी को नाट्य रूपांतरित किया ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने और निर्देशन किया गुंजन कुमार ने। यह नाटक एक बीमार महिला के इर्द-गिर्द घूमती है जो जीवन के तमाम झंझावातों को झेलते हुए न सिर्फ़ अस्पताल में भर्ती है बल्कि कोमा में जा चुकी है उसका पति एक शराबी और अय्यास है जो पत्नी के लाख समझाने के बाद भी नही सुधरता। उसकी चार बेटियाँ है जिसका दोष अपनी पत्नी पर मढ़ता है। सांसे एक माँ के रूप में जीवन का बोझ ढो रही नारी की ब्यथा , बेबसी,घुटन और टूटने की कहानी है। समय के प्रवाह में पति का अंतर्मन बहुत कुछ समझ पाता है। पत्नी का अंतहीन कहर देखकर द्रवित हो जाता है। वह पत्नी की मौत का जल्दी हो जाना तय देख कर उस के इलाज पर हो रहे अत्यधिक खर्च से बचने के लिए डॉक्टर से उसको कृत्रिम रूप से साँस दिलवाने वाली ऑक्सीजन की नली को हटा कर उसे मर जाने देने का अनुरोध करता है।परंतु तभी बेटी रोती हुई कहती है कि माँ की साँसे तो जा चुकी हैं ताकि आप अपराधबोध से  मुक्त हो कर रह सकें

     पति की भूमिका में शराबी,अय्यास और विभिन्न चरित्रों को आलोक गुप्ता ने बखूबी निभाया और साथ में पत्नी की भूमिका में गरिमा त्रिपाठी अपनी संवेदना को दर्शकों को उद्वेलित किया। अन्य भूमिकाओं में आर नरेंद्र,अदिति सिंह,शांति प्रिया,यूरेका किम, पारस कुमार झा, रंगोली पांडेय, लाडली कुमारी,सृष्टि मंडल ने अच्छी कोशिश की।


     नेपथ्य में प्रकाश- राज कुमार शर्मा, रूप सज्जा- अशोक घोष का था। मौके पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में पूर्व निदेशक देवेंद्र राज अंकुर और लेखिका ममता मेहरोत्रा,वरिष्ठ रंगकर्मी सुमन मौजूद थे।
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रिपोर्ट के लेखक: राजन कुमार सिंह
राजन कु. सिंह एक जाने-माने रंगकर्मी और बिहार में रंगकर्म के मामलों के विशेषज्ञ हैं..
छायाचित्र : हेमन्त दास 'हिम'
नोट: कृपया नाटक के अन्य फोटोग्राफ्स को इस रिपोर्ट में शामिल करने हेतु उसे ब्लॉगर को मैसेज या ईमेल के द्वारा भेजें. ईमेल आइ.डी. है -hemantdas_2001@yahoo.com












Author of this report- Rajan Kumar singh




Saturday 29 July 2017

'सामयिक परिवेश' पत्रिका द्वारा प्रेमनाथ खन्ना सम्मान और संस्मरणों का अनोखा साझा-संग्रह 28.7.2017 को पटना में लोकार्पित


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 व्यक्तिगत प्रेम का सामाजिक हित हेतु उदात्तीकरण


     
      अभिलेख भवन, पटना,  28 जुलाई,2017 में प्रसिद्ध साहित्यकार ममता मेहरोत्रा ने अपने पिता की पुण्यतिथि अनोखे ढंग से मनाई जो सब के लिए अनुकरणीय हो सकता है. उन्होंने इस अवसर पर अपनी संस्था 'सामयिक परिवेश' के द्वारा लोगों से संस्मरणो को इकट्ठा करवाया और उसे समीर परिमल के सम्पादकत्व और श्रुति मेहरोत्रा के सह-सम्पादकत्व में 'यादों के दरीचे' पुस्तक का रूप देते हुए प्रकाशित करवाया. साथ ही अनेक साहित्यकारों को सम्मानित भी किया. देश के सुदूर क्षेत्रों में रहने के कारण कुछ रचनाकार  उपस्थित नहीं हो पाए. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थीं दूरदर्शन (डीडी-बिहार) की उप-केंद्र निदेशिका रत्ना पुरकायस्थ. साथ ही इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार सतीशराज पुष्करणा, कासिम खुरशीद, तारानन्द वियोगी, भावना शेखर, विभारानी श्रीवास्तव, सरोज तिवारी के अलावे समीर परिमल, हेमन्त दास 'हिम, डॉ. रामनाथ शोधार्थी, अविनाश झा, घनश्याम आदि भी उपस्थित थे. मार्ग बियरिग्स प्रा.लि. के शम्भू कुमार विशेष अतिथि थे.

    शुभारम्भ दीप-प्रज्ज्वलन से हुआ. तत्पश्चात उनतीस साहित्यकारों द्वारा लिखे गए उनके संस्मरणों का संग्रह 'यादों के दरीचे' का लोकार्पण हुआ. फिर कुल सत्रह साहित्यकरों को प्रेमनाथ खन्ना सम्मान 2017 प्रदान किये गए. जिसके अंतर्गत प्रत्येक को सम्मानपत्र और चादर दिये गए. 

       ममता मेहरोत्रा ने अपना उद्गार प्रकट करते हुए कहा कि उनके पिता प्रेमनाथ खन्ना जी 2009 में कैंसर के कारण चल बसे और बहुत ज्यादा लगाव होने के कारण उन्हें यह सदमा बर्दाश्त नहीं हो पाया और वो लगभग पाँच सालों तक भयंकर मानसिक अवसाद से ग्रस्त रहीं. कोई भी उपाय काम नहीं आ रहा था परंतु जीवन तो जीना होता है अपने अत्यंत प्रिय व्यक्ति के बिना भी.इसलिए उन्होंने बहुत सोच-समझ कर यह तरीका निकाला कि क्यों न ऐसा कुछ किया जाय कि उनके पिता का नाम अमर हो जाए. और अमरता प्रदान करने में रचनात्मक कृति से बढ़ कर कुछ और नहीं हो सकता. 

       इस अवसर पर सम्मानित होनेवाले साहित्यकारों के नाम हैं- डॉ. सतीशराज पुष्करणा, शहंशाह आलम, तारानन्द वियोगी, डॉ. कासिम खुरशीद,  भावना शेखर, विभा रानी श्रीवास्तव, सरोज तिवारी, नरेन्द्र कुमार, हेमन्त दास 'हिम', अविनाश झा, डॉ. नीलम श्रीवास्तव, सुशील भारद्वाज, असित कुमार मिश्र, संगीता सिंंह 'भावना', अनीता मिश्रा, विजयानन्द विजय और मुकेश कुमार सिन्हा.

     ध्यातव्य है कि ममता मेहरोत्रा एक अत्यंत प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं और उनकी एक पुस्तक 'माटी का घर' पर शोधपरक समीक्षा का प्रकाशन दुनिया में सबसे अधिक भाषाओं (आठ भाषाएँ- संस्कृत, अंग्रेजी, अंगिका, बज्जिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली और उर्दू)  में होने के पश्चात उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड्स रिकार्ड में दर्ज हो चुका है. स्पष्ट है कि यदि वो चाहतीं तो स्वयं अपने पिता के संस्मरणों की एक पुस्तक लिख सकती थीं. किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि वो स्वयं और पिता के बीच के प्यार को व्यक्तिगत स्तर पर रखने की बजाय इसे समाज के सभी माता-पिता और उनकी सन्तानों के बीच प्रेम को सबल बनाने के प्रयास में रुपांतरित कर दिया ताकि स्वयं तो संतुष्टि मिले ही साथ ही समाज का भी भला हो. यह पुस्तक उसी दिशा में एक छोटा ही सही परन्तु सफल प्रयास है.

     कार्यक्रम का संचालन लोकप्रिय शायर समीर परिमल ने किया और धन्यवाद ज्ञापन लोकार्पित पुस्तक की सह-सम्पादिका श्रुति मेहरोत्रा ने किया. निश्चित रूप से अपने प्रियजन की स्मृति मनाने का यह तरीका व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए कल्याणकारी और अनुकरणीय कहा जा सकता है.




















































Friday 28 July 2017

प्रस्तुति रंगमंडल का नाटक 'बकरी' 25.7.2017 को पटना में मंचित (Bakari- a paly by Prastuti Rangmandal,staged in Patna on 25.7.2017)

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"Capture and beat him till he becomes a goat"

(हिन्दी में यह आलेख अंग्रेजी ट्क्स्ट के नीचे है)
       Bakari i.e. goat is a symbol of scapegoat It is sometimes a means of fooling others for amassing wealth and on other occasions, is  just a part of  delicacy of food. Saraweshwar Dayal Shaksena  has made everything clear very beautifully how the so-called religious gurus and political leaders use the sentiments of meek people in their favour and of course, in an unethical manner. The dialogues are pithy and  the whole script is well-knit bereft of any superfluous sequences.

       The presentation was an evidence of symphony between director and actors where both gave their best. Sharda Singh was again a successful director, Sanjay Upadhyay had designed the concept of lighting, Md. Jonny provided music from background with team and Ruby Khatoon had designed the costume.  
(Provide name of artists to hemantdas_2001@yahoo.com) 

         बकरी, बलि का बकरा का प्रतीक है। बकरी महज कभी धन इकट्ठा करने हेतु दूसरों को बेवकूफ बनाने का एक साधन होती है तो कभी  स्वादिष्ट भोजन का सिर्फ एक हिस्सा बनती है। सरवेश्वर दयाल सक्सेंना ने सब कुछ स्पष्ट रूप से व्यक्त कर दिया है कि तथाकथित धार्मिक गुरु और राजनीतिक नेताओं ने सीधे-साधे लोगों की भावनाओं को उनके पक्ष में करने के लिए किस तरह से हर अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल किया है। सम्वाद सारगर्भित हैं और पूरा कथानक भली-भाँति बुना गया है।

        यह प्रस्तुति निर्देशक और अभिनेताओं के बीच समस्वरता का एक सबूत थी जहां दोनों ने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। शारदा सिंह फिर से सफल निर्देशक रहीं, संजय उपाध्याय ने प्रकाश व्यवस्था को डिजाइन किया था, मोहम्मद जॉनी ने टीम के साथ पृष्ठभूमि में संगीत प्रदान किया और रुबी खातून ने पोशाक डिजाइन किया था।
(कलाकारों का नाम प्रदान करें इस ईमेल पर- hemantdas_2001@yahoo.com) 
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Send more info and your response to this article at hemantdas_2001@yahoo.com